चतुर जब घर के अंदर घुसा, उसको देखते ही ,रामप्यारी की हालत खराब हो गई।घबराकर सभी काम- धाम छोड़कर, बेटे को देखने दौड़ी,उसकी चोट को देखकर बोली - यह तुझे क्या हो गया है ?ये चोट कैसे लगी ?
कुछ नहीं ,मामूली सी चोट है ,चतुर लापरवाही से बोला।
इतना खून बह रहा है ,तेरे कपड़े भी खून में सने हैं , यह मामूली सी चोट है , आखिर तू गया, कहां था ? जो तुझे यह चोट लगी।
मैं कालीचरण काका की ट्यूबवेल की तरफ जा रहा था, तभी मेरा पैर फिसला और एक कंकड़ मेरे माथे में धंस गई। वहां क्या करने गया था ? कितनी बार पूछा था ,मैंने , जब देखो , घर से बाहर ही घूमता रहता है। कहते हुए, कोई चोट पर लगाने वाली, पुरानी सी मरहम की ट्यूब लेकर आ गई। वह शायद उसके विषय में जानती होगी ,कि यह जख्म भरने की दवा है। चतुर के लिए ,वहीं पर खाट बिछा दी, और बोली -यहीं लेट जा, मैं तेरी पट्टी करूंगी।
यह ऐसे ही ठीक हो जाएगी ,आपको परेशान होने की जरूरत नहीं है।
चुपचाप लेट जा ! कहते हुए उसका हाथ पकड़कर उसे चारपाई पर बिठा दिया। उसके जख्म को देखने लगी , काफी गहरी चोट है। वह तो अच्छा हुआ ,डॉक्टर साहब ने यह ट्यूब, बहुत पहले दे दी थी कहीं हल्की-फुलकी चोट लगे तो इसे लगा लेना,यह शीघ्र ही ,जख़्म भर देगी। आज उसे ,डॉक्टर साहब की दी हुई वह ट्यूब, बेशकीमती लग रही थी। चतुर जानता था ,माँ ,मानेगी नहीं, इसलिए चुपचाप उस चारपाई पर लेट गया। रामप्यारी ने, उस चोट को अच्छे से पौंछ कर, उस चोट पर मरहम लगाया और, रुई लगाकर, किसी सूती, कपड़े में से, एक पट्टी फाड़कर उसके माथे पर बांध दी।
श्रीधर जी भी , शाम होने पर, भैंसों का दूध निकालकर घर आए थे। बेटे को इस तरह पट्टी से बँधा देखकर, गंभीर हो गए और बोले - क्या हुआ ?
होना क्या है ? उन्हीं गांव के लफंगों के साथ, ट्यूबवेल पर घूमने गया था, वहीं पर फिसला और माथा फोड़ लाया है।
पहले तो शांत रहे,बेटे को दर्द में देखकर दुख तो हुआ किन्तु अपनी पत्नी की तरह उसे डांट -फटकार भी नहीं सकते। तब उन्हें जैसे कुछ बात स्मरण हो आई और बोले -मैंने तो कुछ और ही सुना है।
श्रीधर के इतना कहते ही , चतुर उठ खड़ा हुआ , घबराकर बोला -आपने क्या सुना है ?
मैं जब भैंसों का दूध निकाल रहा था, तब तेरे दोस्त उधर से ही ,निकले हुए जा रहे थे और उनमें से एक कह रहा था -'यार !यह सुशील ने चतुर के साथ अच्छा नहीं किया। '' किस विषय में वह यह सब बातें कर रहे थे ? किंतु अब तुम्हें देख कर लगता है। शायद तुम दोनों में झगड़ा हुआ है। यह वही चोट है।
नहीं ,ऐसा तो कुछ भी नहीं है , चतुर बात को छुपाते हुए बोला।
तो फिर क्या बात है ? तेरे दोस्त, सुशील के लिए क्या कह रहे थे ? उसने क्या अच्छा नहीं किया ?
मन ही मन चतुर सोच रहा था, अभी मैं सोच रहा था कुछ दिनों पश्चात , मैं इनको वह बात बताऊंगा। किंतु लगता है ,आज ही मुझे बात करनी होगी। चतुर को शांत देखकर उसके पिता ने फिर पूछा -बात क्या है, बताता क्यों नहीं है ?
आप दोनों आराम से बैठकर ,मेरी बात सुनिए ! चतुर सोच रहा था, बात की शुरुआत कहां से की जाए ? और कैसे की जाए ? तब वह बोला -जब मैं घर छोड़कर चला गया था , दो दिनों तक मैं भूखा रहा था, मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था मैं क्या करूं ? किसी अजनबी और अनजान लड़के को, न ही ,कोई काम देना चाहता था और न ही ,कोई रखना चाहता था । तब एक चायवाले ने मेरी सहायता की, और उसने मुझे, खाना भी दिया और काम भी दिया। मैं उसी के यहां काम करता था। मैंने गांव में आकर जो कुछ भी बताया था, वह अपने परिवार के मान -सम्मान के लिए ,झूठ बोला था। उस समय मैंने पेट भरने के लिए ,एक चाय वाले की दुकान पर कार्य किया था।
क्या ?तू उन दिनों चायवाले की दुकान पर उसका नौकर बनकर रहा ,रामप्यारी के लिए तो ,जैसे यह बात आश्चर्यचकित कर देने वाली थी।
हाँ ,उन्हीं दिनों मेरी मुलाकात, चाय वाले की बेटी और उसके बेटे से भी हुई। उन्हें में पढ़ाने लगा, उसकी बेटी बहुत सुंदर है। मेरी खराब हालत में ,उन्होंने मेरी सहायता की, और तब मुझे उनकी लड़की भी पसंद आ गई। मैं आप लोगों को यह बात,अभी नहीं बताना चाहता था। अपनी पढ़ाई पूरी करके, आगे बढ़ना चाहता था।
यह बात मेरे सभी दोस्त जानते हैं, कि चायवाले की बेटी कस्तूरी से मैं ,प्यार करता हूं। सुशील को न जाने क्या हुआ ? तब से मेरे पीछे पड़ा हुआ था, पहचानना चाहता था कि वह लड़की कौन है ,क्या है ? उसने न जाने कैसे उसके घर का पता लगा लिया ? उसके परिवार वाले कस्तूरी के यहां रिश्ता लेकर पहुंच गए। यह बात मुझे कस्तूरी ने बताई, मैं कभी-कभी उससे मिलने ,उसके घर पर ही चला जाता हूं।तब मुझे कस्तूरी ने ही बताया कि मेरे ही गांव का लड़का सुशील विवाह का प्रस्ताव लेकर आया।'
इसी सिलसिले में मैं ,सुशील से बातचीत करने गया था , कि उसने ऐसा क्यों किया ? माता-पिता को तो जैसे होश ही नहीं रहा, कि बेटे की जिंदगी में इतना कुछ चल रहा है और हमें पता ही नहीं। दोनों पति -पत्नी एक दूसरे को देख रहे थे, और बेटे की कहानी भी सुन रहे थे। मां ने कहा था ,कि समझदारी से काम लेना इसीलिए मैं अपने सभी दोस्तों को एक साथ लेकर गया था, ताकि कोई झगड़ा न हो और मिलजुल कर सब संभाल लें अकेले जाते तो अवश्य ही तगड़ा झगड़ा हो जाता। तब भी उस सुशील ने अपनी गलती तो मानी नहीं, और मेरे ऊपर पत्थर फेंककर मारा उसी के कारण यह जख्म आया।
क्यों ?तेरे हाथ क्या पीछे बंधे थे ?क्रोधित होते हुए रामप्यारी बोली -मैंने समझदारी से काम लेने को कहा था ,पीटकर आने के लिए नहीं कहा था।
श्रीधर जी ने ,अपने हाथों से रामप्यारी को शांत रहने के लिए इशारा किया। उसका इतना साहस , कहते हुए श्रीधर जी क्रोध में बोले - तुझसे कितनी बार कहा है? उनकी औकात नहीं है ,हमारी बराबरी करने की, तू उससे बात ही ,क्यों करता है ? उसके बाप को बुलाकर मैं ,पंचायत बैठाऊंगा उसके खानदान को शर्मिंदा न किया तो मेरा नाम भी श्रीधर नहीं।
जिस बात को, चतुर अपने माता-पिता से छुपाना चाहता था, वह इस तरह सामने आ जाएगी यह तो उसने सोचा ही नहीं था। अब तो बड़ों के सामने भी यह बात आ गई है। जो उनके क्रोध का कारण बन गया है। सच्चाई जानकर माता-पिता अत्यंत दुखी तो हैं , अब यह बात आगे कहां तक जाएगी ?जानने के लिए पढ़िए रसिया !
