Rasiya [part 59]

तेरे मन में, तब से ही आग लगी हुई थी , और तू मुझसे  बार-बार पूछता था ,कि कस्तूरी से  क्यों नहीं  मिलवाता ? मुझे तेरी नियत शुरू से ही अच्छी नहीं लग रही थी। कभी कहता -तुझे छोड़कर ,कभी हमें पसंद न कर ले ,इसीलिए तुझे डर है। तुझे नहीं मालूम !संयोग से तेरे घरवाले कैसे उसके घर पहुंच गए ?तूने यह जानने का प्रयत्न भी नहीं किया होगा ,लड़की का क्या नाम है ?

उससे क्या फर्क पड़ता है ? मान लो ! उसका नाम कस्तूरी है ,कस्तूरी नाम की क्या कोई और लड़की नहीं हो सकती। अब हमने रिश्ता भेज दिया , अब वह मेरी होगी। 

साले !मैं तेरी नियत तभी से समझ गया था , कि तेरी नियत ही सही नहीं है, तू कौन सा रईस की औलाद है ? जो उसके बाप पर रौब मारकर  आया है , वह मुझसे प्रेम करती है तुझसे नहीं, न ही, उसने तेरा रिश्ता स्वीकार किया है। तू मुझे ये बता ! तुझे उसके घर का कैसे पता चला ?



मैं तुझे क्यों बताऊँ ? कब ,कैसे ,क्या हुआ ?तू होता कौन है ?ये सब पूछनेवाला ! उसके माता-पिता तो मान गए, विवाह तो माता-पिता करेंगे, सुशील अपनी बात को बड़ी करते हुए बोला। 

देखा ! अपने दोस्तों की तरफ, हाथ करते हुए चतुर बोला -इसकी पहले से ही योजना थी, अब यह बात इसके मुंह पर भी आ गई। इसकी नियत में पहले से ही खोट था ,मैं एक ही गांव में रहकर, दुश्मनी नहीं करना चाहता। इसीलिए तू चुपचाप उससे  रिश्ते को मना कर दे !

क्यों ,कर दूं ? अब उसके लिए मेरा रिश्ता गया है , तो विवाह भी मुझसे ही होगा। 

उसकी बात सुनकर चतुर को बहुत गुस्सा आया, और उसने पास में पड़ा डंडा उठाया मन कर रहा था उसका सिर फोड़ दे !तभी उसके दोस्तों ने उसके हाथों को पकड़ लिया। 

कर तू ,विवाह कर उससे ! तू विवाह कर वह बीवी तेरी होगी, किन्तु ''सुहागरात'' मेरे साथ मनेगी, वह मुझसे प्यार करती है। 

''सुहागरात ''की बात सुनकर सुशील को गुस्सा आ गया , साले तेरी इतनी हिम्मत ! तू इस तरह से सोचेगा ! अपने पास पड़ा छोटा सा पत्थर उठाकर चतुर पर फेंक मारा। वह सीधा चतुर के माथे पर लगा और खून बहने लगा। 

देखा !कितनी आग लगती है ,कितना गुस्सा आता है ? ऐसे ही मुझे भी आया था, आज तू बचेगा नहीं ,तू तो  गया , किसी को तेरी लाश भी नहीं मिलेगी ?अपने माथे का खून पोंछ्ते हुए बोला।  

तू मेरी लाश क्या बनाएगा ? मैं तुझे जिंदा छोड़ूंगा तब न.......  

मैं उसके लिए कुछ भी कर सकता हूँ। 

 अरे !पहले यह तो सोच  लो ! वह तुमसे करना चाहती भी है ,या नहीं , जबरदस्ती गले पड़ रहे  हो ,मयंक बोला -तुम दोनों क्यों आपस में एक -दूसरे का सर फोड़ने पर तुले हो ? यह बात हम सभी जानते हैं ,चतुर कस्तूरी से प्रेम करता है। अब ये कस्तूरी वही है या और कोई ,ये फैसला कस्तूरी पर ही छोड़ देते हैं। तूने उसके लिए रिश्ता भेजा,ठीक........ मयंक ने  सुशील से पूछा। 

हाँ ,

क्या तू उसे पहले से जानता था ?

नहीं ,

तब ये रिश्ता क्या सोचकर भेजा ?हमारे यहाँ रिश्ते आते हैं ,भेजे नहीं जाते ,इसका मतलब है ,तूने उसे देखा है और जानता भी है। 

जहाँ तक मेरा विचार है ,चतुर सही कह रहा है ,इसने अवश्य ही उसका पीछा किया होगा चिराग सभी बातों को समझते हुए बोला -वरना उसके घर का इसे कैसे मालूम पड़ा ?तन्मय ने प्रश्न किया। 

साले ! तुम सभी कमीने हो !तुम इसके दोस्त जो हो ,इसी का साथ दोगे ,चतुर की तरफदारी करते देख सुशील भड़कते हुए बोला। 

ओ........ जबान संभालकर ! कुछ भी कहने से पहले सोच लेना ,तू क्या कह रहा है ?और किसे कह रहा है ? तू भी हमारा ही दोस्त है किन्तु कुछ भी उल्टा -सीधा बोला ,तो हम भूल जायेंगे ,तू भी हमारा दोस्त ही है सुनील जो अब तक चुपचाप रहकर बातों को समझने का प्रयास कर रहा था। 

 अपने माथे के रक्त को ,हाथ से दबाकर रोकने का प्रयास करते हुए चतुर बोला -मुझे कैसे पता चलता ?कि इसने कस्तूरी के लिए विवाह की बात की है ,इसने क्या किसी को बताया ?किन्तु मुझे कस्तूरी ने ही बताया और ये  बात अब मेने सत्य साबित कर दी। 

ठीक है, यदि उसने मना कर दिया तो मैं उससे विवाह नहीं करूंगा , बात को समाप्त करते हुए सुशील बोला। 

तुझे करना भी नहीं चाहिए,जब वो दिल से उसे अपनी मान बैठा है ,तू क्यों  गया ?क्या दुनिया में ,लड़कियों का अकाल पड़ गया है ? चिराग ने पूछा। 

अकाल तो नहीं पड़ा है, किंतु इसे मेरी खुशियों से जलन थी, ईर्ष्या के कारण ही, यह वहां गू खाने गया, चतुर बोला। 

अच्छा ,अब यह तय रहा। यह निर्णय कस्तूरी का होगा कि वह किसी से विवाह करेंगी मयंक ने कहा। 

ऐसे नहीं होता है, चतुर परेशान होते हुए बोला-अभी मैंने अपने घर में भी बात नहीं की है, किसी को कुछ भी नहीं बताया है किंतु कस्तूरी के माता-पिता उससे जबरदस्ती' हां 'कहलवाना चाहते हैं और तुम सब भी जानते हो मेरे पिता कभी किसी लड़की के लिए ऐसे रिश्ता लेकर नहीं जाएंगे। मुझे उन्हें मनाना भी पड़ेगा , समझाना पड़ेगा और बताना भी पड़ेगा। झुनझलाते हुए चतुर बोला -इसने न जाने क्या कर दिया ? अभी मैं इस वर्ष की परीक्षाएं पूर्ण करने की सोच रहा था ,उसके बाद में घर वालों से बात करता किंतु इसने बीच में आकर, सब कुछ बिगाड़ दिया। 

इसीलिए तो यह बीच में आना चाहता था, उसके पश्चात तो तू ही बात कर लेता , सुशील को घूरते हुए, तन्मय बोला -अब जो भी है, तुझे अपने माता-पिता से बात करनी ही होगी और उन्हें समझाना भी होगा तभी कुछ किया जा सकता है। क्या उसके घर वालों को तेरे विषय में मालूम है ?

नहीं, अभी उन्हें कुछ भी मालूम नहीं है। 

यार ! इसकी कहानी तो बड़ी मजेदार है, न इसके घर वालों को मालूम है, न उसके घर वालों को मालूम है और कहानी में विलेन आ गया सतीश हंसते हुए बोला -देखो !हम नहीं चाहते, सभी एक गांव के हैं, गांव में रहकर ही दुश्मनी रहे, वह भी एक लड़की के लिए , इसलिए समझदारी से काम लेना होगा। यहां तुमने आपस में मान लीजिए ,एक दूसरे का सर फोड़ भी दिया , उससे क्या लाभ है ? हमारे बड़े बुजुर्गों ने कहा है -ज्यादातर झगड़े , जऱ, जोरू और जमीन पर ही होते हैं। किसी के कुछ हाथ नहीं आएगा, इसलिए थोड़ा चतुर को भी समय मिलना चाहिए। 

आगे क्या होता है, जानना चाहते हैं तो मेरे साथ बढ़ते रहिए -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post