देखो !अभी -अभी बरसात थी ,मिज़ाज !
बदला नहीं मौसम ने ,अब क्यों इतनी धूप आई है ?
इंसानों की भाँति ही ,स्वभाव मौसम ने बदला है।
पल में धूप ,पल में बरसात !तो कभी ठंडक आई है।
अब मौसम ने ,फिर से ली अंगड़ाई है।
बदलते मौसम की तरह ही, मिज़ाज में रंगत आई है।
अरमान दबाये बैठी थी ,आज मन ने थिरकन जगाई है।
कल जो उदासी ,मन पर छाई थी ,
तुम्हारे आने से ,जैसे मेरे घर में रौनक आई है।
दिल में कलियाँ, खिलने लगी हैं ,चेहरे पर रंगत छाई है।
''बदलते मौसम'' ने सुख -दुःख का एहसास कराया ,
बिछुड़ने के पश्चात ,अब मिलन की बारी आई है।
सभी भावों में बदले ,इस मौसम ने भी रीत निभाई है।
बदलते मौसम का ज़िंदगी में ,असर जरूर होता है।
तय है ,पतझड़ के बाद ,बसंत के बाद पतझड़ होता है।
