Rasiya [part 58]

सुशील ओ सुशील ! बाहर निकल !लगभग चीखते हुए चतुर बोला। 

सुशील तो बाहर निकलकर नहीं आया किंतु उसके पिता और उसकी माता और भैया अवश्य बाहर निकलकर आए। क्या हुआ ? इस तरह चिल्ला क्यों रहा है ? चतुर के घरवाले बाहर आकर बोले। चतुर के तेवर देखकर उसके घरवालों ने पूछा -क्या हुआ है ?

उसके सभी घरवालों को इस तरह सामने खड़ा देखकर ,चतुर शांत हो गया ,चतुर को सुशील पर क्रोध तो आ रहा था किन्तु उसने अपना आपा नहीं खोया था ,तब  वह उनसे बोला -मुझे सुशील से बात करनी थी। 

वही तो हम पूछ रहे हैं ,क्या बात करनी है ?

कॉलेज के विषय में ही, बात करनी थी , हमें हमारे अध्यापक  ने कुछ कार्य दिया था, बात को बदलते हुए चतुर बोला। 


किंतु तेरे तेवर देखकर तो ऐसा नहीं लगता , सुशील का बड़ा भाई बोला- क्या कुछ और बात है ?क्या तुम दोनों के बीच कोई झगड़ा हुआ है ?

नहीं ,झगड़ा कैसे होगा ?वह तो अब उससे मिलकर ही बात होगी, कहते हुए उनके घर से चला आया। चतुर अब सोच रहा था ,कि यदि वह सुशील से ही बात करता है तो शायद ,वह इस बात से इनकार कर दे और मेरा कहा भी न माने ,मुझे अपने दोस्तों को भी साथ में रखना होगा।साला ! दोस्त तो वो भी था किन्तु धोखा दे गया। तभी उसे विवाह की इतनी आग लगी थी। मुझे क्या मालूम था ? वो मेरे घर में ही, सेंध लगा रहा है।  कम से कम बाकि के दोस्त तो उसे 'लानत भेज 'ही सकते हैं। यह सोचते हुए ,वह चिराग ,सुनील ,मयंक और तन्मय को बुलाने गया ,इस तरह अचानक चतुर को बदहवास सा देखकर बोले -क्या हुआ ?

तुम सभी कालीचरण काका की ट्यूबवेल पर पहुँचो ,मैं भी ,वहीं पहुंचता हूँ। कहते हुए ,अपने घर गया ,थोड़ा भोजन किया और रामप्यारी से बोला -मैं कालीचरण काका की टयूबवेल पर जा रहा हूँ , देरी हो जाये तो, घबराना नहीं। 

तू वहां क्यों जा रहा है ?और तेरा मुँह इस तरह लाल क्यों है ?तू कुछ परेशान सा भी लग रहा है ,क्या कुछ हुआ है ?

नहीं ,सभी दोस्त वहीं जा रहे हैं ,मैं भी जा रहा हूँ ,चेहरे पर जबरदस्ती मुस्कुराहट लाते  हुए बोला। 

तू मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रहा ,क्या कुछ बात हुई, तो हमें सच -सच बता देना।

 अब अपनी माँ से क्या कहे ?जिस लड़की को वो प्यार करता है ,सुशील ने जानबूझकर उसके यहां अपने रिश्ते की बात की है। सब कुछ ही बताना पड़ेगा। हो सकता है ,यह बात बड़ों में झगड़े का कारण बन जाये और बात सारे गांव में फैल जाये किन्तु माँ को भी अपनी उस जगह ,बताने का उसका उद्देश्य यही था। ताकि आपस में ,उनमें झगड़ा या कुछ मारामारी हुई तो ,मुझे वहां जाकर ढूंढ़ तो लेंगे। प्रत्यक्ष में रामप्यारी से बोला -कुछ भी नहीं है ,हमारी दोस्तों की आपस की बात है। 

हाँ ,आज मुझे तेरी बातों पर विश्वास नहीं हो रहा किन्तु कुछ झगड़ा वगैरह हुआ हो तो समझदारी से काम लेना और वहां से आ जाना। 

नहीं -नहीं ऐसा कुछ भी नहीं है ,घबराने की कोई बात नहीं है ,कहकर वह घर से बाहर निकल आया। उसे लग रहा था ,वहाँ कुछ और देर रहा तो माँ कुछ न कुछ पूछती रहेगी। 

 सभी दोस्त चतुर के घेर में इकट्ठा हुए ,तब चतुर तन्मय से बोला  -जा ,सुशील को भी बुला ला !

 न जाने ,ऐसी क्या बात है ?जो इन लोगों को इकट्ठा कर रहा है ,सभी के मन में एक प्रश्न उभर कर आ रहा था, मयंक ने पूछ ही लिया ,क्या कुछ बात हुई है ? जो तू इस तरह सबको इकट्ठा कर रहा है।

सुशील भी आ जाये ,तब वहीं चलकर बात करते हैं ,चतुर गंभीरता से बोला।  

सुशील ! चल !

कहाँ ?

पता नहीं ,सभी दोस्त एक साथ खड़े हुए तेरी प्रतीक्षा में ही हैं ,तब आगे चलेंगे।

 कुछ देर पश्चात मयंक ,सुशील को लेकर आ जाता है। उनमें चतुर नहीं था ,चतुर पहले ही कालीचरण की ट्यूबवेल पर पहुंच चुका था। जब सभी वहां इकट्टा होते हैं। वहां पहले से ही ,चतुर को देखकर बोला -क्या बात है ? मुझे यहां क्यों बुलाया है ? सुशील बोला। 

हम स्वयं नहीं आए ,हमें तो चतुर ने बुलाया है, मयंक ने जवाब दिया। 

हां भाई !क्या बात है? इस तरह यहाँ क्यों बुलाया है ?घर वाले भी कह रहे थे, बड़ा ताव  खा रहा था ,सुशील ने चतुर से पूछा। 

सुना है ,तेरे रिश्ते की बात चल रही है। 

हाँ ,तो....... 

क्या बात कर रहा है ?सुशील तेरा रिश्ता हो गया ,सभी एकसाथ आश्चर्य से बोले। 

तय नहीं हुआ है ,अभी बातें चल रही हैं ,सुशील ने स्पष्ट किया। 

तुम लोग यह जानना नहीं चाहोगे कि किसके घर इसने रिश्ता भेजा है। 

भेजा है ,हम लोगों में तो लड़की के घरवाले ही रिश्ता लेकर आते हैं ,भई !ऐसी कौन सी लड़की है ?जिसके लिए तूने रिश्ता भेजा है ,चिराग ने पूछा।  

बात को गोल-गोल न घूमाते हुए चतुर ने स्पष्ट और सीधे तरीके से सुशील से पूछा -तू तो जानता था न.....  कि मैं कस्तूरी से प्रेम करता हूं। फिर तू उसके घर रिश्ता लेकर क्यों गया ?लगभग चिल्लाते हुए बोला। 

उसके इस तरह प्रश्न पूछने पर, सुशील थोड़ा सकपका सा गया। 

वह तो घरवालों ने रिश्ता भेजा था, मुझे क्या मालूम था ,वह कस्तूरी है, जिसे तू प्यार करता है। 

बाद में तो पता चला न..... तेरे घरवालों को उसका घर कैसे मिला ? उन्हें किसने बताया ? चतुर को क्रोध आ गया, सुशील का कॉलर पकड़ते हुए बोला -झूठ मत बोल ! उसने मुझे सब बता दिया है , तू कई दिनों से उसका पीछा कर रहा था। तू मुझे ये बता ! तुझे कैसे मालूम !कि वही कस्तूरी है, या उसके लिए ही तुझे  रिश्ता लेकर जाना है।

 सभी दोस्तों ने ,चतुर को पकड़ा और बोले -इस तरह लड़ने से कोई लाभ नहीं ,बात को बैठकर सुलझाया जा सकता है।

 सुलझाने ही तो आया हूँ ,वरना...... 

वरना क्या ? तू मुझे मरेगा ,अरे मार न मार ,सीना बाहर निकाल कर उसके सामने आया। 

अरे !वहीं बैठ ! जहाँ बैठा था ,ज्यादा हेकड़ी मत दिखा ,दूर से ही बात करो !मयंक चिल्लाया। 

सुशील ,वापस अपने स्थान पर ,आकर बैठ गया ,तब बोला -यह मात्र संयोग है, मैंने कुछ नहीं किया ,सभी दोस्तों की तरफ देखते हुए सुशील बोला। 

क्या सुशील ने सच में ही, या जानबूझकर कस्तूरी के घर रिश्ता भेजा था , उसे कैसे मालूम पड़ा ? कि यही कस्तूरी है, कस्तूरी में तो इस रिश्ते को स्वीकार नहीं किया किंतु उसके माता-पिता ने, उस रिश्ते को स्वीकार कर लिया है , क्या चतुर और कस्तूरी का रिश्ता टूट जाएगा ? दो मित्रों में दरार पड़ जायेगी , मिलते हैं अगले भाग में -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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