Kanch ka rishta [part 50]

निधि से फोन करने के पश्चात, करुणा , बहुत देर तक आंखें मूंदे कुर्सी पर पीछे सर टिकाकर बैठी रही। मन ही मन सोच रही थी- जिंदगी में क्या है ?कुछ भी तो नहीं ,हम जिन रिश्तों के साथ जीते हैं ,उनके विश्वास के साथ ,वही रिश्ते कभी-कभी या समय आने पर, अपने साथ खड़े दिखलाई नहीं देते हैं । हम धोखे की जिंदगी जी रहे हैं, न जाने कब ,कौन सा रिश्ता धोखा दे जाए ? लेकिन विश्वास तो करना ही पड़ता है। सुबह से शाम तक हम इन्हीं कार्यों में व्यस्त रहते हैं। कभी बच्चों की देखभाल ,कभी पति का ध्यान ! उसके पश्चात भी हमारे, इस परिश्रम का या हमारा किसी ने ध्यान किया। कभी किसी ने पूछा-करुणा कैसी हो ?आज तो तुम थक गई होगीं , थोड़ा आराम कर लो !थोड़ी चैन की सांस ले लो ! कितना सुंदर वातावरण है  ?थोड़ा अपने लिए जी लो ! कहने को तो सभी परिश्रम करते हैं ,किशोर भी तो ,रात -दिन बच्चों के लिए ,परिवार के लिए लगे  रहते हैं ,उन्हें ही, कहां समय मिलता है ?


 अपना परिवार अपने बच्चे उन्होंने मेरे ऊपर छोड़े हुए हैं ,तो क्या मैं उनके विश्वास को धोखा तो नहीं दे सकती किंतु हां यह बात अवश्य है ,कि उनके साथ मैं, इस जीवन को सुंदर तो बना सकती हूं। बस यही सोच करुणा के अंदर, उत्साह भर गई और उसने मन ही मन कुछ निर्णय ले लिया और सीधे अपनी सास के समीप पहुंच गई। उनसे रात्रि के का भोजन के विषय में पूछा -वह आश्चर्यचकित थीं  कि अभी दोपहर का खाना खाए हुए ज्यादा समय नहीं हुआ है, आज इसे क्या हुआ है ?जो इस तरह रात्रि के भोजन के लिए पूछ रही है। बहु क्या हुआ ?तुम इस समय रात्रि के भोजन  के लिए क्यों पूछ रही हो ?

तब करुणा कहती है - आज मैंने, बाहर जाकर भोजन करने का निर्णय लिया है। प्रतिदिन खाना बनाना ! खिलाना ! बस यही तो कर रही हूं , आज मैं बाहर जाकर खाना चाहती हूं। 

यह बात बच्चों ने,कमरे में प्रवेश  करते समय सुन ली। वह लोग भी प्रसन्नता से उछल पड़े, और बोले -अच्छा, मम्मी  !आज बाहर जाने का प्रोग्राम है, हम भी साथ में चलेंगे। 

तभी उसकी सास बोल उठी -तब मुझसे  रात्रि के भोजन के विषय में क्यों पूछ रही थी ?

इसीलिए ही तो पूछ रही थी, कि यदि आपको कुछ विशेष खाना है या हल्का खाने की इच्छा है, तो मैं आपके लिए पहले ही, भोजन बना कर रख देती हूं। 

तू मेरे लिए भोजन क्यों बनाएगी ? बाहर गए हुए ,मुझे भी बहुत दिन हो गए ,दोनों -तीनों समय  तेरे हाथ का भोजन करते हुए , क्या मेरा मन नहीं करता होगा ? कि मैं भी बाहर जाकर भोजन करूं ? अपने बच्चों के साथ घूमूँ और मजे करूं !

क्या बात कर रही हैं ? दादी ! आप बाहर घूमने जाएंगीं , बच्चे आश्चर्य से बोले। 

क्यों मेरे दांत नहीं है? मैं खा नहीं सकती, अभी इतनी बुढ़िया भी नहीं हुई हूं कि घूम भी नहीं सकती , अपनी सास की बात सुनकर करुणा प्रसन्न  हो गई और बोली -यदि आपकी ऐसी इच्छा थी ,तो आपने पहले क्यों नहीं बता दिया ?

मैं तो यही सोच रही थी ,कि सारा दिन बच्चों के कार्य में लगी रहती है ,थक जाती होगी, और फिर तुझे लगेगा कि सास को घूमने का चस्का लगा है ,कहते हुए वह हंसने लगी। 

यह सब ,मैं क्यों कहूंगी ? आप पहले कहतीं - तो थोड़े दिन और अच्छा सा माहौल बन जाता , बस आपके बेटे की फिक्र है, कहीं ऐसा न हो ,वह ही जाने से इनकार कर दें !

क्या ?इस विषय में उससे ,तेरी कोई बात नहीं हुई। हां ,यह तो हो सकता है किंतु कोई बात नहीं मैं उसे मना लूंगी। अब तुम सब जाने की तैयारी कर लो ! किसी अच्छे से होटल में, रात्रि का भोजन करेंगे ! दादी मस्ती में बोली। 

बच्चे भी प्रसन्न हो गए, करुणा तो प्रसन्न थी ही, उसकी जिंदगी को देखने का नजरिया जो बदलता जा रहा था। अब किशोर की ही, हां की आवश्यकता थी। अभी शाम होने में समय है इसीलिए करुणा अपने बचे  हुए कार्य निपटान लगी, और बच्चे अपना ग्रह कार्य पूर्ण करने लगे। उसके हाथ कार्य तो कर रहे थे किन्तु विचार अपने आप आ जा रहे थे ,मन ही मन करुणा सोच रही थी -जब सकारात्मक ऊर्जा और सकारात्मक विचार हमारे मन में आने लगते हैं तो कितना उत्साह ! जाग जाता है, तन में भी स्फूर्ति आ जाती है। सब कुछ तो मेरे हाथ में है , फिर भी मैं न जाने क्यों अपने को बेबस और लाचार पाती हूं, गलती  किसी की भी नहीं है  मैंने ही कभी अपनी ओर ध्यान ही नहीं दिया ,अपने लिए सोचा ही नहीं, आज सोचने लगी हूं, तो परिवार भी खुश है। सभी कार्य निपटाकर करुणा, ने  सुंदर सी साड़ी निकाली। उसने  बच्चों के और किशोर जी के कपड़े भी निकाल दिए थे।

 उसकी सास तो पहले से ही 'कॉटन सिल्क 'की एक अच्छी सी साड़ी निकाल कर, बैठी हुई थी। करुणा से पूछा -क्या तुम्हारा कार्य पूर्ण हो गया ?तो तैयार हो जाओ !

अपनी सास की साड़ी देखकर करुणा बोली -मम्मी जी !आपने कितनी प्यारी साड़ी निकाली है ?

 हां ,आज अपने बच्चों के साथ, बाहर' डिनर 'पर जो जा रही हूं ,कहते हुए मुस्कुराने लगीं , यह मेरे लिए  एक यादगार दिन होगा। 

करुणा सोच रही थी -मैंने अपनी सास का ऐसा रूप तो पहले कभी नहीं देखा , इतना बदलाव एकदम से कैसे ? तब वह बोली -मम्मी जी !इस तरह से तो आपने पहले कभी व्यवहार नहीं किया। 

तुमने ही कब बेटी समझ कर मुझसे  इस तरह से बात की थी, हमेशा मुझे अपनी सास ही समझती रही, मैं तो पहले से ही ऐसी थी किंतु तुम मुझे सास समझती थी तो मैंने  भी, सास का फर्ज निभाया। अब जल्दी से तैयार हो जाओ !मुझे भी , तैयार होने दो !

जी, मुस्कुराते हुए कहकर करुणा अपने कमरे में आ गई , यह वही साड़ी है, जिसे किशोर जी उसके लिए पहली शादी की सालगिरह पर लाए थे। तब से एक या दो बार ही पहन पाई हूं , आज दोबारा वही दिन ,वही यादें ,वही समय ,आ गया ,इस सोच के साथ व्यतीत करने का मन कर रहा है। 

करुणा के  तैयार होते-होते, किशोर जी भी आ गए ,करुणा को इस तरह देखकर, बोले - आज क्या ,कहीं जा रही हो ?

हां,मम्मी जी के साथ डिनर पर जा रही हूं, मन ही मन करुणा घबरा रही थी ,कहीं किशोर जी, थकावट का बहाना न बना दें ,इसलिए उसने पहले ही, अपनी सास का नाम ले लिया। 

क्या किशोर अपने परिवार के साथ, बाहर होटल में खाना खाने जाएगा , या अपने बजट का रोना रोएगा। क्या ,करुणा  ने सास का नाम लेकर सही किया ? आईये ! मिलते हैं ,अगले भाग में...... 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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