Rasiya [part 57]

अचानक एक दिन चतुर को पता चलता है ,कस्तूरी के लिए किसी का रिश्ता आया है। यह बात जानकर चतुर परेशान हो जाता है और समय मिलते ही ,कस्तूरी से मिलने पहुंच जाता है किन्तु वहाँ घर की हालत देखकर परेशान हो जाता है। उसे कस्तूरी अपने कमरे में बेहोश मिलती है। तब वह उससे रोते हुए ,शिकायत भरे लहज़े में बताती है -कि तुमने आने में देरी कर दी। 

अपनी बेचैनी छुपाते हुए ,चतुर उससे पूछता है -क्या उसका रिश्ता तय हो गया है ? चतुर ने देखा ,कस्तूरी पहले से बहुत कमजोर लग रही है ,आखिर इसे क्या हुआ है ?

 तय ही समझो !उसकी आंखों में आँखें डालते हुए बोली -वो तो इतने दिनों से घर में मेरा ,अपने ही परिवार से झगड़ा चल रहा था। मैंने कहा -मुझे अभी आगे पढ़ना है ,किन्तु मम्मी ने मना कर दिया। 


तय ही समझो !इसी वाक्य पर चतुर की सुईं अटक गयी ,बोला -मतलब ! वह लड़का ,बहुत दिनों से मेरा पीछा कर रहा था , और एक दिन मेरे घर तक पहुंच गया ,मुझे यह बात पता ही नहीं थी किंतु उसने मुझे यह बात बताई  और घरवालों से, विवाह की बात भी की।

 तब तुम्हारे परिवार वालों ने क्या सोचा ? उन्हें इस विवाह में कोई बुराई नजर नहीं आई, क्योंकि वह अपने को बहुत पैसे वाला बता रहा था। 

क्या काम करता है ?

कह रहा था -काम की जरूरत ही नहीं है, खेती-बाड़ी बहुत अच्छे से होती है। 

इसका मतलब किसी गांव से संबंधित है , किस गांव का है ?

जिस गांव से तुम आते हो। 

क्या कह रही हो ? मेरे ही गांव का लड़का कोई रिश्ता लेकर आता है और वह भी तुम्हारे लिए ,उसका नाम बताओ ! क्रोधित होते हुए चतुर ने पूछा। 

गहरी सांस लेते हुए कस्तूरी बोली -उसका नाम 'सुशील 'है ?

क्या ? चतुर को जैसे कई बिच्छुओं ने डंक मारा हो ,कहकर वह उठ खड़ा हुआ। ऐसा कैसे हो सकता है ? वह तो जानता है, कि तुम मेरी हो। क्रोध के कारण, और सुशील की धोखेबाजी के कारण ,आज चतुर को पहली बार, बहुत अधिक गुस्सा आया। क्रोध से कांपने लगा, उसका क्रोध से तमतमाया लाल चेहरा देखकर, कस्तूरी घबरा गई और चतुर से लिपट गई। तुम थोड़ा शांत हो जाओ ! पास में रखें ,पानी के गिलास को उसे दिया। पानी पीकर वह थोड़ा शांत होकर, वहीं बैठा और बोला -तुम्हारे घर वालों का क्या जवाब है ?

उनकी तो हाँ है ,किन्तु मैं सच कह रही हूँ ,यदि तुम आने में देरी करते तो...... मैं कुछ कर बैठती। 

तुम ऐसा क्यों कह रही हो ?थोड़ा नरम होते हुए चतुर बोला -क्या तुम्हें ,अपने चतुर पर भरोसा नहीं है। 

तुम पर तो भरोसा है किन्तु अपने परिवारवालों पर नहीं ,वे ही मेरे अपने ,मेरे दुश्मन बने हुए हैं। उन्हें इस रिश्ते में कोई बुराई नजर नहीं आ रही है। 

तुम एक बात बताओ !तुम बेहोश कैसे हो गयी थीं ? और काफी कमजोर भी लग रही हो। 

वो...... मैंने कल से भोजन नहीं किया है ,अपनी पलकें झुकाकर ,आँखों में आती नमी को अपने दुपट्टे के कोने से पोंछते हुए ,अपराधबोध से बोली। 

चतुर ने उसकी तरफ देखा ,एक ही दिन में ,कैसी मुरझा गयी है ?ये क्या कह रही हो ?मरने का इरादा था ,तभी मन में विचार आया -यह मुझसे कितना प्यार करती है ?सोचकर भावुक हो उठा और उसे अपने सीने से लगा लिया ,जैसे अपने जलते सीने को ठंडक देने का प्रयास कर रहा हो। तब बोला -क्या तुम्हारे घरवालों ने तुमसे नहीं पूछा ,कि तुम विवाह करना क्यों नहीं चाहती हो ?

हाँ ,बताया था -अभी मुझे आगे पढ़ना है। 

तभी चतुर उसे छोड़कर ,वह नीचे चल दिया और सीधे एक कमरे में पहुंचा ,छोटा सा मकान था ,उसे ढूंढने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई , वह रसोई तक पहुंच गया और वहां पर खाने का सामान ढूंढने लगा। सब्जी रोटी बनी रखी थी। एक थाली में, रोटी और सब्जी लेकर, कस्तूरी के पास आया और अपने हाथों से उसे भोजन कराने लगा। 

नहीं ,मुझे अभी भूख नहीं है, कस्तूरी अनमने भाव से बोली। 

कैसे भूख नहीं है ? तुम्हारा स्वस्थ रहना आवश्यक है , अभी बेहोश हो गई थी न....... घर वाले भी कैसे हैं ? बेटी भूखी है, और उनके गले से खाना कैसे उतर रहा है ?

 उन्हें पता ही नहीं है, बस चुपचाप खाना वापस रख आई थी। 

बहुत अच्छे, यदि तुम्हारी हालत ज़्यादा बिगड़ जाती, मैं नहीं आता ,हो सकता है ,कुछ और भी दुर्घटना हो सकती थी। तब क्या होता ? इस तरह भोजन न करना, क्या यह किसी समस्या का हल है ? तुम मेरी प्रतीक्षा तो कर सकती थीं। 

हो सकता है, तुम्हारी प्रतीक्षा में ही, अब तक जिंदा हूं। तुम्हारे भरोसे ही तो अभी, इन लोगों से लड़ रही हूं। 

अच्छा -अच्छा अब लड़ने की आवश्यकता नहीं है ,अब मैं ही कुछ करता हूँ। 

तुम क्या करोगे ?

अच्छा ये बताओ !तुम्हारा परिवारवाले कहाँ गये हैं ?

हम पड़ोस में ,ही एक दावत थी उसमें गए थे, किन्तु तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?दोनों ने दरवाजे की तरफ देखा तो कस्तूरी की माँ खड़ी उन्हें ही देख रही थी। चतुर से सवाल का जबाब उन्होंने ही दिया था किन्तु उनके तेवर देखकर लग नहीं रहा था कि वो चतुर को देखकर प्रसन्न हुई हैं।

अरे ,आंटीजी !आप अच्छा हुआ आप आ गयीं ,मैं आज शहर में आया था ,सोचा -तुम लोगों से मिलता चलूँ किन्तु यहाँ आया तो दरवाजा खुला था और जब अंदर आया तो ये बेहोश थी। 

यह तुम क्या कह रहे हो ? वह भला क्यों बेहोश होने लगी ?

इसी से पूछ लीजिए, जब इसमें दो  दिनों से खाना नहीं खाया है।

क्यों री ? तू क्यों हमारी परेशानी बढ़ाने पर लगी हुई है   ? बाहर के लोगों के सामने हमारी बेइज्जती करने पर आ गई है। 

आंटी जी ! आप यह क्या कह रही हैं ? अब क्या मैं बाहर का आदमी हो गया ?

तुम घर के आदमी ही कब थे ? वो कठोरता से बोली। अब चतुर को लगने लगा कि वह, काफी गुस्से में है और चतुर की बेइज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।

 चतुर को यह बात बहुत बुरी लगी ,तभी मोहित आगे आकर बोला -भइया मेरे लिए आये हैं। हमारे मास्टर जी भी हैं। अब ये तो इसकी गलती है जो यहाँ बेहोश पड़ी थी। ये तो अच्छा हुआ ,घर में गलत आदमी नहीं घुसा वरना अब तक चोरी हो गयी होती। मोहित के इस तरह बात करने पर चतुर शांत होकर वहीँ बैठ गया  और बोला -मुझे बताइये ! तो सही ,क्या हुआ है ?



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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