Rasiya [part 55]

मेरी जान ! मेरे सपनों की रानी ! और भी न जाने तुम्हें क्या-क्या लिखूं  ? कुछ समझ नहीं आ रहा। जो भी सोचता हूं, वही कम लगता है, दिल में आता है ,न जाने तुम्हें क्या-क्या लिखूं ? किंतु तुम तो मेरी 'कस्तूरी 'हो, जिसकी महक मेरे सांसों में समाई है। तुम तो स्वयं में,'सुगंध 'का भंडार हो ! जो तुम्हें एक बार देख ले ,तो  तुम्हारा ही होकर रह जाए ,जैसे -मैं ! बहुत दिनों से तुम्हें पत्र लिखने की सोच रहा था ,क्योंकि अब हमें कोई परेशानी नहीं होगी ,जब से तुमने और मैंने तय किया है कि हमें वह पत्र ! किसके माध्यम से प्राप्त करना है ?मैं उम्मीद करता हूँ ,हम आगे भी जीवन में ,इसी तरह मिलकर अपने फैंसले लिया करेंगे और तुम हमेशा मेरा साथ दोगी।  मुझे अपनी तो कोई परवाह नहीं है, किंतु तुम्हारा ही ख्याल है , कहीं मेरे कारण, तुम्हें कोई परेशानी न हो ! 

उस दिन जब  मैं,'' गणपति जी'' को लेने आया था। उसी दिन हमें उन्होंने अच्छा मौका दिया। हालांकि मेरे साथ मेरे पिता भी थे किंतु मैं तुम्हारे लिए उन्हें, प्रतीक्षा करने के लिए कहकर आया था और जब तुम मिली हम दोनों उस बगीचे में मिले। कभी उस और ध्यान ही नहीं गया था कि वहां एक इतना खूबसूरत बगीचा भी है तुम्हारे और मेरे मिलने का साधन बन जाएगा। यह सब, गणपति जी की ही कृपा है।


 

जब हम कुछ अच्छा करने के लिए चलते हैं ,तो हमारे साथ अच्छा ही होता है, अपने अनुभव से मैंने यही जाना। 

आज भी मैं तुम्हारे लिए एक पत्र लिख रहा हूं ,हो सकता है ,तुमने भी मेरे लिए कोई पत्र लिखा हो और 'बगीचे 'में उसी  स्थान पर, मैं अपना पत्र छोड़ दूंगा, क्योंकि आज शुक्रवार है ,तुम्हें प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी। हमने पहले ही तय कर लिया था ,हर शुक्रवार या शनिवार को, एक पत्र हम एक दूसरे के लिए छोड़ा करेंगे। आज मैं निश्चिंत होकर, बिना किसी घबराहट के तुम्हारे लिए एक पत्र लिख रहा हूं। एक तरीके से देखा जाए तो....... जिस दिन हमने गणेश जी की स्थापना की थी, हमारे पत्रों की शुरुआत उसी दिन से ही आरंभ हुई थी और जब तक मैं तुम्हारे घर, घोड़ी पर बारात लेकर नहीं आ जाता। तब तक प्रभु की कृपा से, हमारे पत्रों का सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। ऐसा नहीं, कि हम कभी मिलेंगे नहीं, किंतु हमारी मोहब्बत अब यूं ही परवान चढ़ती रहेगी। समय यूं ही बीतता जा रहा है, आज ''गणपति विसर्जन ''भी हो गया। उनसे हमने अगले वर्ष आने का वादा जो लिया है, तुम्हें मालूम है, मेरे साथ के ही कई लड़के हैं, जिनका विवाह हो गया है, किंतु मैंने ही सोचा है , अगले वर्ष में पिताजी से ,अपने और तुम्हारे विवाह की बात करूंगा। तब तक हम थोड़ा प्यार - मोहब्बत का, और इंतजार का मजा लेते हैं। ऐसा लग रहा है ,तुम मेरे सामने बैठी हो, और मैं तुमसे बतिया रहा हूं। अब लगता ही नहीं ,तुम मुझसे दूर हो ! बस परेशान मत होना ! मेरी प्रतीक्षा करना ! तुम्हारा यह चतुर तुम्हें लेने जरूर आएगा। 

हम चाहते तो, हम एक दूसरे से मिल भी सकते थे, छुप-छुपकर मिलने का मजा ही अलग है किंतु मैं, इस समाज के दायरे भी जानता हूं। क्या तुम जानती हो ?'' गणपति जी ''को स्थापित करने के पश्चात, दान -पात्र में बहुत धन आया , हमने वह धन गरीब बच्चों के लिए एकत्रित कर लिया है। मेरे मित्र !शरारती तो हैं किंतु अच्छे हैं , मैंने उन्हें तुम्हारे विषय में बताया हुआ है। तुमसे मिलने की बहुत इच्छा होती है उनकी ! किंतु तुमसे मिलवाया नहीं, क्योंकि अभी तुम्हारा और मेरा विवाह नहीं हुआ है। कमीने  हैं ! मैं भी न जाने, क्या-क्या लिखता जा रहा हूं ?

 मुस्कुराते हुए चतुर ने , अपनी हाथ की उंगलियों को, कुछ देर आराम दिया और सोचने लगा-क्या यह पत्र मैंने  सही लिखा है ? इसमें प्यार भरी बातें कहां है ? या  मुझे '' प्रेम पत्र ''लिखने के लिए किसी से सहायता लेनी चाहिए। यहां कौन ऐसा अच्छा होगा ? जो बहुत अच्छा 'प्रेम पत्र 'लिखना जानता होगा। मेरी नजर में तो कोई भी, ऐसा नजर नहीं आ रहा जो ,बहुत ही खूबसूरत 'प्रेम पत्र लिख' सके। कस्तूरी की प्रशंसा कर सके और किसी को पता चल भी गया। हो सकता है ,सारे गांव में यह बात फैल जाए। वापस उस पत्र को, पढ़ने लगा। कुछ गलत तो लिखा ही नहीं है, फिर मुझे अच्छा क्यों नहीं लग रहा ? शायद ,इसमें  कस्तूरी की प्रशंसा नहीं है। अबकी बार यह पत्र में ऐसे ही भेज दूंगा अगली बार, किसी से पूछकर पत्र लिखूंगा। सोचते हुए चतुर ने, उस पत्र में अपनी अंतिम लाइन लिखी , तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा-प्यार !

यार ! एक बात बताओ ! क्या आज तक किसी ने, किसी को, कोई ''प्रेम -पत्र ''लिखा है। कॉलेज जाते समय, चतुर ने अपने दोस्तों से पूछा। 

हां ,हमारी तो बहुत सारी, प्रेमिकाएं हैं , जिन्हें हम अक्सर पत्र लिखते रहते हैं ,सुशील चिढ़ते हुए बोला-कॉलेज में इसीलिए तो दाखिला लिया था, ताकि शहर की कोई अच्छी सी लड़की पट जाए किंतु आज तक किसी ने भी, इधर देखा ही नहीं। अरे !ज्यादा की इच्छा नहीं थी, एक ही मिल जाती, तो कम से कम उसे'' प्रेम -पत्र'' लिखने का अनुभव तो हो जाता। कल को यदि हमारे माता-पिता हमारा विवाह कर देते हैं , और हमारे बच्चों को, किसी से प्रेम हो जाता है। तो हमारे पास तो'' प्रेम -पत्र ''लिखने का अनुभव ही नहीं है। यदि किसी बच्चे ने यह पूछ लिया -पापा जी ! एक प्रेम -पत्र लिखवा दीजिए ! तो हम उसे क्या जवाब देंगे ? हम तो शर्म से गड़  ही जाएंगे। बच्चे भी हसेंगे, आप की तरफ एक लड़की ने भी नजर भरकर नहीं देखा। 

सुशील की बातें सुनकर, उसके सभी मित्र हंसने लगे, यार !यह बात तो तू सही कह रहा है , हम इतने लंबे होते जा रहे हैं। हट्टे -कट्टे जवान हैं,  आज तक एक लड़की नहीं पटी , यह हमारे लिए डूब मरने की बात है। 

अरे तुम चिंता क्यों करते हो ? तुम्हारे बच्चों का काका होगा ना...... उसे बड़ा अनुभव है पत्र लिखने का ! चतुर की साइकिल पर पीछे बैठा, मयंक बोला। 

कौन सा ?काका ! यही जो साइकिल चला रहा है , कस्तूरी और इसकी प्रेम कहानी चल रही है किंतु यह  हमसे प्रेम- पत्र के विषय में पूछकर हमारे ''जले पर नमक छिड़क रहा है।''

क्या बात कर रहा है ?

यकीन नहीं होता तो इसी से पूछ लो ! यह कस्तूरी को, पत्र लिखता है किंतु और अच्छा और बेहतर लिखने के लिए हमारी राय मांग रहा है। 

यह तो वैसे ही फालतू बोलता रहता है , चतुर उसकी बात को झूठलाते हुए बोला- तूने कब मुझे पत्र लिखते हुए देखा ?

इसमें देखने की जरूरत नहीं है, इतना तो अनुभव मुझे है ,मयंक, किसी ज्ञानी बाबा की तरह बोला-वैसे एक बात पूछूं  ! हमारे गांव में, किसका ऐसा प्रेम संबंध रहा है  ? जिसने अपनी प्रेमिका को कोई प्रेम पत्र लिखा हो। 

सभी सोचने लगे और बोले -हमारे गांव में आज तक किसी का कोई ऐसा प्रेम संबंध नहीं रहा, हां विवाह के बाद तो पत्र आते जाते रहते ही हैं। किंतु उन पत्रों में वो वाली बात नहीं होती , जो विवाह से पहले के पत्रों में होती है चिराग बोला - अब यह चतुर महाशय हैं ! यह वही काम कर रहे हैं , जो आज तक हमारे गांव में किसी ने नहीं किया। काका भी , इन्हें पाकर धन्य हो गए। अपने घर का ही नहीं गांव का नाम भी रोशन करेंगे।  चिराग की बात सुनकर सभी हंसने लगे। 

यह साहस भी , हर किसी में नहीं होता , जो 'लीक' से हटकर काम करें। 

यार !यह सब बातें छोड़ो ! मैंने तो अपनी बात कह कर एक मुसीबत ही मोल ले ली किंतु तुम्हारे लिए एक बात और बता रहा हूं। अब तुम यह सब बातें छोड़ो ! और इम्तिहान की तैयारी करो ! इम्तिहान की तारीख शीघ्र नजदीक आने वाली है। सभी को मेहनत से,अब आगे बढ़ना है। अब कुछ दिनों के लिए हंसी- मजाक बंद करना होगा। 

हां ,यार !मैं तो भूल ही गया था, कल सर ने एक रजिस्टर मंगवाया था, तब मैंने वहां पर'' डेट शीट ''देखी थी। 

चतुर को न जाने जिंदगी के कितने इम्तिहान और पास करने होंगे ? क्या उन इम्तिहानो में, वह पास होगा ? और किस तरह जिंदगी में आगे बढ़ेगा ? जानने के लिए पढ़िए -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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