Rasiya [part 53]

आज न जाने क्यों चतुर ने, छुट्टी ली है ? उसके सभी दोस्त !उसके घर के बाहर आकर ,उसका नाम पुकार रहे थे।चतुर !आजा !देरी हो रही है। 

 पहले तो वह बाहर ही नहीं आया, किंतु कुछ समय पश्चात, बाहर आकर बोला -आज मैं ,नहीं जाऊंगा,तुम लोग चले जाओ !

क्यों ,क्या हुआ ? मुझे कुछ आवश्यक कार्य आ गया।
क्यों ? लड़कीवाले देखने आ रहे हैं ,सुरेश ने व्यंग्य किया। उसकी बात सुनकर सभी हंसने लगे। तुम लोग भी न..... कुछ भी सोच लेते हो। उसकी बात सुनकर मयंक का चेहरा उतर गया किन्तु मयंक की परेशानी चतुर भांप गया और मयंक से बोला - तू परेशान ना हो, मेरा प्रबंध मैंने कर दिया है, आज तू मेरी साइकिल  लेकर जाएगा। 


यदि तुझे कोई काम आन पड़ा तो क्या करेगा ? मयंक चिंतित होते हुए बोला। 

तू ,उसकी चिंता न कर, कुछ न कुछ प्रबंध तो हो ही जाएगा। 

वैसे आज तू छुट्टी क्यों ले रहा है ? चिराग ने पूछा।

 हम जीवन में सारा दिन काम करते हैं , मेहनत करते हैं एक दिन आराम के लिए छुट्टी ली है।समझा करो !यार ! 

हम कुछ समझ नहीं , समवेत स्वर में वे बोले और आगे बढ़ गए। हो न हो ,यह हमसे अवश्य ही ,कुछ न कुछ छिपा रहा है।

 इस गांव में लड़के के दसवीं करते ही रिश्ते आने आरम्भ हो जाते हैं। रोजगार के नाम पर ,उनकी खेती -बाड़ी देखते हैं। बस खेती अच्छी होनी चाहिए ,और खेती के लिए जिस पर सबसे ज्यादा जमीन !वही उतना ही सम्पन्न ! गाँव में कई लड़कों के विवाह हो भी चुके हैं इसीलिए जब कभी ऐसी बात दिखती तो सभी आँख मूंदकर यही सोचते -लड़कीवाले देखने आ रहे होंगे। 

अरे !नहीं ,अपना यार है और कस्तूरी का भी कहते हुए ,सतीश ने अन्य दोस्तों की तरफ ''आँख मारी ''

कह तो तुम ,सही रहे हो ,इसका प्यार तो कस्तूरी है किन्तु एक बात है ,ये हमें बहकाकर यहाँ तक ले आया किन्तु दोस्तों पर विश्वास नहीं ,साले !ने एक बार भी उससे नहीं मिलवाया। 

उसकी मर्जी ! वैसे उसे भी पता है ,मेरे दोस्त पूरे कमीने हैं ,कहते हुए चिराग़ हंसने लगा। न  जाने, यह क्या करता रहता है ? और क्या सोचता है ? कल तो कह रहा था,' गणेश चतुर्थी 'पर कुछ हंगामा करेंगे। आज न जाने क्यों ? छुट्टी लेकर बैठ गया। इन सभी दोस्तों में यदि एक भी छुट्टी ले लेता है या उस दिन मन नहीं लगता। उस दिन, दिन नहीं बनता, क्योंकि सभी को एक दूसरे की आदत पड़ चुकी है। 

वैसे वह क्या समझाना चाहता था ? सुनील बोला। 

जो भी हो, आज संपूर्ण योजना विफल हो गई। हम सभी मित्र आज,' गणपति जी 'की स्थापना करने के लिए पैसे इकट्ठे करने वाले थे। मयंक तो मन ही मन प्रसन्न हो रहा था, अच्छा हुआ, अब मुझे कोई पैसा नहीं देना पड़ेगा। 

दोस्तों, के जाने के पश्चात ,चतुर अपने घर गया और भोजन करने के पश्चात,वह श्रीधर जी के साथ चलने के लिए तैयार हो गया। तभी श्रीधर जी से मिलने बाहर कोई आया ,तब वो बोले -अभी आता हूँ ,कहकर बाहर निकल गए। 

चतुर अपने कमरे में गया। सोचा ,कुछ देर अपनी पढ़ाई ही कर ली जाये। जैसे ही ,अपने बस्ते से पुस्तक निकाली तभी एक कागज उसमें से बाहर निकलकर गिर गया। यह क्या है ?देखने के लिए जैसे ही झुका ओह ,नहीं  ! ये पत्र तो मेरे ही पास है। कस्तूरी को ये पत्र देना भूल गया, वो तो मेरे जबाब की प्रतीक्षा में होगी ,माथा पकड़कर बैठ गया ,मैं कैसे भूल गया ?उसे देखते हुए कस्तूरी के विचार ,उसका पत्र ,मन और विचारों पर हावी होता चला गया। अब उससे मिलने की बेचैनी होने लगी। आज उससे मिलना ही होगा और उससे बात भी करनी होगी। अब पढ़ाई में मन भी नहीं लग रहा था ,सोचा -आज  पापा से बात करके देखता हूँ किन्तु मैं उनसे क्या कहूंगा ? भला बच्चे भी कोई ,अपने पिता से अपने ही विवाह की बात करते हैं। उससे मिले इतने दिन हो गए ,प्रतीक्षा करते उम्मीद छोड़ दी होगी या फिर नाराज बैठी होगी। यही तो समझ नहीं आ रहा ,उसे यह पत्र कैसे भेजूं ?

चतुर ! अरे कहाँ गया ?आ चल चलते हैं ,बाहर से श्रीधर जी ने आवाज लगाई। 

अभी आया कहते हुए ,अपना बस्ता वापस रखा और पत्र को अपनी जेब के हवाले किया। कहने को तो चतुर छह फुट के करीब लम्बा हो गया है किन्तु अपने माता -पिता के सामने अभी भी अपने को एक छोटा बच्चा ही समझता है। पिता की आवाज के साथ ही बाहर आ गया और बोला -चलिए ,पिताजी ! कहते हुए दोनों बाप -बेटा बाहर निकल गए। श्रीधर जी ने ट्रैक्टर चालू किया और दोनों ही उस पर बैठकर गांव से बाहर जाने वाले रास्ते की ओर बढ़ चले।

 पूरे गाँव में सिर्फ दो घरों में ही ट्रैक्टर है ,एक चतुर के घर दूसरा रामसिंह जी के यहाँ है। एक तरीके से देखा जाये तो श्रीधर जी का प्रतिद्व्न्दी भी कह सकते हैं। उनकी श्रीधर जी से उनका शीत युद्ध चलता रहता है ,कभी सामने पड़कर ,दोनों ने आपस में बातचीत भी नहीं की ,सामने आ भी गए तो आराम से दुआ -सलाम हुई किन्तु वो श्रीधर जी से अपने को बड़ा मानते हैं। पैसे में ,खेती -बाड़ी में अपने को उनसे अधिक सम्पन्न दिखलाना चाहते हैं। 

अब बताओ !कहां चलना है ? श्रीधर जी ने चतुर से पूछा। 

उसी  शहर चलते हैं, वहीं पर कुछ जानकारी हासिल होगी। जो भी कार्य हम पहली बार कर रहे हैं, मैं चाहता हूं अच्छा और शुभ हो !

तुम हमारे इकलौते और लाडले बेटे हो ! अब तुम्हारी मर्जी में ही, हम अपनी खुशी ढूंढ लेते हैं , कहते हुए श्रीधर जी जोर-जोर से हंसने लगे। जैसा तुम चाहो ! नई पीढ़ी है, नई नस्ल है, इस गांव में ,कुछ तो नया होगा ही। यह वही कस्बा है, जिसके विद्यालय में आजकल चतुर पढ़ता है, प्रतिदिन यहां पर पढ़ने के लिए आता है और एक माह  यहां रहकर भी गया है, यहीं पर उसकी प्रेमिका कस्तूरी भी रहती है। इस कस्बे से, उसकी बहुत सारी यादें जुड़ गई हैं। गांव का कोई व्यक्ति यदि सफेद कुर्ते पजामे में और वह भी ट्रैक्टर पर आता है , उसका रुआब अलग ही होता है, वहां के लोग, उसे ऐसे देखने लगते हैं जैसे कोई तमाशा हो रहा है। इन सब चीजों से बेपरवाह दोनों बाप -बेटा एक जगह अपना ट्रैक्टर रोक कर , पैदल ही निकल पड़ते हैं। उन सड़कों पर घूमते हुए, आज चतुर को ऐसा लग रहा था जैसे कोई राजा, अपनी प्रजा के लिए भ्रमण पर निकलता है। कुछ देर के पश्चात ही, जिस चीज की उन्हें चाहत थी वह मिल गई। तभी चतुर को वह पत्र स्मरण हो आया और अपने पिता से बोला -मैं अभी आधा घंटे में आता हूं , वह कस्तूरी की तलाश में उसके स्कूल की तरफ गया। घड़ी में समय देखा, अभी छुट्टी नहीं हुई है छुट्टी होने में अभी 15 मिनट बाकी हैं। प्रतीक्षा में बेचैनी से इधर-उधर टहलने लगता है। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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