समय की चाल संग, हवाएं भी ,बदली बदली सी हैं।
प्यार -अपनेपन की हवा, न जाने कहां खोई सी है ?
कुछ चंचल सी थीं , आज कुछ गंभीर हो गयी हैं।
मचलती सी ,मिलने को आतुर, कहाँ खो गयी हैं ?
मिलती अपने प्रिय से ,आँचल क्यों उडा सा है ?
कभी छिटककर , कहीं दूर चली गयीं हैं।
प्यार ,विश्वास ,अपनेपन की,भोली,खोई हवाएं !
न जाने , किन गलियों में कहाँ भटक गयीं हैं ?
बेतरतीब गली -कूचों में से होती हुई,
संकीर्णता की तंग गलियों में फंस गई।
उलझन भरी ,इस ड़गर में उलझ गयी।
जो हवाएं !पहले थीं ,जानेअब कहाँ गयीं ?
किस पर करें ?विश्वास ! कुछ खोई सी ?
संपूर्ण जग भ्रमण किया, शांत न रह सकी।
जीवन -डगर में ,सबक अपना स्मरण नहीं ,
विचलित सी,आज क्यों बहकी -बहकी सी है ?
जा रहीं ,किस डगर ?यह अनुमान नहीं।
कभी फंसी तूफानों में ,कभी बरसात भी ,
हवाओं सी बालाएं , डगर स्मरण नहीं।
जीवन का अर्थ, जाने क्यों भटका रहा है?
क्या ?यह दोष समय का है,वही करवा रहा है।