Khoi havayen

 समय की चाल संग, हवाएं भी ,बदली बदली सी हैं।

 प्यार -अपनेपन की हवा, न जाने कहां खोई सी है ?

 कुछ चंचल सी थीं , आज कुछ गंभीर हो गयी हैं।

 मचलती सी ,मिलने को आतुर, कहाँ खो गयी हैं ?



 मिलती अपने प्रिय से ,आँचल क्यों उडा सा है ?

 कभी छिटककर , कहीं दूर चली गयीं हैं।  

प्यार ,विश्वास ,अपनेपन की,भोली,खोई हवाएं !

न जाने , किन गलियों में कहाँ भटक गयीं हैं ?


बेतरतीब गली -कूचों  में  से होती हुई, 

संकीर्णता की तंग गलियों में फंस गई। 

उलझन भरी ,इस ड़गर में उलझ गयी। 

जो हवाएं !पहले थीं ,जानेअब कहाँ गयीं ?

 

किस पर करें ?विश्वास ! कुछ खोई सी ?

संपूर्ण जग भ्रमण किया, शांत न रह सकी।

जीवन -डगर में ,सबक अपना स्मरण नहीं , 

विचलित सी,आज क्यों बहकी -बहकी सी है ?

 

जा रहीं  ,किस डगर ?यह अनुमान नहीं। 

कभी फंसी तूफानों में ,कभी बरसात भी ,

हवाओं सी बालाएं , डगर स्मरण नहीं। 

जीवन का अर्थ, जाने क्यों भटका रहा है?

क्या ?यह दोष समय का है,वही करवा रहा है। 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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