प्रभा अपनी कहानी में करुणा को बताती है ,कि मेरी मम्मी को शराबी लोग पसंद नहीं थे, किंतु मेरे कारण उन्होंने मेरे विवाह के लिए एक शराबी लड़के को पसंद कर लिया। उस समय उनके लिए, समाज में अपनी इज्जत बचाना जरूरी था। भाइयों को भी, इस बात का पता नहीं चलने दिया था यदि उन्हें पता चल जाता तो माँ को ही ताने सुनने को मिलते और बहुएं अलग व्यंग्य करतीं। एक बार पिता ने पूछा तो था -गीता ! तुम इसके विवाह के लिए इतनी जल्दी क्यों कर रही हो ? हमने लड़के की ठीक से देखभाल भी नहीं की ,कैसा लड़का है ,क्या करता है, कितना खाता -कमाता है ?
जो मैं कर रही हूं, उचित ही कर रही हूं ,जबकि यह लड़का पुष्पा ने ही बताया है। अपनी बेटी के भविष्य को सोच कर ही कर रही हूं , बड़ी बेटी की तो यहां बैठे उम्र ही निकल गई ,अब क्या छोटी को भी ,यहीं बैठा कर रखने का इरादा है,उन्होंने जवाब दिया।
ठीक है, जैसी तुम्हारी इच्छा! हां विवाह की उम्र तो हो ही गई है , जितना जल्दी हो जाए तो हम अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हों। घर में लड़के वालों को बुलाने की, और लड़की दिखाने की रस्म भी करनी थी, क्योंकि वह एक बार लड़की को अवश्य देखना चाहते थे। खास तौर पर लड़के की बहुत इच्छा थी, एक दिन तय किया गया , और प्रभा को कुछ ढीले से कपड़े पहनाकर एक बड़ी मेज के सामने बैठा दिया गया। ताकि उसका आधा तन ढका रहे।
गीता जी मन ही मन वह सोच रही थीं -न जाने ,मुझे क्या-क्या करना पड़ रहा है ?अगर यह ऐसे कार्य नहीं करती, तो मैं आज गर्व से, इसे ठीक से दिखाती। पैसे की चमक और चकाचौँध से उनकी आंखें ,वैसे ही चुधियां गई थीं। उनका पैसा ,उनके कपड़े सब देखकर , उनकी तो पहले से ही हां हो चुकी थी और जब उन्हें पता चला कि लड़की नौकरी करने के लिए बाहर जाएगी और वहां भी उसको 50,000 के वेतन पर, चुन लिया गया है। लड़के से तो उसकी दोगुनी आमदनी थी , उन्हें और कुछ देखने की आवश्यकता ही नहीं थी लड़की जैसी भी थी उन्हें पसंद थी।
क्या उन्होंने एक बार भी तुझे, चलवाकर या करीब आकर नहीं देखा। तुझसे बातचीत करके या तुझसे लड़के ने ,अकेले में मिलने का प्रयास नहीं किया।
नहीं ,उन्होंने कोई आवश्यकता महसूस ही नहीं की, न ही ,मुझसे मेरी इच्छा पूछी , मेरी हां या ना का तो प्रश्न ही नहीं बनता था। अब तो मजबूरी भी हो गई थी , इसलिए विवाह करना पड़ रहा था। हालांकि मेरा इरादा यह नहीं था, मैं तो चाहती थी कि नौकरी करने के लिए बाहर जाऊंगी वहीं पर, अपनी इस औलाद को जन्म दूंगी और इसके साथ ही अपना जीवन व्यतीत कर दूंगी। किंतु माँ को यह बिल्कुल भी पसंद नहीं आया, और उन्होंने आनन फानन में ,सब बातें तय कर दीं। मैंने गलती तो की थी, किसी पर विश्वास करके , अपने रिश्ते में जल्दबाजी करके , मैंने उसके मन को जाना ही नहीं, और मेरी जल्दबाजी का उसने लाभ ही उठाया।
क्या वह तुम्हें ,फिर कभी नहीं मिला ? या तुमने दोबारा, उससे मिलने का प्रयास भी नहीं किया।
किया था, एक दो बार उसके दोस्त के पास गई भी थी, किंतु उसने उसके, विषय में कुछ भी नहीं बताया।
लड़कों में यह तो बहुत होता है, दोस्त की , बात को छुपाने के लिए झूठ भी बोल देते हैं।
मुझसे तो यही कह रहा था - कि जब से गया है ,मुझे नहीं मिला।
क्यों, उसने अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की होगी ? हो सकता है , उसने वह सेंटर ही छोड़ दिया हो कहीं और पढ़ने लगा हो।
चलो जो भी हुआ, अच्छे के लिए हुआ। उस धोखेबाज से पीछा तो छूटा ,कम से कम तुम्हारा विवाह एक अच्छे लड़के से तो हो गया।
कैसी बातें कर रही हो ? वो अच्छा था ,एक नंबर का लालची था ,वो ही नहीं ,उसका पूरा ख़ानदान !उन लोगों को मुझसे कोई मतलब ही नहीं था।
यह तो तेरे लिए अच्छा ही हुआ, यदि वह लोग तुझ पर ध्यान देते, तो तेरी असलियत भी सबको पता चल जाती।
हां, ऐसा भी कह सकते हैं, उसकी मां गहने और कपड़ों में, व्यस्त हो गई थी वह स्वयं मेरे करीब तो आना चाहता था किंतु मैंने''महावारी '' का बहाना बनाया।
क्या परिवार में अन्य किसी रिश्तेदारों ने भी, इस और ध्यान नहीं दिया कि लड़की का पेट दिख रहा है या बड़ा है।
नहीं ,मैंने लहंगा ही इस तरीके से पहना था, उसमें कुछ पता नहीं चल पा रहा था। आंचल से सब ढक लिया था। हम लोग,बाहर घूमने गए ,वो बहुत प्रसन्न था ,बीवी सुंदर है या नहीं ,या बीवी को वो पसंद है या नहीं। किन्तु वो खुश था ,उसकी यही बात मुझे पसंद आई ,उसकी ख़ुशी देखकर ही ,मेरे निराश मन में भी ,जीने की ललक जाग उठी।वो बहुत ही उत्साहित था ,उसे जो भी मिला था उसी में बहुत खुश था।
ये तो अच्छी बात है ,कम से कम उस धोखे के ग़म से तुझे छुटकारा तो मिला फिर तू उसे लालची क्यों कह रही थी ?
लालची तो पूरा था ,अपने पैसे खर्च नहीं करता था ,जब भी बिल पे करने की बात आती तो मेरी तरफ देखने लगता और मैं अपना पर्स खोलकर पैसे दे देती। एक दिन मैंने कहा भी ,तुम अपनी पत्नी को घुमा रहे हो ,उसे बाहर खाना खिला रहे हो ,तुम स्वयं अपना खर्चा क्यों नहीं करते ?
तुम मेरी हो ,मैं तुम्हारा हूँ और ये पैसा हमारा है ,अब तुम खर्चा करो या मैं ,क्या फर्क पड़ता है ?कहकर हंस दिया। मुझे अपनी नौकरी पर भी जाना था तब मैंने उससे कहा ,मुझे अपने काम पर जाना है और मैं देहरादून के लिए रवाना होने के लिए तैयारी में जुट गयी।
करुणा ने घड़ी में ,समय देखा ,पांच बज चुके थे ,तब करुणा ,प्रभा से बोली - अच्छा ,अब फोन रखती हूँ ,वे आने वाले होंगे ,कल फिर फोन करती हूँ ,कहते हुए फोन रख दिया। अभी शाम के खाने के लिए तैयारी भी करनी है, सोते हुए अपनी सास के पास गई -मम्मी जी ! खाने में क्या बनाना है ?
अब करुणा खाने में कुछ भी बनाए इससे हमारी कहानी पर कोई फर्क नहीं पड़ता किंतु यदि वह यह कहानी किशोर को सुनाती है , तब क्या होगा ? आईये ! आगे बढ़ते हैं