Maa ki mamta

'' मां की ममता '',का नहीं कोई मोल !

माँ चाहे,कैकेयी हो ,या फिर कौशल्या !

 उचित -अनुचित कुछ समझ न आता ,

 ममता को लाभ -हानि के पलड़े में न तोल।

 


एक ''प्रेम ''और ''भावों की प्रतिमूर्ति !

दूजी बेटे के मोह में ही ,कठोर बन बैठी ।

सहज ,सरल उसका मन ! बहती जाह्नवी सी ,

आंच आये यदि पुत्र पर, न देखे स्वयं का तन भी।


जितना कोमल उसका नाजुक तन ओ मन ! 

बात आये 'मातृभूमि' पर कठोर किया मन !

 शिवाजी की माँ ने  ''देश- प्रेम ''सिखलाया,

 जिसके आगे अन्य कोई प्रेम काम न आया। 

  

उसके आँचल में ही ,मुझे दीखता था जहाँ !

आँचल से बाहर आ, संसार नजर तब आया। 

यदि ममता बहती निर्मल ,निश्छल गंगा सी है। 

 बन जाती कठोर ,सीने पर रख लेती प्रस्तर है।

 

''माँ  की ममता'' बनाती नहीं है ,कमजोर !

 ढ़ाल देती ,फौलाद में ,बना देती है, कटार !

 सीने में बहता ,''ममता का श्रोत ''है। 

कर्त्तव्यों के लिए ,बन जाती शिला सी कठोर है।

 


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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