निधि अपने मन का दर्द, करुणा को बतला रही थी -कि किस तरह से , उसकी अपनी मां ने ही, भाई का साथ दिया। संबंधों को जोड़ने का प्रयास नहीं किया, और मुझे ही खरी -खोटी सुना दी। करुणा ! तुम समझोगी नहीं , मैं अपनी मां के शब्द सुनकर कितना टूट गई थी ? मैं उन बिखरते रिश्तों को संभालने गई थी, किंतु स्वयं ही बिखरकर आ गई ,किसी से कुछ कह भी नहीं सकतीथी । तुम्हारे भैया को तो मैंने बताया भी नहीं , कि मैं उनके जाने के पश्चात ,अपने मायके गई थी। वो तो सीधे यही कहेंगे - तुम कब तक इन लोगों में उलझी रहोगी ? क्या तुम्हें उनके तेवर देखकर भी ,समझ नहीं आता कि वह रिश्ता ही नहीं ,रखना चाहते हैं। अब उनका मतलब पूरा हो गया है, अब मैं अपने मन का दर्द किससे कहूं ? मेरा मायका ही खत्म हो गया।
मैं इस उम्मीद में रहती थी ,जब मेरा भाई सक्षम हो जाएगा, हम सब खूब खुश रहा करेंगे। मैं अपने मायके मिलने जाया करूंगी , उससे जिद किया करुंगी। भाभी और मैं घूमने जाया करेंगे, न जाने कितने सपने देखती थी जिसमें हम मिलजुल कर प्रेम से रह रहे थे, किंतु मुझे क्या मालूम था ? यह मेरा सपना, सपना ही रहेगा हालांकि उन्होंने पुनीत के विवाह के समय ही, अपना बदला व्यवहार दिखला दिया था किंतु मैंने उस बात पर ध्यान नहीं दिया , उस बात को जाने दिया ,उस समय भी ,न जाने कितनी छोटी -छोटी हरकतों से मेरा दिल दुखाया है ?आज सोचती हूँ ,तो बहुत दुःख होता है ,रिश्तों को बनाये रखने के लिए ,चुपचाप सब सहन कर गयी। किंतु जब वह मनु के विवाह में भी नहीं आया और मैं इंतजार करती रही। तब मुझे बहुत दुख हुआ , आखिर कैसा भाई है ?
भाभी !मैं आपके मन का दर्द समझ सकती हूं , मैं इस दर्द से बहुत पहले गुजर चुकी हूं , आप तो जानती ही हैं। पहले लड़कियां मायके जाती थीं , कुछ दिनों तक रहकर ,अपने ससुराल आ जाती थीं , एक-दो महीने की, उन यादों को लेकर ,वह अपनी ससुराल में साल बिता देती थीं किंतु अब तो लगता है ,जैसे- मायका -मायका ही नहीं रहा। एक -दूसरे से पूछती रहती है ,कभी मैंने भी ,सामने पड़कर अपने भाई से, भाभी से बात नहीं की क्योंकि वह बात करने के इच्छुक ही नहीं हैं , और न ही जानना चाहते हैं। वह अपनी जिंदगी में मस्त हैं।
मैं तो अपने पिता का बेटा बन गई थी। उनकी इतनी कठिन परेशानियों में मैंने उनके साथ दिया , अपनी जिंदगी के कम से कम 30 वर्ष, उस परिवार में दिए। जब पापा 'सेवामुक्त '' हुए थे तब मैंने, बेटी बनकर नहीं ,बेटा बनकर उनकी सहायता की थी। आज मुझे क्या मिला ? वह मेरा इकलौता भाई, जो चार बहनों के बाद हुआ था। आज मुझसे 'सीधे मुँह बात 'नहीं करता। मनु के विवाह में तो आपने उसका व्यवहार नहीं देखा। हम दोनों सगे बहन -भाई होकर भी ,किसी अपरिचित की तरह मिल रहे थे। एक ऐसा रिश्ता था , जैसे हम एक दूसरे को जानते थे, किंतु व्यवहार से अपरिचित से लग रहे थे। वहाँ भाई और बहन की प्रेम कहानी नजर नहीं आ रही थी। आपको मालूम है ,या नहीं ,मैं नहीं जानती ,जब मैं पच्चीसवें वर्ष में चल रही थी ,तब मेरी ज़िंदगी में कल्पित आया था। वो मुझसे विवाह करना चाहता था ,अच्छा कमाता था ,उसका परिवार भी पैसेवाला था किन्तु मैंने अपने परिवार के लिए ,उसके प्यार को ठुकरा दिया था। मुझे लगता था ,आज मेरे परिवार को मेरी जरूरत है। कल्पित ने दो -तीन वर्षों तक मेरी प्रतीक्षा भी की और विवाह नहीं किया ,उसके पश्चात अपने परिवार के दबाब के कारण उसे विवाह करना पड़ा। मेरे उस त्याग का मेरे घरवालों के मन में कोई महत्व नहीं ,और आज जब उनका व्यवहार देखती हूँ तो दुःख होता है कि ऐसे परिवार के लिए मैंने अपना सच्चा प्यार ठुकरा दिया।
भाभी !क्यों इस तरह ? यह रिश्ते टूट रहे हैं ? करुणा भी भावुक हो चली थी, उसे न जाने, कितनी बातें स्मरण हो आई थीं ? निधि का दर्द बांटने चली थी , अपने दर्द से बेपरवाह होना चाहती थी। अब तो लगता है जैसे गैर ही, अपने से लगने लगे हैं। बात यह नहीं है ,कि रिश्ते टूट रहे हैं , बात क्या है कि जान -बूझकर तोड़े जा रहे हैं। ये भाई अपनी ससुराल वालों से रिश्ते क्यों नहीं तोड़ देते ? इनकी ससुराल वाले इन्हें बुलाते हैं, इनका मान -सम्मान करते हैं। पता नहीं ,यह क्या दोहरी रणनीति चल रही है ? ससुराल से संबंध रखते हैं कि वहां से मिल जाता है ,मान -सम्मान होता है। बेटी से इसलिए रिश्ते तोड़े जा रहे हैं , उसे देना पड़ेगा इसीलिए संबंध ही नहीं रखना चाहते।
मुझे तो इस बात का भी दुख होता है, मैं तुम्हारे भाई से भी नज़रे मिलाने लायक नहीं रही , अक्सर मैं उनसे कहती थी -जब पुनीत काबिल हो जाएगा ,उसकी नौकरी लग जाएगी तब आपकी आवभगत में ,कोई कमी नहीं होगी। मुझे क्या मालूम था ?यह लोग इस तरह से पेंतरे बदल देंगे। रिश्ता ऐसा कर दिया है ,जैसे -'मतलब निकल गया है ,तो पहचानते नहीं।'' पुनीत अक्सर मेरे पास आता था, मुझे पैसे मांग भी लेता था,तो उसे पैसे देने के साथ -साथ,थोड़े पैसे, मैं चुपचाप उसकी पेन्ट की जेब में भी रख देती थी किंतु आज मेरी मां कहती है -''कि उसकी मेहनत की कमाई है ,मुझे इस बात पर अफसोस होता है कि क्या यवन की मेहनत की कमाई नहीं थी ?क्या वह मेहनत से नहीं कमाते थे ? मैं क्यों उनकी मेहनत की कमाई ऐसे इंसान पर लुटा रही थी ,जिसके रगों में इतना स्वार्थ दौड़ रहा था।
एक बताऊँ ,भाभी !उन लोगों ने ,इतने दिनों कमी देखी और अब पैसा देखकर ,परेशान हो गए हैं।
ये कैसी परेशानी है ?जो अपनों से ही रिश्ता तोड़ रही है ,किसी के तीन -चार बहनें हैं ,मैं तब तो मानती हूँ कि अकेला भाई कैसे सब संभालेगा ?किन्तु मैं तो अपने भाई की एक ही बहन हूँ ,जिसमें कि उन लोगों की हर परेशानी में हम साथ खड़े रहे हैं ।
नहीं ,भाभी !ऐसा कुछ भी नहीं है , तीन-चार बहनें भी यदि किसी की हैं, तो उन्होंने अपनी आंखें नहीं मूंदी हैं । क्या वह नहीं जानतीं ?कि हमारा अकेला भाई कैसे सब संभालेगा ? कोई कठोर ही होगी, जो इस तरह आंखें मुंद ले। हम भी तो चार बहने थीं , यदि किसी आवश्यक चीज की आवश्यकता महसूस हुई तो, खुद परिश्रम करके नौकरी करके हमने, वह चीज ली, कभी माता-पिता पर या भाई के ऊपर नहीं छोड़ा। यह तो सब कहने की बातें हैं , यदि भाई अच्छा व्यवहार करता है और मिलजुल कर सब रहते हैं , तो बहनें भी एक दूसरे की सहायता करती हैं ,किंतु घर वाले ही पूर्णता अपनी आंखें बंद कर लें , उसके लिए तो दुख होता ही है। सबसे बड़ी बात तो यह है, आप भी मेरी भाभी लगती हैं, कम से कम फोन पर हम बातचीत करके, एक दूसरे का हाल-चाल तो पूछ लेते हैं। किंतु मेरी भाभी तो, फोन करना तक पसंद नहीं करती। यह समझ लो ! बात ही नहीं, करना चाहती। कभी आज तक उसने फोन करके यह नहीं पूछा- कि दीदी कैसी है ? अब क्या इसमें भी, भाई का कुछ जा रहा था या भाभी का कुछ जा रहा है। क्या हम समझती नहीं ? आजकल भाभियों ने यह रुख अपना लिया है , बात करेंगे तो....... ननदें आएंगी , जब कोई मतलब ही नहीं रखेंगे , तो यहां आने की, उनकी हिम्मत नहीं पड़ेगी। पड़ोसी भी एक दूसरे की खैर -खबर पूछ लेते हैं। मैं भी भाभी बनी हूँ। यदि मैं अपनी ननद से, कोई मतलब नहीं रखना चाहूंगी, उसे फोन नहीं करूंगी , घर पर आए तो उससे रूखा व्यवहार करूंगी। तो क्या यहां आने का फिर उसका मन करेगा ? उसे दुख भी अवश्य होगा और मेरे घर आना भी नहीं चाहेगी। यही रीत मेरी भाभियों ने अपनाई है, क्या मैं इतना भी नहीं समझती ? किंतु उनके मायके वाले न जाने कैसे हैं ? यदि वह लोग भी ,उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करें ! तब उसे एहसास हो ,कि जब मायके वाले गलत व्यवहार करते हैं तो कितना दुख और परेशानी होती है ?
