Kanch ka rishta [part 56]

अपने पति के जाने से मैं तो जैसे सदमे में आ गई थी। मेरे माता-पिता मुझे घर ले आए, मेरे लिए एक नर्स रखी, जो मेरी और मेरी बच्ची की देखभाल करती थी। माता-पिता को भी, कितना सहन करना पड़ता है ? लगभग 2 महीनों  के पश्चात, मुझे एहसास हो रहा था, कि मेरी एक बच्ची है और मुझे उसके लिए जीना है। जब मैं पूर्णतया स्वस्थ हो गई, मैं अपनी नौकरी पर वापस आ गई। मेरी बेटी मेरे साथ ही थी।  भैया -भाभी को तो जैसे कोई मतलब ही नहीं था ,मुझ पर क्या बीत रही है ? उन्हें इस बात से कोई लेना-देना नहीं था। मैं वहीं  नौकरी करती रही, और अपनी बेटी को पालती रही।

लगभग  जब मनु 2 साल की हो गई, तब मेरी ससुराल से , एक दिन मेरा देवर आया और मनु के लिए बहुत सारे खिलौने लेकर आया। उसे घूमाता और उसके साथ खेलता।  वह बड़े ही प्यार से ,बातें कर रहा था। वह मुझसे प्रभा मेरा नाम लेकर बातें कर रहा था। 


मुझे बड़ा अजीब लगा, मैंने कहा -तुम मेरा नाम लेकर क्यों मुझे बुला रहे हो ? मैं तो रिश्ते में तुम्हारी भाभी लगती हूं। 

हां ,जानता हूं,किन्तु जब भैया थे ,भाभी कहना भी तभी उचित लगता था। 

क्यों ?अब क्या मैं बदल गयी हूँ ? वो नहीं रहे ,मैं तो वही हूँ। ''मुझे पापा कहो !उसे मैंने अक्सर मनु से कहते सुना ,एक दिन मैंने कह ही दिया -यह तुम इतनी छोटी बच्ची के मन में क्या भर रहे हो ? तुम जानते हो ,तुम इसके पापा नहीं हो। 

हाँ ,मैं जानता हूँ ,मैं इसका पापा नहीं ,किन्तु बन तो सकता हूँ। 

क्या मतलब ?

वह बोला -अब भाई तो रहे नही, मैं मानता हूं उन्होंने बहुत सारी गलतियां की हैं।  आपके साथ सही व्यवहार नहीं किया किंतु अब मम्मी कह रही हैं -'तुम्हारी उम्र ही क्या है ? और मैं भी अभी कुंवारा हूं ,भाई की बेटी को हम मिलकर पालेंगे ,अपने शब्दों में मिश्री की मिठास के साथ बोला।  

तू जानती है ,वह यह सब क्यों कर रहा था ?क्योंकि उन्हें एहसास हो गया था ,जो कमाउ  बेटा था वह तो ,अब रहा नहीं, मेरे मायके से भी जो मिला था, वह भी खर्च हो गया होगा। पति के चले जाने के पश्चात ,मैं  फिर कभी ,ससुराल नहीं गयी। वहां के क्या हालात थे ?मैं नहीं जानती किन्तु अब उन्हें मैं ही  दिखाई दे रही थी। इसीलिए सोचा होगा ,क्यों न इन  संबंधों को सुधार लिया जाए ? उन्हें लग रहा था ,कि उनके इतना कहते ही मैं दौड़कर ,उनके बेटे को गले लगा लूंगी। मैं सहारे के लिए तड़प रही हूं , और मैं झट से विवाह के लिए हां कर दूंगी किंतु उनकी स्वार्थी सोच....... ने मुझे ऐसा करने से मना कर दिया। 

जिससे यह बात छुपानी थी या जिस कारण से यह बात हम छुपा रहे थे कि मनु मेरे पति की बेटी नहीं है , अब तो वह कारण ही समाप्त हो गया. अब मैं एक विधवा थी, मैंने उससे विवाह करने से इनकार कर दिया और कहा -मुझसे विवाह करने की, सोचने से पहले, तुम पहले किसी काबिल तो हो जाओ ! और यह तुम्हारे भाई की बेटी नहीं है , तुम्हारे भाई के ही शब्दों में बता रही हूं -'यह मेरे आशिक की बेटी है और मैं तुम्हारी भाभी रही हूं, मैं उस दृष्टि से तुम्हें देख भी नहीं सकती, और न ही मैंने, इस विषय में सोचा। 

मेरा जवाब सुनकर वह परेशान तो हुआ, और उसे गुस्सा भी आया और बोला -साली !छिनाल !तेरे कारण ही मेरे भइया चले गए और अब अकेली रहना चाहती है ,ताकि कोई रोकटोक न हो ,तुझे आजादी मिले ,अपनी प्यास बुझाती रहे। 

बाहर निकलो ! मैं भी गुस्से में उसके सामने अड़कर खड़ी हो गयी और जब तक वह बाहर नहीं निकल गया उसके पश्चात, वह कभी नहीं आया। हां उसकी मां का फोन अवश्य आया और मुझे समझाने लगी -तुझे भी सहारे की आवश्यकता होगी , और यह भी अकेला है। तुम दोनों के बीच जो भी रहा हो। अब वह भी तेरे पास नहीं है। अब तुम दोनों विवाह कर लो ! और जिंदगी में आगे बढ़ो !

यदि मुझे विवाह करना ही है, तब मैं किसी अच्छे आदमी को ढूढ़ूंगी। जो , मेरी परेशानियों को समझे और मेरे जीवन का बोझ भर उठा सके ,ऐसे नाकारा से नहीं। 

मेरे शब्दों को सुनकर वह तिलमिला गई और बोली - मेरे बेटे को तो खा गई, न जाने कहां-कहां मुंह मारती थी ? तब भी ,मैंने सोचा -इसकी जिंदगी संवर जाएगी किंतु उसके तेवर तो देखो ! कितने चढ़े हुए हैं ? तू है ही कौन ? तेरी क्या औकात ? तुझे कोई कुत्ते के बराबर भी नहीं पूछेगा। 

न पूछे , किंतु तुम्हारे बेटे से विवाह नहीं करूंगी। कोई नहीं पूछता, तभी तो तुम लोग बार-बार आ रहे हो। मेरी कमाई पर दृष्टि जमाए हुए हो। उसके पश्चात मैंने ,कभी उन लोगों को फोन नहीं किया, उनका फोन आया भी तो मैंने उठाया नहीं, मैंने अपने जीवन में अपनी बेटी को ही सर्वस्व मान लिया। यदि सुख मिलना  होता तो उससे ही मिल जाता, पहला प्रेमी था, वह भाग गया,  पति था, वह मर गया। अब किससे  मैं ,खुशियों की अभिलाषा कर सकती हूं। मेरे जीवन में जो खुशियां मिलनी थीं ,वो मुझे मिल चुकीं , यही सोचकर मैं जिंदगी में आगे बढ़ गई। इस स्कूल में पढ़ाती रही, तरक्की होती रही। मैंने आगे की अपनी पढ़ाई भी आरंभ कर दी , हम दोनों मां -बेटी एक दूसरे का सहारा बन गए। 

क्या फिर तेरे कभी रिश्ते नहीं आए ? तूने दोबारा विवाह करने का नहीं सोचा !या घरवालों ने ही ,दबाब नहीं बनाया। 

जो  विवाह किया था, वह भी तो मजबूरी में ही किया था। इतने धोखे खाने के पश्चात विवाह की कोई इच्छा नहीं रही, लालची लोग तो आए, जिन्होंने मेरी नौकरी और मेरा वेतन देखा किंतु कोई सच्चा हमदर्द ! प्रेमी तो नहीं कह सकती, हमदर्द भी नहीं मिला जिसे सिर्फ ,मुझसे मतलब हो !या जो मेरे साथ और मेरे लिए ही जीना चाहता हो ! वह गाना तो सुना है -

               ''मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।'' 

फिर क्या तेरी मुलाकात कभी भी किशोर से नहीं हुई। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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