Kanch ka rishta [part 55]

प्रभा,करुणा को अपनी उन दिनों की कहानी सुना रही है जब उसकी बेटी मनु का जन्म होने वाला था। वह बताती है -कि ऐसे समय में उसके पास, न ही, उसके ससुराल वाले और न ही उसका पति उसके साथ था। उसने एक गलती की इतनी बड़ी कीमत चुकाई है। वह अकेली ही, अपनी वेतन के बल पर उन परेशानियों से जूझ रही थी, अड़ोसी -पड़ोसी कभी-कभी उससे पूछ भी लेते थे -तुम्हारे पति कैसे हैं ?ऐसे समय में भी वह तुम्हारे साथ नहीं है।  

तब वह मुस्कुरा कर कह देती- वे  नहीं हैं , तुम लोग तो हो। एक दिन मैंने फोन करके उसे बुलाया भी था , ऐसे समय में तुम्हें तो मेरे पास, होना चाहिए था। अड़ोसी -पड़ोसी सभी पूछते हैं कि तुम्हारे पति क्यों नहीं आते ?


तब उसने झल्लाकर जवाब दिया कह देती -यह तुम्हारे पाप की निशानी है, यह उसका बच्चा नहीं है। 

मैंने कुछ भी कहना उचित न समझा, और मैंने चुपचाप फोन उठा कर रख दिया, मैं जानती थी जब मैंने , गलती की है तो उसका भुगतान भी तो मुझे ही करना होगा। 

तुम इतना सब क्यों भुगत रही थीं जिसका बच्चा था, जब उसे ही चिंता नहीं थी , और वही भाग गया तो तुम क्यों ?इतनी परेशानियां ओट  रही थीं। 

उसे तो पता ही नहीं था, मैंने उसे बताया ही नहीं था , बताती भी, कब ?उससे पहले ही ,वह भाग खड़ा हुआ। 

क्या कह रही है ? यह तुमने कितनी बड़ी गलती की है ? यदि तू उसे बता देती तो शायद, वह अपने बच्चे के लिए ही तेरे पास आ जाता। 

जिसको नहीं आना होता है, वह नहीं आता है, यदि मैं उसे अपने बच्चे के विषय में बात भी देती तो शायद कोई और बहाना करके निकल जाता। 

शायद तो ठीक कह रही है, तो क्या तेरा पति, तुझसे मिलने फिर आया ही नहीं ? 

आया था, जब मैं अस्पताल में थी, पड़ोसियों ने ही उसे फोन करके बुलाया था , कि आपके घर लक्ष्मी आई है, उससे मिल लीजिए अपनी बेटी को एक नजर देख लीजिए , वह आया और आते ही ,मुझ पर चिल्लाया -तूने पड़ोसियों को मेरा नंबर क्यों दिया ? उनके सामने ज्यादा भोली बन रही है, तेरी करतूत सबको बता दूंगा ?

मैंने उससे पूछा -इस सब से क्या होगा ? जो हो चुका, वह वापस लौटाया तो नहीं जा सकता , किंतु हम, अभी सुकून से और अच्छे से जिंदगी जी सकते हैं। जब तक तुम्हें पता नहीं था, कि मैं गर्भवती हूं ,तब भी तो तुम मेरे साथ अच्छे से रह रहे थे। तब तुम ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो ? और जबकि तुमने ही यह बता दिया कि मैं पहले से ही जानता था ,मुझे लग रहा था कि कुछ तो गड़बड़ है। तभी विवाह से मना क्यों नहीं कर दिया ? तुमसे कोई जबरदस्ती तो की नहीं थी। उस समय तो तुम्हें और तुम्हारी माँ को मेरा और मेरे परिवारवालों का पैसा नजर आ रहा था। तुम नहीं मिलते तो कोई और लड़का मिल जाता। कम से कम मैं इस तरह परेशान तो न होती। शायद वह अपनी जिम्मेदारी समझता। 

मेरी बात सुनकर उसने पास रखा ,गिलास जमीन पर फेंककर मारा और बोला -साली ! हमें लालची ठहराना चाहती है। तुझे एक परिवार दे दिया, कहने को ,ब्याहता बना दिया। तेरी सच्चाई सबसे छुपाई, वरना आज यही पड़ोसी, तेरा सिर फोड़ देते ,जब तेरी हरकतों के विषय में उन्हें पता चलता। 

अब तुम मुझसे क्या चाहते हो ?अभी एक बड़े दर्द के दौर से गुजर चुकी है,शरीर भी कमजोर है ,बिस्तर में पड़े -पड़े वह कर भी क्या सकती है ?

मैं तुमसे छुटकारा चाहता हूं। मैं तेरे इस पाप के साथ नहीं जी सकता, तुझे इसे पालना है तो पाल !

 तब मैंने कहा -यदि मैं इसे किसी ''अनाथ आश्रम ''में या किसी 'हॉस्टल 'में डाल दूं तब तो तुम्हें कोई दिक्कत नहीं होगी। 

तब वह मुझे पर चिल्लाते हुए बोला -इसका खर्चा कौन उठायेगा तेरा बाप !

आज तक उसने मुझसे इस तरह से कभी नहीं कहा था ,जैसे आज व्यवहार कर रहा था। तब मुझे बहुत दुख हुआ और मैं बोली -तुम्हारा अब तक का खर्चा मेरे बाप और मैंने ही तो उठाया है और तुम्हारे घर में जो भी सामान होगा ,वह मेरे बाप का दिया हुआ ही होगा। 

अच्छा मुझ पर एहसान जतला रही है, कहते हुए मुझ पर हाथ उठाते हुए आगे बढ़ा, तभी नर्स आ गई और वह चुपचाप खड़ा हो गया। 

नर्स ने और'' घी में आग डालने ''जैसा कार्य कर दिया, वह उससे बोली -अब आप पिता बन  गए हो, बिटिया की नजर उतार कर कुछ दोगे या नहीं। उसने मुझे और नर्स को घुरा और बाहर निकल गया। उस समय मैं शरीर से बहुत कमजोर थी, मैं बोल पा रही थी वही बहुत था। मैंने सोचा -समय धीरे-धीरे सब जख्म भर देता है , तो शायद यह जख्म भी भर जाएंगे,सच्चाई को स्वीकारने के लिए, इसे थोड़ा समय चाहिए। वह गाड़ी लेकर, चला गया था। उसने क्रोध में शराब भी पी थी। नशे में, पहाड़ी इलाके पर गाड़ी का बैलेंस बिगड़ गया और गाड़ी खाई में चली गयी। कुछ लोगों ने यह हादसा होते हुए देखा, और तब मुझे पता चला। मेरा विवाह भी हो गया, बच्ची की मां भी बन गई और विधवा भी हो गयी। सभी कार्य बहुत शीघ्र हो गए।  

मुझे तो जैसे, होश ही नहीं रहा था, जो उम्मीद थी वह भी टूट गई अब क्या कर सकती थी ? रिश्तों  को कैसे संभालती जब रिश्ता ही नहीं रहा। अपने बेटे के कारण, उसके परिवार वाले आए और मुझे एक बेटी के साथ देखकर मेरी सास ने मुझे घूरा और बोली -तेरे विवाह को तो अभी 6 महीने भी नहीं हुए , यह बच्चा कहां से आ गया ? यह मेरे बेटे की  बच्ची  नहीं है। लोग आ रहे थे ,मुझे देख रहे थे और मैं शून्य में न जाने कहां खोती जा रही थी ? मेरे ससुराल वाले, हॉस्पिटल का खर्चा देकर चले गए। मैं लावारिसों की तरह, उस अस्पताल में रही। जब मेरी मां और पिता को मेरे विधवा होने का पता चला तब वह लोग, मुझे लेने आए। मुझे और बच्ची को लेकर चले गए, मेरे लिए एक नर्स रख दी थी। वही मेरी देखभाल करती थी, लगभग 2 महीने हो गए, धीरे-धीरे मैं उस हादसे से बाहर आ रही थी।

न जाने मेरी जिंदगी मुझे किधर लेकर जा रही थी ? मेरी जिंदगी का क्या अंजाम होगा ? मैं नहीं जानती, किंतु अब तक जो भी हुआ अच्छा नहीं हुआ ,आगे चलते हैं - 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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