करुणा ,मन ही मन सोच रही थी-दिव्या ऐसी तो नहीं थी , सच में ही ,परिस्थितियों ने इसे बहुत बदल दिया है । देखने में कितनी खुशहाल और कितना अच्छा परिवार लग रहा है ? किंतु इसके अंदर तो बदले की भावना धधक रही है। सच में ही जिंदगी ने, इसे बहुत बदल दिया। एक लड़की अपने माता-पिता ,अपने परिवार के साथ, ज्यादा जुड़ाव महसूस करती है क्योंकि वहीं पैदा हुई, और बड़ी हुई। किंतु जब उसे अपने परिवार से ही उसे वह अपनापन न मिले , तो बेचारी कहां जाएगी ?
करुणा ने अपने, आसपास देखा और बोली -हमारे घर वाले हमारी प्रतीक्षा में खड़े हैं। अब चलती हूं , मेरा नंबर ले ले और मुझे फोन करना। वैसे एक बात कहूंगी। इन चीजों से कोई लाभ नहीं है , यानी कि इस दुश्मनी से कोई लाभ नहीं है। तू देख ,इस आग में तू स्वयं झुलस रही है। बाहरी रूप से देखा जाए , तो तू बड़ी खुश नजर आ रही है किंतु क्या अंदर से खुश है ?तू अपने को खुश दिखाना चाहती है किन्तु तुझे दिखाना नहीं है वरन सच में ही खुश रहना है। यदि उन्हें संपत्ति देनी ही होती तो सहायता के रूप में तुझे पैसे दे सकते थे।
जबरदस्ती अपनों से इस तरह अधिकार लेना, ईश्वर ने, तुझे बहुत कुछ दिया है , क्यों, कुछ के चक्कर में जिंदगी बर्बाद करना ? मुकदमे में भी तो पैसा ही लग रहा होगा। यदि यह संपत्ति मिल भी गई तो उसका उपयोग ,क्या कर पाएगी ? तू उनके व्यवहार से आहत हुई है ,यह मैं जानती हूं , समझती भी हूं , किंतु अब वह तेरे व्यवहार से आहत हो रहे हैं। परिणाम क्या निकल कर आएगा ? आजकल अब वे रिश्ते नहीं रहे ,मतलबी हो गए हैं। अर्थ ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। प्रेम ,विश्वास , अपनापन, इन्हीं नज़दीकी रिश्तों में था। अब वह भी खोता जा रहा है, स्वार्थ जो भर गया है। कभी शांति से बैठकर सोचना। इस सबसे तुझे क्या मिलेगा ?कहते हुए करुणा, अपने परिवार के पास आ गई और बोली - बहुत दिनों बाद मिले हैं ,न..... थोड़ा समय में लग गया।
कोई बात नहीं, दो महिलाएं आपस में बैठी हों और समय न लगे,यह तो रात्रि को दिन कहने जैसी बात हो गयी कहते हुए किशोर जी हंसने लगे। अपने पिता के भावों को समझ कर बच्चे भी हंसने लगे और खुशी-खुशी अपने घर आ गए।
आज बहुत ही आनंद आ गया, ऐसा लग ही नहीं रहा था ,जैसे मैं दिन भर का थका हुआ हूं। कुछ अलग ही वातावरण बन गया। सच में ,अब हम महीने में या हफ्ते में एक बार चला करेंगे। आज किशोर भी अपनी प्रतिदिन की उसी ज़िंदगी से ,आज कुछ अलग होने पर,अपने को हल्का महसूस कर रहा था।
नहीं -नहीं, एक माह में ही ठीक रहेगा वरना बजट बिगड़ जाएगा कहते हुए करुणा मुस्कुराई। अब आगे त्यौहार भी आने वाले हैं, उनमें भी बहुत खर्चा हो जाएगा। इस प्रकार घूमने से एक बात अच्छी रही। दिव्या से मुलाकात हो गई।
वास्तव में ही ,बहुत बदल गई है, मैं तो उसे पहचान ही नहीं पाया। वो तो तुमने ही उसे पहचाना।
क्या बातें हो रहीं थीं ? दोनों सखियों में ,
बस अब वो सभी रिश्तों से बेपरवाह !अपने तरीक़े से जीवन जीना चाहती है। उसका सभी रिश्तों से विश्वास उठ चुका है।
तुम ठीक ही कह रही हो , कुछ रिश्ते हंसते -मुस्कुराते दिखलाई तो देते हैं किंतु न जाने वह यह अभिनय क्यों करना चाहते हैं और क्यों कर रहे हैं ?अपने लिए या दूसरों के लिए।
यह तो स्वाभाविक सी बात है, अपने लिए झूठी मुस्कान कौन लाएगा ? बस दूसरों को दिखलाना चाहते हैं, कि वह खुश हैं। परेशानियां सभी की जिंदगी में है ,किसी के में कम तो किसी के में ज्यादा बिस्तर पर बैठते हुए करुणा बोली।
तुम्हारी उस सहेली का क्या हुआ ? जो तुम्हें अपनी कहानी सुना रही थी , उसने यह नहीं बताया कि उसके पतिदेव ! कैसे गए ?
अरे हां 2 दिन हो गए , मैं कुछ बात ही नहीं कर पाई , उधर निधि भाभी का फोन आ गया था। कल बात करती हूं। चलिए !जल्दी सोते हैं, आज तो काम भी नहीं करना पड़ा, क्यों न, अच्छी सी नींद ली जाए ? मुस्कुराते हुए करुणा बिस्तर पर किशोर के क़रीब सिमटकर लेट गई।
अगले दिन ,अभी बच्चों को नाश्ता करवा कर स्कूल भेजा है, किशोर जी भी अपने काम पर गए हैं। अभी वह स्वयं नाश्ता करने बैठी ही थी कि फोन की घंटी घनघना उठी। करुणा ने घड़ी में समय देखा, दस बज चुके थे , अब इस समय किसका फोन आ गया ? यह सोचते हुए उठी, और फोन उठाया-हेलो !
अभी भी ,हेलो -हेलो कर रही है, दो दिन से कहां गायब थी ? न फोन किया और न ही, फोन उठाया।
क्या तूने फोन किया था ? शायद किसी काम में लगी हुई होंगी , मुझे पता चलता तो मैं अवश्य ही फोन उठा लेती करुणा ने, प्रभा से कहा।
मैंने भी सोचा - महारानी ,न जाने कहां व्यस्त होगी? इसलिए मैं ही फोन कर लेती हूं।
ठीक किया।
क्या कुछ कर रही थी ?
हां ,नाश्ता कर रही थी , और बता तू ठीक है , मनु कैसी है ?
मनु अपनी ससुराल में प्रसन्न है।
अच्छा ,एक बात बता ! जो मुझे समझ नहीं आई, तेरे पति तुझे छोड़कर चले गए थे फिर तुझसे मिलने कब आए ? और वह हादसा कैसे हुआ ? जो तुझे सदा के लिए ही छोड़ गए।
गहरी सांस लेते हुए , प्रभा बोली -उन दिनों को मैं भूल जाने का प्रयास करती हूं , बहुत ही दर्द भरे दिन थे , तू उन्हें फिर से कुरेद रही है।
यदि तू नहीं बताना चाहती है, तो कोई बात नहीं , किंतु एक इच्छा थी, मतलब ,मैं जानना चाहती थी कि उनके साथ हादसा कब हुआ और कैसे हुआ ? क्या उन्होंने तेरी बेटी को कभी स्वीकार किया या नहीं।
तुझे बताया तो था, वह तो मुझे छोड़ कर चले गए थे। मेरे अड़ोसी -पड़ोसी ही ,मेरा ख्याल रखते थे। उन्हीं के भरोसे मैं वहां रह रही थी। मेरा संपूर्ण पैसा उसने खर्च करवा दिया था अपने वेतन पर ही मैं जी रही थी।उसने ,मुझसे एक बार भी, नहीं पूछा तुझे पैसों की आवश्यकता तो नहीं। ऐसे समय में मेरे पास किसी अनुभवी महिला को होना चाहिए था ,किंतु मैं उस समय अकेली थी। आसपास की महिलाओं को अफसोस होता था, कैसा पति है ? जो ऐसे समय में भी, अपनी पत्नी को अकेला छोड़कर चला गया। वे अक्सर मुझसे कहतीं , जब वह यहां नहीं रह रहा है तो तुम ही, छुट्टी लेकर उसके पास चली जाओ !
मैं जबरन ही मुस्कुरा कर, कह देती -नहीं मुझे किसी की आवश्यकता नहीं है। मुझे कोई परेशानी ही नहीं है जब दिक्कत होगी ,तो आप लोग हैं हीं। मेरी मां ने मेरा विवाह इसीलिए करवाया था, कि ऐसे समय में, ससुराल वाले या मेरा पति तो मेरे साथ होगा लेकिन तब भी मैं अकेली ही थी। हां ,यह बात अवश्य थी ,मुझ पर ब्याहता की मोहर अवश्य लग गई थी, जिसके कारण किसी को गलत होने का शक भी नहीं हुआ।