करुणा बेचैनी से प्रभा के फोन की प्रतीक्षा में थी , वैसे अभी उसका काम भी पूर्ण नहीं हुआ है। प्रभा तो कह रही थी -अब उसे ,कुछ काम है ही नहीं , किंतु कमाना तो पड़ता है। पढ़ाने के लिए ,गई होगी, मेरी तरह थोड़े ही है, सारा दिन घर में कुछ न कुछ कार्य लगा ही रहता है। अपने लिए समय न निकालो ! तो मिलता ही नहीं, खैर जो भी है , आएगी तो स्वयं ही फोन कर लेगी। बहुत दिनों से निधि भाभी की भी कोई खबर नहीं मिली है। न जाने कैसी होगीं ? मैंने भी उन्हें, मनु के विवाह से आकर फोन ही नहीं किया। कहेंगी , कि ननद एक बार भी, जानने का प्रयास नहीं किया , भाभी कैसी हैं ? खैर समय मिलते ही फोन करती हूं। हाथ कार्य में व्यस्त रहते हैं, किंतु दिमाग अपने आसपास के रिश्तों में घूमता रहता है। अपनों की खबर जानना चाहता है, अपनों से मिलना चाहता है , यह तब तक ही है ,जब तक प्रेम बना हुआ है किंतु यह तब भी घूमता है जब कोई रिश्ता दर्द दे जाता है।
दोपहर का खाना खाने बैठी ही थी ,तभी फोन की घंटी बज उठी ,इस समय किसका फोन हो सकता है? घड़ी में समय देखा 2:00 बज रहे थे। हो सकता है ,प्रभा का फोन ही हो, तुरंत ही फोन उठाया -हेलो !
अभी' हेेलो' ही कर रही है, मैं सुबह से तेरी प्रतीक्षा में थी कि तू फोन करेगी किंतु तू तो ,अपनी गृहस्थी में व्यस्त इतनी हो गई है , तुझे कहां ध्यान रहता होगा ? शिकायत करते हुए प्रभा बोली।
ये तो ,वही बात हो गयी ,''उल्टा चोर कोतवाल को डांटें ''क्या बात कर रही है? मैं क्यों तुझे भूल जाऊंगी मैं तो सोच रही थी -तू अपने कॉलेज गई होगी , क्यों तुझे परेशान करना ?
नहीं ,आज मुझे कॉलेज नहीं जाना था, तू गृहस्थी में क्या रम गई ?तुझे तो कुछ भी याद नहीं रहता आज 'शिक्षक दिवस' है ,उस पर छुट्टी थी।
मेरे बच्चे तो गए हैं, अपने शिक्षक को उपहार लेकर....... फ़टाक से करुणा बोली।
अब बड़े बच्चे कहां आते हैं ? छोटे बच्चों में थोड़ा, भाव रहता है, कि हमारे शिक्षक हैं ,उन्हें सिखाया जाता है कि शिक्षक कि तुम्हारा असली गुरु हैं ,किंतु जब कॉलेज में आ जाते हैं ,सब समझदार हो जाते हैं ,सबकी अपनी राय बन जाती है। मुझे भी, अब इन सब चीजों में दिलचस्पी नहीं रही, सोचा -घर में ही आराम कर लूंगी। फिर सोचा, तू फोन करेगी।
अच्छा बता ! तू सारा दिन क्या करती है ? करना क्या है ? अपनी शिक्षा पूर्ण करके ,अपनी रिसर्च कर रही थी, एक दो किताबें लिख रही हूं , जीवन के अनुभव संजो रही हूँ। ऐसा कोई महान कार्य तो किया नहीं है। प्रातः काल थोड़ा योग कर लेती हूँ। जब तक जिन्दा हैं ,इतना तो करना ही पड़ेगा।
अच्छा है ,मुझे तो अभी तनिक भी समय नहीं मिलता ,बस दोपहर में थोड़ा अब समय मिला है ,तो सोचा तुझ से ही बातें कर लूँ। अच्छा ,एक बात बता ! क्या तेरे पति को एक बार भी तुझ पर अविश्वास नहीं हुआ ?
हुआ तो....... तभी होता ,जब पैसे से उसकी नजर हटती।
मतलब !
उसने मुझे मुँह दिखाई में ,या फिर मायके से जो भी पैसा मिला, हिसाब लगाता रहता और तुरंत मुझसे ऐंठ लेता।
जो भी हुआ ,तेरे लिए तो लाभकारी ही रहा !
आरम्भ में तो ,उसके इस तरह के व्यवहार को, मैं भी नहीं समझी थी ,मैं तो इसे उसका 'प्रेम 'ही समझ रही थी।
अच्छा !
इसीलिए जो भी पैसे मांगता ,मैं उसे दे देती , उस दिन भी वो पैसे मांगने ही आया था। मैंने पूछा -तुम स्वयं भी कमाते हो ,मुझसे भी ले जाते हो ,इतने पैसों का क्या करते हो ? सबके पति ,अपनी पत्नियों को कमाकर देते हैं ,तुम उल्टे मुझसे लेने आते हो। जैसे कोई हफ़्ता वसूली करने आता है। कल को हमारे बच्चे होंगे ,उनकी जरूरतें बढ़ेंगीं। उनके खर्चे होंगे ,हमें अब थोड़ा पैसा बचाना चाहिए ,ताकि आगे हम अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे सकें।
सही बात है ,तब उसने क्या कहा ?
उसने वही जवाब दिया ,जो एक' बेगैरत इंसान' जवाब देता।
क्या मतलब ?
'तुम क्या समझती हो ? मैं कुछ भी नहीं जानता। तुमने पैसे के बल पर अपने ,इस पाप को छुपा तो लिया है।' उसकी बात सुनकर मैं ,हथप्रभ रह गई थी। एकदम से शून्य में चली गई थी। मुझे, अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ फिर भी मैंने साहस करके उससे पूछा -क्या तुम पहले से जानते हो ?
यह कोई पूछने वाली बात है, मैं पहले ही समझ गया था, किंतु मेरी मां को तुम्हारा पैसा चाहिए था , तुम्हारा घर -परिवार देखकर उसकी आंखें चुंधियाँ गई थीं।
तुम्हारी मां की आंखें,चौंधियाँ गयीं थीं , किंतु तुम तो ठीक-ठाक थे , तुम्हें तो, पैसे का कोई लालच नहीं था।
हां ,मैंने भी सोचा था -जब इस पाप को अपने ऊपर ले ही रहा हूं, तो इसकी कीमत तो वसूल करनी ही है। एक दो महीने की बात होती तो शायद ,पता भी नहीं चलता किंतु यह तो स्पष्ट नजर आ रहा है। किसका पाप लिए घूम रही हो? सख्त स्वर में बोला।
यह बात नहीं है, हां ,यह बात अवश्य है कि मुझे धोखा मिला है।
धोखा ! आजकल दुनिया में धोखा कौन नहीं देता? किसे नहीं देता, सब एक -दूसरे को धोखा ही देते रहते हैं। जैसे तुमने मुझे दिया , तुम्हें किसी और ने दिया। धोखे से भरी दुनिया है ,यह.......
दुनिया कैसी है ?वह मैं नहीं जानती , किंतु मैं इतना जानती हूं ,यदि तुम्हें तनिक भी शक था ,तुम मुझसे सीधे-सीधे आकर पूछ सकते थे।
मैं ही क्यों ? मैं ही........ क्यों ? तुम भी तो बता सकती थीं।
मुझे मेरी मां, ने बताने से मना कर दिया था ,कहते हुए प्रभा रोने लगी। मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया ,कुछ छुपाया भी नहीं ,अपने उदर की तरफ देखकर बोली -छुपा ही नहीं सकती थी।
जब बताया नहीं, इसका अर्थ छुपाना ही होता है , तुम भी कोई ''दूध की धुली नहीं हो।''
तुम्हारा वो प्रेम जतलाना, घूमाने ले जाना, वह सब क्या था ? प्रभा की आंखों में आंसू आ गए थे।
वह भी एक खेल ही था, तुम मुझे बहला रही थीं , मुझसे खेल रही थीं , मैंने भी ,उस खेल में हिस्सा लिया।
उसकी बातों को सुनकर मैं बिखरती जा रही थी, एक विश्वास बनने लगा था, जो टूटता नजर आ रहा था , गलती मेरी भी थी किंतु वह भी नजरअंदाज करता रहा। मां ने तो यही कहा था -उससे कहना तुम ,उसके बच्चे की मां बनने वाली हो। किंतु परिस्थितियाँ बिल्कुल विपरीत थीं उन्हें जितना पैसा हड़पना था उन्होंने हड़प लिया। मेरे पास अब एक भी पैसा नहीं था , अपने महीने के वेतन पर जीवन निर्वाह करने लगी। फिर भी मैंने उससे पूछा -अब तो हम पति-पत्नी हैं , तुम्हारा फर्ज बनता है, मेरा ख्याल रखना ! अब मैं ऐसी स्थिति में हूं, मुझे सहारे की आवश्यकता तो होगी ही। क्या इस रिश्ते के नाम पर भी सहारा नहीं दोगे ? या इंसानियत के नाम पर ही......
तुम मुझसे क्या अपेक्षा रखती हो ? तुम्हारे इस पाप को बाप का नाम दूं ! जिसे मजे लूटने थे वह तो मजे ले गया, मुसीबत मेरे लिए छोड़ गया।
मैंने तुम पर कौन सी मुसीबत छोड़ी है ?मैं अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हूं , अभी तुम्हें कोई उत्तरदाई तो नहीं दिया था किंतु अब उम्मीद रखने लगी थी।
मत रखो ! अभी मेरे विवाह को 2 महीने भी नहीं हुए , और तुमने मुझे बहुत बड़ी खुशी दे दी। मैं बाप बन रहा हूं, इतनी शीघ्रता तो भगवान ने भी नहीं की होगी। अपनी जिम्मेदारियों से, मुक्त होकर वह अपने काम पर चला गया। उसका और मेरा कोई मेल भी नहीं रह गया था। छह महीने का पेट अच्छा दिखने लगता है , आसपास रहने वालों को भी एहसास होने लगा था, कि मैं गर्भवती हूं। तब एक दो महिला ने पूछा भी था -ऐसा लगता है, तुम्हारा विवाह अभी हुआ है किंतु गर्भवती तुम ज्यादा समय से हो।
नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है, बस विवाह वाली रात ही , यह गर्भ ठहर गया था।
हे भगवान ! एक महिला के लिए इन सभी बातों का सामना करना उनका जवाब देना कितना कठिन हो जाता है ? जिसमें उसके साथ उसका अपना पति या परिवार भी साथ खड़ा नजर नहीं आता क्षोभ से करुणा बोली।