'अनबनी चांदनी ''कुछ गुमसुम सी है ,
कुछ खोई -खोई सी !
बिखरा -बिखरा सा जहाँ ,
बिखरा सा आसमां !
रुई के फाहों में खोया ,
उलझा सा चाँद !
चाँदनी की तलाश है।
बादलों की ओट से निहारती चांदनी !
उसे अपने चाँद की आस है।
घेरे खड़ीं उदासियाँ !
न जाने क्यों ,चांदनी उदास है ?
अनबनी सी चाँदनी सोचती -
'चाँद को चाँदनी 'मिली उधार है।
पाई ,रौशनी सूरज से........
यूँ ही नहीं ,अनबनी चाँदनी उदास है।