Kanch ka rishta [part 41]

 रसोई घर को समेटकर  करुणा, अपने कमरे में आती है। तभी उसे प्रभा की बातें स्मरण हो आती हैं। वह यह देखना चाहती है ,कि क्या किशोर जी ! प्रभा की बातों को सुनने में दिलचस्पी दिखलाते हैं ,या नहीं। किन्तु करुणा को नहीं लगा ,वे उसकी प्रतीक्षा में हैं। वो तो अपना बचा हुआ ,बाकी का ''समाचार पत्र ''पढ़ने में व्यस्त हैं । अब इस '' समाचार पत्र ''में ऐसा क्या है ? अब तो यह खबरें भी बासी हो गईं हैं , करुणा बोली। 

जब तक मैंने पढ़ी नहीं, तब तक मेरे लिए तो ताजी ही हैं। पेज पलटते हुए,बोले - देखो ! कैसा अनाचार हो रहा है ? एक महिला डॉक्टर के साथ ही, कुछ लोगों ने बलात्कार कर दिया। डॉक्टर को भगवान का दर्जा दिया जाता है ,किंतु न जाने कैसे लोग हैं ? समझ नहीं आता, एक पल के लिए उनके हाथ नहीं कांपते , उनका मन उन्हें कचोटता नहीं। 



इसीलिए तो सावधानी जरूरी है , आपकी बिटिया भी बाहर जाने के लिए कह रही थी ,कह रही थी - एक घंटे में वापस आ जाऊंगी। मैंने  भेजने से इनकार कर दिया तो मुंह फुलाकर बैठ गई। 

कोई बात नहीं, जब समझ आएगा , तब उसे स्मरण होगा कि मेरी मां , हमारे परिवार वाले हमारे लिए ''सुरक्षा कवच ''का कार्य करते थे। चलो !यह तो बच्ची है, किंतु वह तो डॉक्टर थी। कैसे हमारी बेटियां सुरक्षित रहेगी ?

आजकल बच्चियां ही कहाँ सुरक्षित रह पाती हैं ? हमारी बेटियां सुरक्षित कहां रह गयीं हैं ? पहले इतना पता नहीं चल पाता था , अब धीरे-धीरे खबर ''समाचार पत्रों '' से होते हुए फोन पर, टेलीविजन पर दिखाई जाने लगी है इसीलिए उनका पता चल जाता है वरना बेटियां तो पहले भी 'महफुज़ 'नहीं थीं। कोई प्यार के नाम पर ठगता है , कोई जबरदस्ती ! कहते हुए करुणा को प्रभा की बातें  स्मरण हो रही थीं। कहने को तो बेटियों को, देवी ,कन्या, बहु को लक्ष्मी न जाने कितने रूप में विभाजित किया हुआ है ?और उन रूपों में ,उसके लिए सम्मान का भाव दिखलाई देता है किंतु जब एक बेटी ,एक कन्या ,एक नारी उस पुरुष के सामने आती है, तो उन्हें सिर्फ एक वासना का रूप ही ,उसमें दिखलाई देता है। यह सब देखने -सुनने में ढकोसला लगता है। जैसे किसी को बहलाने या खुश करने के लिए, कुछ देर  के लिए, कुछ पलों के लिए बहला दिया जाता है। जब तक मतलब पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक उसको, ''धोखे वाले ''विश्वास ''के साथ रखा जाता है। 

''धोखेवाला ''विश्वास ''अपने समाचार पत्र से नजरें उठाते हुए किशोर जी ने पूछा -यह क्या होता है ?

जिसे  विश्वास दिलाया जाता है, कि हम तुम्हारे हैं ,तुम हमारी हो ,किंतु मन में धोखा होता है, और वह धोखा वह छल ,न जाने कब छल जाए ? छलती तो नारी स्वयं अपने आप को हैं।  न जाने लड़कियों में यह क्या जुनून चढ़ा है ? लड़के -लड़की बराबर होने चाहिए। माना कि लड़के -लड़की बराबर होने चाहिए ,किंतु कुदरत ने भी तो उन्हें बराबर नहीं बनाया। जो क्षमता लड़की में है ,वह लड़के में नहीं और जो लड़के में है वह लड़की में नहीं ,तो बराबर कैसे हो सकते हैं ? किंतु इन्हें तो बराबर होना है ,कंधे से कंधा मिलाकर चलना है। बेफिजूल की बहस है, क्या लड़की होना बुरा है ? लड़की में जो शक्ति है, जो क्षमता है ,वह लड़के में नहीं है। उस नारी को अपनी ही शक्ति को पहचानना चाहिए। न कि अपनी शक्ति को ,लड़के के बराबर नापने में समय और शक्ति दोनों ही नष्ट करनी चाहिए। लड़की -लड़की ही रहे, तो बेहतर है ,आजकल वह लड़कों से भी ज्यादा अच्छा काम करती है ,घर भी संभालती है और बाहर भी कार्य करती है फिर लड़की होने में उसे क्या शर्मिंदगी ? किंतु लड़कों  की होड़ करती हैं। लड़की की जो सुंदरता, लड़की बने रहने में है वह और कहां ?

आज तुम लड़के और लड़की पर कुछ ज्यादा ही भाषण नहीं दे रही हो, किशोर जी अपने समाचार पत्र को एक तरफ रखते हुए बोले। 

क्या करूं? मन अव्यस्थित हो जाता है , आजकल का वातावरण ही, कुछ ऐसा चल रहा है। बेटी को समझाओ ! वह समझना नहीं चाहती। घर के काम सिखाओ !तो काम करना नहीं चाहती। कहीं बाहर जाने पर टोको ! तो भाई का उलाहना देने लगती है। बच्चों को समझाना मुश्किल हो गया है। ऐसा नहीं है ,कि आजकल  के बच्चे ही ,परेशान हो रहे हैं। हमारे समय में लड़कियां अधिकतर घर पर रहकर पढ़ाई के साथ-साथ गृह कार्य भी सिखती थीं। अपने परिवार के साथ, एक सुरक्षित घेरे में रहती थीं  किंतु आज उन्हें नौकरी के कारण बाहर निकलना पड़ा रहा है। सुरक्षा कवच तो उनका टूट ही गया है और जब ऐसे हादसे सुनती हूं ,तो डर जाती हूँ , मैं भी तो एक बेटी की मां हूं। यदि बेटियों को उनकी सुरक्षा के लिए जुड़े -कराटे इत्यादि सिखा भी दिया जाए, तो भावनात्मक रूप से छली जाती हैं, उनका प्रेम, उनकी भावनाएं ही उन्हें छलती हैं। 

तुम नाहक ही  परेशान हो रही हो , आज कुछ ज्यादा ही परेशान हो। चलो सो जाओ !

किशोर जी लाइट बंद करते हैं और करुणा भी बिस्तर पर लेट जाती है , तब किशोर जी पूछते हैं -क्या तुम्हारी अपनी सहेली से बात हुई थी ?

अंधेरे में ही,  करुणा ने उन्हें  देखने का प्रयास किया और बोली -यह बात, आप पहले नहीं पूछ सकते थे। 

उसने तुम्हें कुछ बताया। 

कुछ नहीं ,बहुत कुछ बताया ,कल फिर से उससे बात करूंगी , अभी मुझे नींद आ रही है। किशोर जी का तो उद्देश्य यही था कि अंधेरे में प्रभा के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी करुणा से ले लेते आखिर मेरे जाने के पश्चात उसके साथ क्या हुआ ? अंधेरे में, करुणा उनके चेहरे के भावों को भी नहीं पढ़ पाती किंतु यह बात करुणा समझ नहीं पाई। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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