Kanch ka rishta [part 40]

बच्चों की भी क्या गलती है ? कहीं न कहीं तो देख ही लेते हैं, रिश्ते ,चाहे कैसे भी हो ?किंतु रिश्ते तो हैं। बच्चों, को एहसास तो है, अब उनसे यह तो नहीं कहा जा सकता, कि रिश्ते थोड़े बदल गए हैं , या अब लोगों की सोच में परिवर्तन आ गया है। जैसे- हम छोटे-छोटे थे, हमें अपने मां से ,अपनी दादी -बाबा से ,अपनी बुआ से ,सबसे लगाव था , प्रेम था, यह बचपन ऐसा ही होता है। अपने को इन रिश्तों में घिरा पाते हैं। एक पिता की तरफ के रिश्ते !दूसरी तरफ माँ की तरफ से रिश्ते !जब बड़े होने लगते हैं , तब धीरे-धीरे ही तो इन रिश्तों की समझ, आती है। क्या उचित है ,क्या अनुचित है ? किसकी सोच कैसी है ? इस समझ के ,समझने से क्या हो जाता है ?सिर्फ दुःख का ही आभास होता है। बालपन की अबोधता अधिक समय तक कहाँ टिक पाती है ? उम्र के साथ ,समझदारी भी तो आने लगती है। ये समझदारी ही तो  एहसास कराती है। अपने -पराये और अच्छे -बुरे का अर्थ , किन्तु इससे दुःख के सिवा कुछ हासिल नहीं होता या जीवन में क्या परिवर्तन हो रहा है ? यह समय ही सिखलाता है ,इससे तो इंकार नहीं किया जा सकता। 


करुणा ने अपनी बेटी को डांट तो दिया किंतु उसे मन ही मन दुख भी हो रहा था। भला इसमें इसकी क्या गलती है ? अभी इस रिश्ते को झूठलाया तो नहीं जा सकता। मेरा भाई जैसा भी है, है तो ,उसका मामा ही , मन  का दर्द धीरे-धीरे रिस रहा था। कितनी तमन्नाओं से अपने भाई के लिए दुआ मांगती थी ,किंतु भाई इस तरह समय के अनुसार बदल जाएगा उसने सोचा भी नहीं था। भाई को लगता है, कि बहन का विवाह हो गया अब उससे हमारा कोई मतलब नहीं, या फिर वह हमसे लेने के लिए ही ,संबंध बनाकर रखती है। बस यही तक उसकी सोच सीमित है। इसी कारण तो यह रिश्ते संकुचित होते जा रहे हैं, दिल की बात भी कोई किसी से कह नहीं पाता। न जाने ,किस बात का कौन ,कैसा अर्थ निकाले ? खाना बनाते -बनाते, अपने लिए भी थाली लगा ली और बच्चों के पास ही आकर बैठ गई। 

किंतु मन व्यथित हुआ था, बच्चों से कुछ भी नहीं बोली और चुपचाप खाना खाने लगी, अपने भाई के लिए कैसे मन से भोजन बनाती थी ? उसे अच्छा-अच्छा भोजन करने की आदत थी, उसके लिए नए-नए व्यंजन बनाने का प्रयास करती थी। कितना प्रेम था ?हममें ! न जाने वह प्रेम कहां चला जाता है ? शायद घर गृहस्थी और अन्य लोगों के मध्य बंटकर रह जाता है। हर रिश्ता अपनी एक पहचान और अपना अधिकार मांगता है किंतु विवाह तो मैंने भी किया, इसके लिए कभी ससुराल वालों को अपमानित नहीं किया और अपने मायके वालों को छोड़ा नहीं। दोहरी जिम्मेदारियां निभाई ,फिर कहां चूक  हो गई ? 

मम्मी ! क्या सोच रही हो ? सुमित ने  पूछा। 

कुछ भी तो नहीं, 

नहीं, यह तो कुछ भी बोलती रहती है। आप परेशान न हों। मैंने मामा को विवाह में भी देखा है, उन्होंने मेरी ठीक से 'नमस्ते 'भी नहीं ली। 

ऐसा नहीं कहते ,उसका ध्यान नहीं गया होगा, उसके बच्चे छोटे हैं ,उसका ध्यान भटकता रहता है। तुम्हें ऐसी कोई भी दुर्भावना अपने मन में नहीं लानी चाहिए। यह रिश्ते ही तो देर-सवेर  काम आ जाते हैं, न भी आएं , तो विश्वास तो किया ही जा सकता है कि शायद, समय और परिस्थिति बदले ! जब पहले जैसी सोच नहीं रही ,तो यह वाली सोच भी शायद ,बदल जाए। हां......  थोड़ा समय अवश्य लग सकता है। 

अच्छा मम्मी मेरा तो हो गया मुझे अपना होमवर्क करने जाना है और उसके पश्चात मैं अपनी सहेली के घर भी जाऊंगी रुचि ने बताया। 

इस वक्त कौन सी सहेली के यहां जाना है ? दिन नही निकल रहा , रात्रि बढ़ती जा रही है। इस समय तुम कहीं भी नहीं जाओगी ? करुणा ने समझाया-अपने भाई के पास बैठकर, यहीं पर अपना ग्रहकार्य पूर्ण करो ! और कोई काम हो तो अपनी सहेली से फोन पर बात कर सकती हो  और वह भी काम की। 

नहीं ,मुझे उसके पास ही जाना है, वहीं पर बैठकर दोनों अपना कार्य कर लेंगे, एक घंटे में आ जाऊंगी। 

मना कर दिया, नहीं जाना है। कल दोपहर में जाकर, मिल लेना , स्कूल में नहीं मिली थी। 

आप भी न कितनी दकियानूसी होती जा रही हैं ? मुंह बनाते हुए रूचि बोली। 

यदि तुम्हें ऐसा लगता है ,तो यही सही, इसे एक मां की, एक बेटी के प्रति चिंता कहते हैं, 'सावधानी 'कहते हैं। आजकल हादसे होने में समय नहीं लगता। समय कब खराब आ जाए, पता नहीं चलता ? किंतु अपनी सावधानी भी तो जरूरी है। यदि मैं तुम्हें इस समय, बाहर सड़क पर भेजती हूं ,तो यह मेरी गलती होगी। दुर्घटना कभी कहकर नहीं आती। 

इस तरह तो आप जैसी मांएं लड़कियों को आगे नहीं बढ़ने देतीं, मुंह बनाते हुए रूचि बोली। 

तुम कुछ अधिक नहीं बोलने लगी हो, मैं तुम्हारी मां हूं ,मेरा भी कुछ अपना अनुभव है। दुनिया की ऊंच-नीच  समझ सकती हूँ जब तक बेहद आवश्यक न हो ! तब तक बाहर जाना आवश्यक नहीं। 

अभी सुमित कहीं बाहर जाने लगे , आप उसे रोकेंगीं  नहीं ,क्योंकि वह लड़का है। 

नहीं,ऐसा कुछ भी नहीं है ,बेटा हो या बेटी ! नियम! दोनों के लिए बराबर हैं ,क्यों क्या मुझे बेटे की जान प्यारी नहीं है ? उसके 'गलत संगत ' में बैठने का डर नहीं है। उसे मैं व्यर्थ में ही क्यों सड़क पर धक्के खाने के लिए भेजूंगी। अपने घर में बैठकर अपने पापा से बातें करेगा अपनी दादी के पैर दबाएगा। मां -बेटी की बात सुनकर सुमित चुपचाप उठा और अपने कमरे में चला गया। 

यह तो मम्मी और दीदी का प्रतिदिन का झगड़ा रहता है। 

दीदी !को अपने अधिकार याद आते हैं, और मम्मी उन्हें समझाती हैं। अब ये तुम्हारे आरोप बहु पुराने हो गए हैं ,भाई का बहाना बनाकर,मुझ दबाव बनाना चाहती हो। चलो !रसोईघर में ये सभी बर्तन उठाकर ले चलो !

उससे क्यों नहीं कहा ?वो चुपचाप उठकर चला गया कहते हुए रूचि भी चली गयी। 

भोजन करने के पश्चात , करुणा ने सारा सामान समेटा, सोच रही थी -आजकल के बच्चे कैसे होते जा रहे हैं ? एक हम थे ,अपनी मम्मी ! के साथ-साथ घर के कार्यों में लगे रहते थे, उनके कार्य में मदद करते थे और आजकल के बच्चे! वैसे तो इन्हें समय ही नहीं मिलता , थोड़ा बहुत मिलता भी है , तो कहीं ना कहीं व्यस्त हो जाते हैं।

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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