तुम जब भी आतीं ,
'बेमौसम 'चली आतीं।
न चाहते हुए भी......
मन को भिगो जातीं।
जब चाहत होती ,
तब न आतीं......
आतीं तो भरपूर आतीं।
अभी तो खिली धूप थीं ,
न जाने क्या हुआ ?
तेरे आने का एहसास !
मन को भिगो गया।
आनंदातिरेक से प्रफुल्लित कर गया।
तुम न आईं , भाव भीगे से प्रतीक्षारत !
टप ! एक बून्द तेरे आँचल की ,
आ बैठी ,मेरे केशों में मोती बनी।
उस ठंडक का एहसास ,
न जाने ,कितने मोती जड़ दिए ?
दोनों करतल फैला ,स्वागत में ,
तेरे आने के आभास में......
मन को भिगोती रही।
तन ही नहीं ,मन भी ,
लगता, जैसे चूमा उन्होंने भाल है।
आलिंगन में ले अपने ,
प्रेम से भिगोया ,सर्वाङ्ग है।
सकुचाई सी ,सिमटी सी ,
समेट लिया ,अपने अंदर ,
कुछ अनबनी'' सी तुम !
कुछ ''अनबनी ''सी मैं !