Anabani barasat

 तुम जब भी आतीं ,

'बेमौसम 'चली आतीं। 

 न चाहते हुए भी......

 मन को भिगो जातीं। 

जब चाहत होती ,

 तब न आतीं...... 

आतीं तो भरपूर आतीं। 


अभी तो खिली धूप थीं ,

न जाने क्या हुआ ?

तेरे आने का एहसास !

मन को भिगो गया। 

आनंदातिरेक से प्रफुल्लित कर  गया। 

तुम न आईं , भाव भीगे से प्रतीक्षारत !

टप ! एक बून्द तेरे आँचल की ,

आ बैठी ,मेरे केशों में मोती बनी। 

 उस ठंडक का एहसास ,

न जाने ,कितने मोती जड़ दिए ?

दोनों करतल फैला ,स्वागत में ,

तेरे आने के आभास में...... 

 मन को भिगोती रही। 

तन ही नहीं ,मन भी ,

लगता, जैसे चूमा उन्होंने भाल है। 

आलिंगन में ले अपने ,

प्रेम से भिगोया ,सर्वाङ्ग है। 

सकुचाई सी ,सिमटी सी ,

समेट लिया ,अपने अंदर ,

कुछ अनबनी'' सी तुम !

कुछ ''अनबनी ''सी मैं !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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