Kanch ka rishta [part 39]

करुणा ,प्रभा की कहानी सुनकर फोन तो रख देती है। अगले दिन बात पूर्ण करने के लिए कहकर फोन तो रख देती है किंतु उसका ध्यान, उसकी बातों में ही लगा रहता है। किशोर जी ,भी आने वाले ही होंगे, आते ही उन्हें, भोजन चाहिए इसलिए पहले ही वह भोजन की तैयारी करके रखती है। सब्जी काटते हुए सोच रही थी-'' यह जीवन भी क्या है ? एक तरीके से देखा जाए तो ,सौदेबाजी ही है। प्रभा का जिससे विवाह हुआ एक तरीके से सौदा ही तो हुआ ,पैसे से सौदा हो गया। इनके उसे\ रिश्ते में ,न विश्वास है ,न ही प्यार है। प्यार तो हो ही नहीं सकता जब उसे किशोर ने धोखा दे दिया किंतु एक तरीक़े से देखा जाये तो ,उस लड़के को भी तो धोखा ही मिल रहा है। ईश्वर ,भी न जाने क्या-क्या करवाता रहता है ? विवाह -शादियों में भी किसको-किससे मिला देता है और किसको, किससे  बिछड़वा देता है ? 


ज्यादातर, साधारण विवाह में, सौदेबाजी ही तो होती है ,कहीं पैसे का सौदा होता है। कहीं किसी को सूरत से, समझौता करना पड़ जाता है। कहीं किसी की सीरत नहीं मिलती किंतु तब भी, गृहस्थ जीवन आज भी  चल रहे हैं। प्रभा के विवाह में तो स्पष्ट रूप से पता चल ही रहा है , उसका यह विवाह नहीं, एक सौदेबाजी ही है। प्रभा की मोटी आमदनी, उसके पिता का पैसा ! और प्रभा को भी एक शराबी से समझौता करना पड़ रहा है। वही क्या इसके मन की हो रही है? चलो जो भी हुआ। कम से कम उसका विवाह तो हुआ, उसे धोखेबाज किशोर से तो बेहतर रहा। तभी पीछे से आकर किसी ने उसको बाहों में भर लिया। करुणा चिहुंक उठी , अचानक से उसके विचारों की श्रृंखला टूट कर बिखर गई , स्पर्श से उसे आभास हो गया था की किशोर जी, ही आ गए हैं। करुणा ने अपने को छुड़ाने का प्रयास भी नहीं किया और नज़रें उठा कर देखा और बोली -आप आ गए !

हां मैं तो आ गया, किंतु तुम न जाने कहीं गई हुई थी, कहां खो रही थी ? जो तुम्हें मेरे आने की आहट ही सुनाई नहीं दी। नजदीक आने पर ही तुम्हें पता चल पाया। तभी मैंने सोचा -श्रीमती जी ! अवश्य ही कुछ न कुछ सोच रही होगीं। 

अपने को छुड़ाकर गीले हाथों को पोंछते हुए, करुणा बोली-अभी सब्जी बनने में थोड़ा समय है, आप इतने आराम कर लीजिए और अपने कपड़े बदल लीजिए। तब मैं आपके लिए भोजन लगाती हूं।

 किशोर बाहर जाते हुए बोला-तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया, किन विचारों में खोई थीं ?

आज मेरी प्रभा से बात हुई थी , प्रभा का नाम सुनते ही, किशोर एकदम से शांत हो गया। करुणा को लगा ,जैसे वह ध्यान से उसकी बात सुनने के लिए उत्सुक है। किन्तु किशोर तुरंत ही बाथरूम में चला गया , करुणा भी रसोई में अपनी सब्जी देखने चली गई। सोच रही थी -आराम से भोजन करने के पश्चात बातें करेंगे। इन आदमी लोगों का भी कुछ नहीं कह सकते ,पहले तो पूछ रहे थे -कि क्या सोच रही हो ?जब मैंने बताना आरंभ किया ,तो बाथरूम में चले गए। जानना ही नहीं था ,तो पूछा ही क्यों था ? यह बात  करुणा को महसूस तो हुई, किंतु नजर अंदाज कर गई। गृहस्थ  जीवन में ऐसी न जाने कितनी बातें होती हैं ? जिनको  न चाहते हुए भी,नज़रअंदाज कर देना पड़ता है , इतनी छोटी-छोटी बातों पर तूल नहीं दिया जाता वरना झगड़ा कभी समाप्त ही न हो, किंतु मन ही मन करुणा ने सोच लिया था ,जब तक यह दोबारा इस विषय पर बात नहीं करेंगे या नहीं पूछेंगे, तब तक मैं कोई बात नहीं छेडूंगी। 

किशोर बाहर आया ,तब तक भोजन मेज पर लग चुका था , खाने की खुशबू ही बतला रही थी ,खाना बहुत अच्छा  बना है।  अपनी मम्मी को साथ खाने के लिए बुलाया, कुछ देर पश्चात वह भी आकर अपने बेटे के करीब ही बैठ गईं । जब तक उन मां -बेटे ने खाना खाया ,करुणा के बच्चे भी आ गए। करुणा बोली -अभी खाना गरमा -गर्म बन रहा है ,जाओ !हाथ -मुँह धोकर तुम लोग भी खाना खा लो !

हां ,भूख तो लगी है ,कहते हुए दोनों ही अपने हाथ धोने चले गए। 

खाना खाते हुए अचानक ही रुचि बोल उठी -मम्मी !अब तो सावन भी लग गया। 

तो क्या हुआ ? सावन तो हर वर्ष आता है ,सुमित बोला। 

मेरी दोस्त के यहां तो उसके मामा ने बहुत सारा घेवर और बहुत सारा सामान भिजवाया है , क्या हमारे मामा भिजवाएंगे ?

यह बात छेड़कर, शायद रुचि ने बहुत बड़ी गलती कर दी। करुणा जिस दर्द को, वह अपने अंदर दबा लेना चाहती है, सबसे छुपा लेना चाहती है , अचानक ही उसे लगने लगा, जैसे वह कहीं से रिस रहा है। किंतु किसी को दिखा भी तो नहीं सकती। बेटी को डांटते  हुए बोली -क्यों ?तुम्हें खाने को घर में कुछ नहीं मिलता ? यदि तुम्हारी घेवर खाने की इच्छा है, तो तुम्हारे पापा ला देंगे। 

नहीं, पापा तो लाते ही रहते हैं, किंतु जब मामा लेंगे ,उसकी बात ही कुछ अलग होती है। 

बात कुछ अलग नहीं होती, वह भी बाजार से ही लेगा ,घर में बना कर नहीं लायेगा। उसके पास समय ही कहां है ? कि वह किसी रिश्ते को याद रख सके। उसकी भी अपनी परेशानियां है , हमें यूं ही किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। 

आपने मुझे इतनी सारी बातें बतला दीं , किंतु यह नहीं सोचा ,कि मामा से एक बार, सावन पर आने के लिए कह दें ,रुचि जिद करते हुए बोली। 

अच्छा खासा मूड था, इस लड़की ने सब व्यर्थ कर दिया।  जिंदगी में अपने को संभालने में लगी हूं , किंतु कोई ना कोई मुझे चुटकी सी काट ही देता है, झुनझुलाते हुए, करुणा ने , उसकी थाली में भोजन रखा और रसोई घर में चली गई। 

तो मम्मी  को क्यों चिढ़ाती रहती हो ? जबकि तुम जानती हो ,मामा के कारण ,मम्मी को कई बार बहुत दुख पहुंचा है , फिर भी तुम्हें यह बात समझ में नहीं आती सुमित रुचि को डांटते  हुए बोला। 

भाई ,ऐसे थोड़े ही ना होता है, कल को मैं भी अपनी ससुराल में चली जाऊंगी, तो क्या तू भी मुझसे ,संबंध तोड़ लेगा ? क्या मैं तेरी बहन नहीं रहूंगी ? बता , अब बोलता क्यों नहीं ?

तुम दोनों बहन -भाइयों से , आराम से भोजन नहीं किया जाता, क्रोधित होते हुए करुणा बोली। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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