बालपन से ही करता, नित नई शरारतें !
देख !दादी -बाबा होते प्रसन्न मन की शरारतें !
शैतान मन की शैतानी देख ,हँसते -मुस्कुराते ,
अंदाजा न लगा ,सके कहते -यही तो बचपन है।
सह पा ,मन कुछ अधिक शैतान हुआ।
बड़े भी कहते ,नियंत्रण से बाहर हुआ।
अब इसको नियंत्रित करना आवश्यक हुआ।
कसो लग़ाम !अब , नियंत्रण से बाहर हुआ।
वरना न जाने ये क्या -क्या कर जायेगा ?
शैतानी के नए - नए घोड़े दौड़ाएगा।
नई -नई दिमाग़ की खुरपातें समझायेगा।
सर्वत्र ,अब ये चिंता का विषय बन जायेगा।
प्रभु भक्ति की ओर ध्यान अग्रसित करो !
वरना ये शैतान बन जायेगा।
ज्ञान से इसका ,तोड़ो !अहं !
जीवन का सार समझ आ जायेगा।
खाली दिमाग़ और मन शैतान का घर ,
काम करने से नादानियों से बाज आएगा।
अन्य इन्द्रियों से ये बहुत चंचल और चपल है,
व्यस्त रखो इसको, नियंत्रण से बाहर हो जायेगा।
