Sazishen [part 93]

आज अचानक प्रातः काल ही ,नीलिमा का फोन घन-घना उठा, अलसाई सी नीलिमा अंगड़ाई लेते हुए , सोचती है -आज सुबह-सुबह न जाने ,किसका फोन आ गया ?हेलो !,कौन है? 

अच्छा ?अब मैं कौन हो गई हूं ? मुझे लगता है, मेरा नंबर भी सेव किया हुआ नहीं है ,मेरी आवाज भी पहचानते हैं ,या नहीं ,उधर से ताने ,सुनाते हुए आवाज आई। 

आवाज को पहचानते हुए ,नीलिमा बोली -अच्छा !शिवांगी बोल रही है, कहते हुए , नीलिमा एकदम से बिस्तर पर ही उठकर बैठ गई। अच्छा !मेरी लाड़ली बेटी  'शिवांगी 'बोल रही है, उसे मैं कैसे भूल सकती हूं ?


नहीं ,मुझे तो लगता है ,आप मुझे भूल ही गई हैं, अब तो सुना है -दीदी ,के पास ही रहती हैं, अच्छा !जरा स्मरण करके बताइए तो सही, आपने मुझे कब फोन किया था ? शिकायत भरे लहजे में शिवांगी बोली। 

नीलिमा सोच रही थी -कि हां हम अपनी परेशानियों में इतना उलझ गए थे , इसको फोन किए हुए तो एक महीना हो गया और बताओ !तुम्हारी पढ़ाई कैसी चल रही है ?बात को बदलते हुए, नीलिमा ने पूछा। 

बस दो महीने बाकी हैं, उसके पश्चात, मेरी पढ़ाई पूर्ण हो जाएगी शिवांगी बोली। 

तभी कल्पना की आंख भी खुल गई और बोली -मम्मा !आज सुबह-सुबह किसका फोन आ गया ?

तुम्हारी बहन का है , शिकायत कर रही है -'कि आप लोगों ने तो मुझे भूला ही दिया।' 

तुम भी कोई भूलने वाली चीज हो ,कहते हुए कल्पना हंसने लगी , नीलिमा ने फोन स्पीकर पर डाल दिया था  ताकि दोनों मां -बेटी एक साथ बातें कर सकें और बताओ ?क्या हाल-चाल हैं ? जिंदगी कैसी कट रही है ?

 कट नहीं रही ,दौड़ रही है, चहकते हुए शिवांगी बोली।  

क्या ,वहां कोई लड़का मिल गया ? नीलिमा के सामने ही, कल्पना ने शिवांगी से पूछ लिया। तेरी नजर में कोई हो तो ,मुझे बता देना ,मैं तुम्हारी बड़ी बहन हूं, मुझसे  बिना पूछे कुछ नहीं होगा अकड़ दिखाते हुए कल्पना बोली। 

अच्छा जी, फोन करने तक की तो फुरसत नहीं ,एक बार भी फोन करके पूछा नहीं जाता, कि बहन कैसी है ? और यह मेरे 'बॉयफ्रेंड 'से मेरी बातें करवायेंगीं। 

यानी कि तुम्हारा कोई 'बॉयफ्रेंड' है , उत्सुकता से कल्पना ने फोन नीलिमा के हाथों से ले लिया। नीलिमा चाय बनाने के लिए चली गई। बता कौन है, कैसा है ?

ज्यादा उत्साहित होने की आवश्यकता नहीं ,आपने मुझे कभी कुछ बताया , पहले तो आप मुझसे बड़ी हो, पहले आप अपने लिए सोचिए !अभी मैं आपसे छोटी हूं। 

 छोटे -बड़े होने से कुछ नहीं होता, न जाने कब -किसका तुक्का लग जाए ? कब ,किसका दिल किसी पर आ जाएँ हालांकि मैं तुमसे ज्यादा सुंदर लड़की हूं,अच्छी लड़की हूं किंतु हो सकता है,  तुम्हारा समय अच्छा चल रहा हो। 

आप क्या कहना चाहती हैं ?कि मैं स्मार्ट और सुंदर नहीं हूं। 

नहीं, मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा, कल्पना को चिढ़ाते हुए बोली, तब तक नीलिमा भी चाय लेकर आई थी, एक कप उसने कल्पना को दिया और एक कप स्वयं लेकर कुर्सी पर बैठ गई। अच्छा बता ,तूने आज इतनी सुबह फोन कैसे किया ?

सुबह कहां है ? मेरे यहां के समय में अंतर है मेरे यहां तो अभी 12:00 रहे हैं ?

हां, यह तो हमने सोचा ही नहीं, अच्छा तो बता अब तूने इतनी दोपहर में फोन क्यों किया ?कहते हुए कल्पना हंसने लगी। क्या आज तेरी छुट्टी है ?

मैं सोच रही थी ,क्यों न तुम दोनों भी यहां आ जाओ ! घूमेंगे ,खूब मस्ती करेंगे। एक यूरोप ट्रिप बना लेते हैं। 

आईडिया तो तुम्हारा बहुत अच्छा है, किंतु मेरी नौकरी का क्या होगा ? मुझे इतने दिन की छुट्टी कैसे मिलेगी ? कल्पना सोचते हुए बोली।

ज्यादा दिन की नहीं ,कम से कम एक सप्ताह की छुट्टी ले लो ! मम्मा  का भी घूमना हो जाएगा। 

तुम्हारी मां तो बहुत घूम चुकी है , बस अब तुम्हारा घर बसाना बाकी है। तुम्हें वहां कोई लड़का पसंद हो तो तुम मुझे बता देना, वरना मैं यहां तुम्हारे लिए कोई लड़का ढूंढती हूं। 

आप तो इस तरह से कह रही है ,जैसे दीदी के लिए आपने लड़का पहले से ही ढूंढ लिया है , शिवांगी ने पूछा। 

हां ,हां अभी कल ही तो ........  तभी कल्पना ने अपनी माँ  को ,शिवांगी से ये सब बताने से रोक दिया, और इशारे से उसे बताने के लिए ,मना करने लगी। 

क्यों क्या हुआ ,कैसे चुप हो गईं ? शिवांगी को थोड़ा वहम  हुआ। 

तुम्हारी छोटी बहन है, उसे तो पता होना ही चाहिए , नीलिमा ने कल्पना को समझाया। 

नहीं ,उसको अचानक से मिलवाकर चौंका देंगे। 

नहीं ,कुछ तो संकेत दे ही देते हैं ,कहते हुए शिवांगी से बोली -अभी बताती हूं, एक लड़का है, बेचारा बहुत गरीब है किंतु अपनी कल्पना से बहुत प्यार करता है, बस उसी से  रिश्ते की बात कर रहे हैं, कहते हुए नीलिमा हंस रही थी। क्योंकि वह जानती थी कि वह लड़का कौन है ? किंतु जब तक उसने छुपाया हुआ है वह भी किसी को स्पष्ट नहीं कर रही थी ,कि वह जानती है कि वह लड़का, बहुत पैसे वाले ''वस्त्रों  के व्यापारी 'जावेरी प्रसाद जी ''का इकलौता बेटा है। यदि वह अपने आप को गरीब बनकर ही, प्रस्तुत कर रहा है तो वही सही....... बाद में सच्चाई तो अपने आप ही सामने आ जाएगी। 

आप !यह क्या कह रही हैं ? दीदी का किसी गरीब लड़के पर दिल आया है ?

तो क्या हुआ ? मेहनती है, महत्वाकांक्षी है , व्यवहार में अच्छा है, और सबसे अधिक बड़ी बात वह मुझसे प्यार करता है, मेरा सम्मान करता है और मुझे क्या चाहिए ? दोनों मिलकर कमायेंगे और खुश रहेंगे। एका एक कल्पना बोल उठी। 

वाह !!!!! तो बात यहां तक पहुंच गई और मुझे भनक भी नहीं, आग लगी हुई है, किंतु मुझे धुआँ भी नहीं दिखलाई दिया। 

सब कुछ इतना अचानक से हो गया, कुछ पता ही नहीं चला, और सबसे बड़ी बात तो यही है, कि हमारे मम्मा ! तो हम सबसे बहुत आगे हैं, वो पहली बार मम्मा से मिलने आया था और उसके आते ही ,मेरी माँ ने उससे विवाह की बात करनी आरंभ कर दी, कल्पना शिकायत भरे लहज़े में शिवांगी से बोली ,किन्तु मन ही मन प्रसन्न हो रही थी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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