नीलिमा जानना चाहती थी ,कि तुषार के पापा यानि ''जावेरी प्रसाद '' उसे पहचान पाते हैं या नहीं। यदि पहचान पाते हैं,तो मुझे परेशान करने में ,अवश्य ही इनका हाथ था। ''जावेरी प्रसाद जी ''नीलिमा की सोच के विरुद्ध वो उसको पहचानने से इंकार करते हैं किन्तु ये बात अवश्य स्वीकार करते हैं कि हरिद्वार में ,उनके पिता के द्वारा बनाया गया एक मकान अवश्य है। जब नीलिमा ने उनके द्वारा दिए चैक की बात करती है , तो उन्हें आश्चर्य होता है और कहते हैं -मैंने तो ऐसा कोई चैक नहीं दिया।
ये बातें सुनकर तुषार को भी आश्चर्य होता है ,ये मेरे विवाह के लिए बातें करने आईं हैं किन्तु कुछ और बातें कर रहीं हैं। नीलिमा मन ही मन सोचती है -जब ''जावेरी प्रसाद जी ''को कोई जानकारी नहीं है ,तब अवश्य ही इनकी पत्नी ने भेजा होगा ,जिसके विषय में अभी तक कोई चर्चा नहीं हुई। तब कहती है -हो सकता है ,आपके नाम से आपकी पत्नी ने भेजा हो।
पत्नी का नाम सुनते ही ,वो थोड़े चुप हो गए और बेटे की तरफ देखा ,तुषार बोला -कल्पना को तो मैंने पहले ही बता दिया था, मेरी माँ नहीं है।
ओह ! माफ कीजिये !मुझे मालूम नहीं था।
कोई बात नहीं ,आप चाय लिजिये ठंडी हो रही है। चाय का घूंट भरते हुए नीलिमा बोली -आपने मेरी बेटी को तो देखा ही है ,हमने आपके बेटे को देखा है। दोनों एक दूसरे को पसंद भी करते हैं। अब इस विषय में आपकी क्या राय है ?
जी इसमें मैं क्या कह सकता हूँ ?आजकल बच्चे अपनी इच्छा से ही विवाह करते हैं।
आपकी ये बात तो सही है ,किन्तु आज भी बच्चे बड़ों का इतना मान तो रख ही रहे हैं ,उन्होंने अपनी इच्छा से हमें अवगत करा दिया। यदि मंदिर में या क़ानूनन विवाह कर लेते तब ही हम क्या कर लेते ?ये तो इन बच्चों की अच्छाई है ,अपने परिवार और अपने माता -पिता का सम्मान बनाकर चल रहे हैं। आप सही कह रहीं हैं।
पापा ! मैं अभी आता हूँ ,आप आंटीजी से बातें कीजिये ! कहकर तुषार बाहर चला गया।
अच्छा ,एक बात बताइये !आप भी इस कम्पनी में कार्यरत हैं और आपका बेटा भी अच्छा कमा रहा है। तब इतने वर्षों में ,आपने कोई मकान नहीं बनाया, कोई फ्लैट या कोई छोटा -मोटा ही रहने के लिए घर तो बनाना चाहिए था। आपका एक ही बेटा है ,अब हमारी बेटी ब्याहकर कहाँ जाएगी ?
क्या बात करती हैं ?आप ! कहाँ जाएगी क्या मतलब ?अपनी ससुराल यानि अपने घर जाएगी। इतना आलीशान घर है ,ये उस घर की मालकिन होगी।
किन्तु तुषार ने तो, हमें इस विषय में कुछ नहीं बताया।
तुषार और कहीं नहीं गया था ,बल्कि कल्पना से मिलने ही गया था ,कल्पना अपनी मेज पर कार्य में व्यस्त थी। तुषार ने अंदर जाकर उसकी आँखों पर हाथ रख लिए।
अचानक इस तरह ऑंखें बंद हो जाने के कारण ,कल्पना थोड़ी परेशान हो उठी और उसने तुरंत ही उन हाथों को पकड़ा,और बोली -कौन हैं ?सोच रही थी ,इस तरह तो कोई भी ,इस तरह तो आँखें बंद नहीं करेगा। अंदाजा लगा रही थी ,कि कौन हो सकता है ?तभी उसे शरारत सूझी और बोली -कार्तिक मैंने तुमसे कितनी बार कहा है ? तुम्हारी ,इस तरह की शरारत ठीक नहीं किन्तु तुम हो ,कि मानोगे नहीं,कहते हुए ,तेजी से हाथों को अपनी आँखों से हटाया क्योंकि तुषार सोचने लगा था -आखिर ये' कार्तिक' कौन है ?आज तक इसने मुझे कभी उसके विषय में नहीं बताया। आँखों से हाथ हटते ही उसने अपनी कुर्सी घुमाई और बोली -मुझे मालूम था ,तुम्हीं होंगे।
अभी तो तुम कार्तिक का नाम ले रहीं थीं ,मुझे देखते ही ,कहने लगीं - तुम्हीं होंगे ,मेरा नाम कार्तिक नहीं ,ये कार्तिक कौन है ?
कल्पना मुस्कुराते हुए बोली -कार्तिक भी मेरा दोस्त है।
तुमने इससे पहले तो कभी नहीं बताया।
कैसे बताती ?अभी -अभी जो बना है ,कहते हुए हंसने लगी किन्तु तुषार गंभीर हो गया। बस यही दोस्ती और विश्वास है ,एक कल्पनिक नाम लेते ही ,तुम्हारा भरोसा डगमगा गया। तुम क्या समझते हो ?मैं तुम्हें पहचान नहीं पाऊँगी !मैं तुम्हारी खुशबू से तुम्हें पहले ही पहचान गयी थी किन्तु मुझे भी शरारत सूझी कहते हुए ,मुँह फुलाकर बैठ गयी।
सॉरी यार गलती हो गई।
हम इस रिश्ते में आगे बढ़ने वाले हैं, और तुम्हारी सोच अभी तक दकियानूसी बातों में फंसे हुये हो। उन दोनों के इस तरह के व्यवहार को देखकर, कंपनी के अन्य लोग भी उधर देखने लगे। तुषार को बुरा लगा और तुषार बोला-अभी चलता हूं फिर मिलूंगा, कहकर वहां से आ गया।
अजी !नादान है अभी हमसे रूठा है इसीलिए........ कहते -कहते रुक गए क्योंकि उन्हें तुषार आते हुए दिख गया था।
चलिए आंटी जी आप को छोड़ देता हूं। तुषार का चेहरा गंभीर था, नीलिमा ने जब उसकी तरफ देखा तो उससे पूछा -बेटा ! कुछ हुआ है।
कुछ नहीं, चलिए !मुझे भी देर हो रही है, कहते हुए आगे -आगे चल देता है, और नीलिमा चुपचाप उसके पीछे जाती है।
