बचपन भोला था ,
मासूम ,अनजान था।
जो साथ खेला ,वही दोस्त !
फिर चाहे ,दादी हों, या दादा !
न भविष्य, की चिंता ,
न भूतकाल का ज्ञान !
वर्तमान में जीता था।
जो मन को अच्छा लगे ,
वही दोस्त बन जाता था।
चाहे, मेले की फिरकी हो।
या फिर हो कोई गुब्बारा !
कीमत उसकी का महत्व नहीं ,
चाहिए वही ,जो लगे आँखों को प्यारा !
कट्टी से बट्टी तक का सफ़र !
सजकर ,नवीन वस्त्र पहन !
इठलाते हुए ,दिखाने की डगर !
भोलेपन का ,जिन्दा वो सफ़र !
आज खोया है ,यादों के साये में ,
बड़ा बनने की चाहत !न जाने !
कहाँ गया ?वो बचपन ,बिन आहट !
