Rasiya [ part 35]

सभी दोस्तों ने ,मयंक के पिता को मनाने का प्रयास किया और उन्हें लग रहा था -शायद ,हमारी योजना सफल भी हुई है। मयंक के पिता ने उन्हें अपने बेटे को ढूंढकर लाने के लिए कहा था। मित्रों की टोली, प्रसन्न होते हुए , उसे ढूंढने का बहाना करने के लिए बाहर निकल गए जबकि मयंक तो वहीं छुपा हुआ खड़ा था। कुछ देर के अभिनय के पश्चात ,वे मयंक को लेकर आ गए चाचा !अब कहो !मयंक से जो भी कहना है, सुरेश बोला। 

कहना क्या है ? यह तुम्हारे साथ घूम-घूमकर आवारागर्दी  करता रहता है, काम -धाम में इसका तनिक भी ध्यान नहीं है। बड़ा आया पढ़ने वाला, क्या हम पढ़ने के लिए बाहर गए ? हमने अपना परिवार संभाला , अपने माता-पिता की सेवा की। 

तभी तो ताऊजी आप ज्यादा उन्नति नहीं कर सके, बाहर जाकर देखिए ! लोग कितनी उन्नति कर रहे हैं ? और आप यहाँ ''कूप मंडूक ''बने बैठे हैं। 


क्यों रे श्रीधर के ,तेरी जबान कुछ ज्यादा ही, नहीं चलने लगी है। 

इस गांव से बाहर निकलकर तो देखिए ! तब आपको पता चलेगा, कि दुनिया कहां से कहां पहुंच गई है ? चतुर भी अपनी बात पर डटा रहा। जब वे लोग, मयंक को ढूंढने का अभिनय कर रहे थे, तब उन्होंने अपने साथ चतुर को भी ले लिया था। कोई बात नहीं, ताऊजी ! आपका बेटा है ,आपकी जैसी भी इच्छा हो, आप इसे पढ़ाये  या न पढ़ाये ! हमारा दोस्ती के नाते यह कर्त्तव्य था ,कि हम अपने दोस्त को भी ,साथ लेकर चलें। उसको आगे सही राह दिखाते , बाकी कल को अन्य दोस्त तरक्की करें ,तो आपको बुरा नहीं लगना चाहिए, कहते हुए चतुर,अपने दोस्तों से बोला -हमारा कार्य, अपने साथ-साथ अपने दोस्तों की तरक्की देखना भी था। बाकी अब उनकी इच्छा !जैसा वे चाहें  ! आओ !चलो घर चलते हैं। 

पढ़ -लिखकर तुम क्या सभी 'कलेक्टर 'बन जाओगे ?

सभी कलेक्टर तो नहीं बनेंगे, किंतु कोई अध्यापक, कोई डॉक्टर, जिसकी जैसी बुद्धि चलेगी वही तो बनेगा। हमारा कार्य परिश्रम करना है। बाकी तो किस्मत के हाथ है, कह कर वह लोग बाहर आ गए। 

अगले दिन विद्यालय में, ट्रांसफर सर्टिफिकेट के लिए लाइन लगी हुई थी। 

वहां के शिक्षक देखकर आश्चर्यचकित हुए और बोले -क्या बात है ? जब मैं बाहर पढ़ने जाने के लिए अन्य विद्यार्थियों से कहता था तो कोई मेरी बात नहीं मानता था किंतु आज तो लाइन लगी हुई है.

हां, हम सभी बाहर जाकर पढ़ना चाहते हैं , बच्चों ने समवेत  स्वर में कहा  . 

तुम्हारी टोली का एक बच्चा कम नजर आ रहा है ,मास्टर जी ने पूछा। 

वह भी आएगा आप चिंता मत कीजिए ! चलो तो सभी अपने-अपने फार्म भर लो ! कल तक तुम्हें सर्टिफिकेट मिल जाएगा। सभी बच्चे अत्यंत प्रसन्न हुए। कुछ देर के पश्चात मयंक भी पहुंच गया था, सभी अत्यंत प्रसन्न हुए और मयंक से पूछा - क्या तुम्हारे बापू मान गए ?

मानते कैसे नहीं ? जब मैंने मां को समझाया , और मां ने उन्हें समझाया ,तब तो उन्हें मनाना ही पड़ा। उसकी बात सुनकर सभी मित्र हंसने लगे। अब एक समस्या और आ खड़ी हुई थी। कुछ बच्चों के घर में तो पहले से ही साइकिल थी , कुछ के पिता ने माता-पिता ने आश्वासन दिया था अब की फसल में तुम्हारी साइकिल आ जाएगी। तब तक दोस्तों का कैरियर कब काम आएगा ? अंत में ही यह तय हुआ, जिनके पास साइकिल नहीं है वह अपने मित्रों की साइकिल पर बैठकर जाएंगे। इसमें किसी के भी माता-पिता को कोई भी आपत्ति नहीं थी, यह अब  उनके दोस्तों का आपस का मामला था। कितना अच्छा लग रहा था? सभी बच्चे अपनी -अपनी  साइकिल पर गांव से बाहर पढ़ने के लिए जा रहे थे। यह चतुर के माध्यम से, इस गांव में एक नई पहल थी। जो सभी बच्चे, गांव से बाहर पढ़ने के लिए जा रहे थे। हालांकि उन्होंने सोचा हुआ ,कुछ और ही था किंतु वह बाद की बात है। 

ऐसा नहीं ,उनका दाखिला इतनी आसानी से हो गया, इस जगह से उसे जगह काफी भाग दौड़ करनी पड़ी। सभी को अंकों के आधार पर, उन्हें दाखिले मिले। बच्चों में कुछ अत्यधिक उतावलापन था, वह पूछ रहे थे-जरा एक झलक कस्तूरी की तो दिखला !

उनकी इस तरह की बेचैनी को देखकर, चतुर मुस्कुरा देता। अब उसे लगने लगा था, कि उसे अपनी कस्तूरी को किसी को दिखाना नहीं चाहिए। एक दिन ,चाय वाले की दुकान पर पहुंच गया, वह उसे दिखलाना चाहता था, कि मैं एक अच्छे परिवार का लड़का हूं। मजबूरी में, तुम्हारे यहां नौकरी की थी, किंतु आज मेरी हैसियत, चाय वाले से भी अधिक है। अपने दोस्तों को भी वही ले गया था , चाय वाला उसे देखकर हैरान रह गया, और वह सोच रहा था -क्या यह वही लड़का है ?जो, मेरे यहां 2 जून रोटी के लिए नौकरी कर रहा था। वैसे,वह  समझ गया, कि वह उसकी मजबूरी थी, वह गुस्से से घर से निकला था और चाय वाले ने भी उसका भरपूर लाभ उठाया था। 

जब चतुर ने अपने दोस्तों को बताया -इसी चाय वाले की लड़की है, तो सभी जोर-जोर से हंसने लगेऔर बोले -इसका ससुर तो चाय वाला है। ये चाय वाले का दामाद बनेगा ? इस तरीके के व्यंग उस पर कसने लगे। सभी मित्रों को आते जाते, लगभग 6 महीने हो गए थे किंतु अभी तक कोई लड़की उनकी दोस्त नहीं बनी थी। हालांकि उनका प्रयास यही रहता। इस तरह किसी आती-जाती लड़की को छेड़ने का प्रयास भी करते किंतु अपना बचाव भी रखते। सुशील की तो आगे पढ़ाई में दिलचस्पी भी नहीं रही , मुझे अब और नहीं पढ़ना है -सारा दिन, यहीं पर निकल जाता है। न मौज -मस्ती से रहना खाना ,भागमभाग रहती है ,मुझे जिंदगी में , किसी भी प्रकार की परेशानी नहीं चाहिए। इम्तिहानो की तैयारी करो परीक्षा सिर पर आ रही हैं। मुझसे  यह पढ़ाई नहीं होगी, अपने घर वालों को अंतिम निर्णय सुनाया , उसके माता-पिता उसे पढ़ाना चाहते थे किंतु उसने जाने से इनकार कर दिया। मयंक के माता-पिता चाहते थे -कि वह घर में रहे ,दो -एक बरस के पश्चात इसका विवाह कर देंगे और वह अपनी गृहस्थी बसाये। अब सभी दोस्तों की जिंदगी में कुछ उतार -चढ़ाव चल रहे थे। सबकी अपनी-अपनी सोच बदल रही थी। जिंदगी में,परिवर्तन आना संभव है। यही सब उनकी जिंदगी में हो रहा था। 

क्या सभी दोस्त ! आगे उन्नति कर पाएंगे कौन क्या बनता है ? और किस राह पर चलता है ? जानने के लिए पढ़ते रहिए , चतुर भार्गव की है कहानी-रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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