की उसने ,कुछ इस तरह इश्क़ की साजिशें !
सब जानकर भी , कुछ समझ ना आया।
पहले उसने मुझे अपने प्रेम जाल में फंसाया।
मोहमाया, शब्दों का जाल इस क़दर बिछाया।
उस मकड़े के जाल में फंसने पर समझ आया।
''शब्दों का जाल ''इस क़दर बिछाया ,
मुझे अपने'' दिल की रानी 'बतलाया।
जिंदगी की ,ख़्यालों की मल्लिका बना।
ख्यालों में ही ''ख़्याली ताज ''पहनाया।
ख्याली पुलाव की महक ने दिल हर्षाया ।
मेहरबानी उसकी,घर की मालकिन बन ,
अपने उदार , नादान दिल को बहलाया।
साजिश-ए -इश्क़ की ज़रा और सुनिए !
इतने पर भी उसे सब्र ना आया !
जब खुले ज्ञानचक्षु ,टूटा भृमजाल , माया जाल!
दिल की रानी'ने अपने को उसके बच्चों की माँ...
उसके घर की ''नौकरानी ''के रूप में पाया।
साज़िशें बहुत कठिन थीं , जाल में फड़फड़ाती मैं !
पूछा ?तुमने' दिल की रानी 'को नौकरानी बनाया।
अभी भी तुम'' रानी'' हो ,मेरे जीवन की नौका को ,
तुम्हीं ने तो पार लगाया,फेंक वही पाश मुझे बहलाया।
उसके' मोहिनी जाल' से फिर कोई निकल ना पाया।
