बहुत दिनों पश्चात, करुणा की दोस्त प्रभा का ,उसके यहां ,प्रभा की ,बेटी के 'विवाह का निमंत्रण पत्र ''आया था। करुणा इस तरह अचानक ,अपनी दोस्त के विषय में जानकर और उस कार्ड को देखकर ,आश्चर्य चकित होने के साथ-साथ ,भावुक भी हो उठी। उसने कभी भी, किशोर जी को उसके विषय में नहीं बताया था। बताती भी क्या ? जब उसने कोई संबंध ही नहीं रखा,किन्तु आज अचानक सभी यादें ताज़ा हो गयीं।
तब वह किशोर जी को, प्रभा के विषय में बताती है -वह कॉलेज के समय में, मेरी दोस्त थी और उसका विवाह हो जाने के पश्चात ,अचानक वह न जाने कहाँ गायब हो गई ?फिर उससे हमारा कोई संबंध ही नहीं रहा। मेरे पास उसका पता भी नहीं था। अब न जाने उसे कैसे? मेरा पता मिल गया और उसने अपनी बेटी के विवाह का कार्ड भेजा है। किंतु साथ ही, उसे इस बात का दुख भी हुआ कि अब उसके पति इस दुनिया में नहीं रहे। न जाने, उसने अपने आप को ,ऐसे हालातों में कैसे संभाला होगा ?यही सब सोचकर वह भावुक हो उठी।
तब किशोर जी ने करुणा को समझाया -इस कार्ड पर, उसका फोन नंबर भी है ,तुम उसे फोन करके यह सब बातें पूछ सकती हो।
उनकी इस बात से करुणा के बहते जज्बातों को थोड़ा सहारा मिला। तब वह किशोर जी से कहती है -जब वह मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी तो परेशान थी ,उसके पिता दिल्ली में एक बहुत बड़े व्यापारी थे किंतु पैसा होना ही ,सब कुछ नहीं होता। एक -दूसरे की परवाह करना ,एक दूसरे का साथ देना भी मायने रखता है। उसकी एक बड़ी बहन थी। भाई उस घर के बेटे थे ,खुलकर खर्च करते थे। उसके विवाह के लिए लड़का ढूंढ रहे थे, किंतु अब वह 32 साल की हो गई हैं ,कोई लड़का नहीं मिल रहा था। उससे छोटे दोनो भाइयों का विवाह हो चुका था ,जब उसके भाई अपनी पत्नियों को साथ लेकर घूमने जाते थे ,तो दीदी को बड़ा अज़ीब महसूस होता था।
सबसे बुरा तो तभी लगा,जब घरवाले ,उनको छोड़कर ,अपने बेटों के लिए ,लड़की देखने में व्यस्त हो गए। उसे तो जैसे समय के लिए छोड़ दिया गया था। एक दिन भाई ने कहा -दीदी !के साथ हमारी उम्र भी तो बढ़ती जा रही है। कब इनका विवाह होगा ?और कब हमारे लिए लड़की देखी जाएगी ?
क्यों ?क्या तुम्हारी बहन सुंदर नहीं है ?मैंने पूछा था।
नहीं ,ऐसा नहीं है, किंतु ज्यादा सुंदर भी नहीं है किंतु उसके रिश्ते तो आ रहे थे। उस समय हमारे ही घर वालों ने उन रिश्तों को कोई भाव नहीं दिया। वे कहते -यह हमारे स्तर का लड़का नहीं है। दीदी जब 22 की थी, तब रिश्ते आने आरम्भ हुए थे। कुछ लोगों को दीदी पसंद नहीं आई, और कुछ हमारे परिवार को पसंद नहीं आए। धीरे-धीरे उम्र बढ़ती रही, दीदी ,खुलकर कुछ कहती भी नहीं है। किन्तु एक दिन उन्होंने कह भी दिया था -'' जैसा भी दिखे , आप उसी लड़के से मेरा विवाह कर दो ! तुम लोगों की ज़िम्मेदारी भी पूर्ण होगी ,मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। उसके बाद लड़के आते, और दीदी हर बार की तरह निराश हो जाती। यदि वह विवाह नहीं करना चाहती, तब तो बात समझ में बात आती भी है, किंतु वह विवाह करना चाहती हैं। उनका भी एक अपना परिवार हो, एक हमसफर!जिसके साथ वह अपना सुख -दुख बांट सकें, किंतु वहीं मिलना बहुत मुश्किल हो रहा था।
उम्र और निराशा उनके चेहरे पर अपने निशान छोड़ने लगी थी। न जाने कैसे ,अब तो कहीं-कहीं बालों में सफेदी भी झांकने लगी हालांकि अभी उनकी उम्र इतनी नहीं हुई है किंतु लगता है ,मन ही मन, वो बहुत सोचती हैं -इसीलिए उम्र से पहले ही ज्यादा बड़ी सी दिखने लगी हैं।
दोनों भाई !अपने ऊपर सब व्यय कर रहे हैं ,अपनी जिंदगी अपने मजे से जी रहे हैं ,किंतु अब बहन के लिए लड़का ढूंढने का उनके पास समय नहीं था। यह भी कह सकते हैं ,अब उन्हें लड़का ढूंढने में कोई दिलचस्पी भी नहीं रही क्योंकि उनके विवाह तो हो गए। अगर वह अटके रहते, तो शायद, लड़का ढूंढने पर जोर देते।
एक बार तो मैंने [प्रभा ने ]देखा था। जब वे, लोग अपनी पत्नियों के साथ, हंसी ठिठोली करते, कमरे में जाते , दीदी उन्हें जाते चुपचाप देखती रहती। गहरी सांस लेती, और आंखें मूंद लेती। विवशता उनके चेहरे से टपकती थी। अब स्वयं प्रभा को भी ,अपनी जिंदगी के विषय में चिंता होने लगी थी क्योंकि उसे लग रहा था अभी तक बहन का ही विवाह नहीं हुआ तो मेरा नंबर कब आएगा ?
जब मैंने कहा- कि कोई भी, अच्छा सा लड़का देखकर शादी कर दो !
तब उसने जवाब दिया-'' घर वालों का कथन है -अपने बराबरी का ही लड़का देखना है ,कोई ऑफिसर लड़का देखना है। अब लड़के आते भी हैं किंतु बहन की उम्र को देखकर चले जाते हैं ,न जाने कब उसे लड़का मिलेगा और कब मेरा नंबर आएगा ? आठ साल तो उसे नौकरी करते-करते हो गया था। लगभग 1 वर्ष हुआ था ,तभी उसने अपनी बहन के विवाह का कार्ड भेजा था , वह बहुत प्रसन्न थी ,आखिर एक अच्छे परिवार में उसकी बहन का विवाह तय हो गया था। उसके लिए भी ,रास्ता खुल गया है ,मैं तो उसकी बहन के विवाह में नहीं जा पाई थी। किंतु पता चला था - उन लोगों ने अच्छी शादी की है। हमारी डिग्री भी पूरी होने वाली थी। एक दिन उसी ने बताया कि उसने स्वयं ही कह दिया था -कि मेरे लिए अभी से लड़का देखना आरंभ कर दो !क्योंकि उसमें भी समय लगेगा।
एक दिन बता रही थी। भाई घूमने के लिए स्विट्जरलैंड गया है ,पापा ने कहा था -कि लड़का देखना आरंभ कर दो !
तब कहने लगा -कहां से ढूंढ कर ला दें , लड़का !आपने इतनी बेटियां पैदा ही क्यों की ?अभी पहली का बोझ ही सिर से उतरा है ,थोड़ा शांति से तो रहने दो !हमारे पास अभी समय भी नहीं है। किसी न किसी बहाने से एक तरह से इनकार ही कर देते हैं और अपनी बीवियों के लिए उनके पास समय ही समय है। घूमने जाते हैं ,पिक्चर देखने जाते हैं किंतु घर के कोने में बहन अकेली है ,उस पर कभी ध्यान नहीं दिया जाता। बाप का पैसा ,लेने के लिए वो !और बाप की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं। पापा की उम्र भी तो बढ़ती जा रही है।
एक दंपति घर का निर्माण करते हैं, उसे परिवार को बढ़ाना, और जोड़ कर रखना चाहते हैं , उसके लिए ताउम्र परिश्रम करते रहते हैं, उसका संपूर्ण भर अपने कंधों पर उठाते हैं किंतु अंत में उन्हें पता चलता है , जो कुछ भी वह कर रहे थे, उसका परिणाम अच्छा नहीं निकला। परिवार में जितने भी नए सदस्य बन जाते हैं ,उनकी एक अलग सोच बन जाती है। जब भी तभी तो परिवार को जोड़कर रखा जा सकता है जब कोई जुड़ना चाहे ! खैर यह सब बातें तो होती रहेगी, आगे क्या हुआ जानने के लिए मिलते हैं ,अगले भाग में -''कांच का रिश्ता''
