करुणा, जब अपने घर पहुंची, तो उसे दरवाजे पर लगा, एक लिफाफा मिला। न जाने ,किसका लिफाफा है ? सामान बच्चों को पकड़ा दिया था ,अपनी सभी उलझनों को भूलकर, वह सोचने लगी -आखिर किसका पत्र हो सकता है ?बाहर से ही ,उसको देखने लगी। आजकल पत्र कौन लिखता है ?और यह पत्र भी नहीं मुझे तो लगता है, यह किसी के विवाह का कार्ड है। पता तो सही लिखा है, किंतु भेजने वाले ने अपना फोन नंबर, पता कुछ नहीं लिखा , खोलकर ही देखना होगा। फिर सोचा -शायद ,किशोर के किसी साथ का भी हो सकता है। तब भी ,लिफाफा तो खोलना ही होगा ,वह लिफाफे को खोलकर, उसे देखने में व्यस्त हो गई और अचानक ही मुस्कुरा उठी और किशोर जी से बोली -यह तो मेरी सहेली प्रभा की बेटी के विवाह का ''निमंत्रण पत्र ''है।
प्रभा !!! आश्चर्य से किशोर जी ने करुणा की तरफ देखा और बोले -जहां तक मैं जानता हूं , तुम्हारी सहेली तो नंदिनी है, इसका नाम तो मैंने पहले कभी नहीं सुना।
हां ,यह मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी, हम दोनों में अच्छी दोस्ती थी, किंतु इसका विवाह हो गया ,विवाह के पश्चात हमारा वर्षों तक कोई संबंध नहीं रहा। न जाने कहां चली गई थी ? उसका कोई फोन नंबर भी नहीं था। वह तो एक तरीके से गायब ही हो गई थी और आज अचानक इस तरह उसने अपनी बेटी के विवाह का कार्ड भेजा है, आपके लिए ही नहीं मेरे लिए भी,बड़े ही ,आश्चर्य की बात है। न जाने ,उसे मेरा पता कहां से मिल गया ? मैं उसे ढूंढ ना सकी और उसने मुझे ढूंढ लिया।
तुमने ढूंढने का प्रयास ही नहीं किया होगा, जब कोई दिल से किसी को ढूंढता है, तो मिल ही जाता है , किशोर जी ने व्यंग्य किया।
अब मैं उसे कहां जाकर ढूंढती ? मुझे तो उम्मीद भी नहीं थी कि इस तरह वह दोबारा हमारी जिंदगी में प्रवेश कर जाएगी।
हमारी में नहीं ,तुम्हारी में, मैंने तो उसे देखा भी नहीं।
हां -हां एक ही बात है, आप और मैं ,हम दोनों अलग-अलग थोड़े ही हैं , कहकर करुणा मुस्कुरा दी। उसे प्रसन्नता हो रही थी कि वर्षों के पश्चात, सहेली मिलेगी और वह भी उसकी बेटी के विवाह में, कितने वर्ष बीत गए ?बच्चे भी कब बड़े हो जाते हैं ?पता ही नहीं चलता किंतु उसकी बेटी तो मेरे बच्चों से बड़ी ही होगी, क्योंकि उसका विवाह तो मुझसे तीन-चार वर्ष पहले हुआ था। अचानक वह तो विवाह के बाद गायब हो गई थी, किसी से कोई मिलना जुलना नहीं ,न जाने उसकी जिंदगी में क्या रहा होगा ? कैसी उसकी जिंदगी बीती होगी ?
जाओ !अब एक कप कॉफी तो बना लाओ ! तब तुम्हारी सहेली की कहानी तुमसे सुनते हैं।
क्यों ? मैं भी तो काफी लूँगी ,एक कप क्यों ?दो कप बनाती हूं, कहते हुए रसोई घर की तरफ चल दी। प्रभा से मिले हुए लगभग बीस -पच्चीस वर्ष हो गए। न जाने कैसी लगती होगी ? मन प्रसन्नता से भर उठा,बरसों पश्चात आज उसकी कोई सूचना मिली है। कॉफी मग में करके करुणा ,किशोर जी के पास आई और बोली - वह पढ़ने में वो बहुत ही होशियार थी। अमीर परिवार से थी किन्तु परेशान रहती थी।
क्यों परेशान रहती थी ?उत्सुकतापूर्वक किशोर जी ने करुणा से प्रश्न किया तभी करुणा को जैसे कोई बात स्मरण हुई और बोली -एक मिनट ! कहते हुए उसने कार्ड को पुनः खोलकर देखा ,बोली -प्रसन्नता में तो मैं यही भूल गयी कि विवाह कहाँ पर हो रहा है ? हमें जाना कहाँ है ? अरे !!!!यह तो देहरादून में है , वहीं पर विवाह कर रही है। तभी देखा ,उसके पति के नाम के साथ'' स्वर्गीय ''भी लगा है। यह क्या अचानक उसके मुख से निकला।
क्यों क्या हुआ ? किशोर जी ने करुणा के चेहरे के भावों को पढ़ते हुए पूछा।
उसके तो पति ही नहीं रहे , न जाने कब यह हादसा हुआ होगा ? कम से कम एक बार तो मुझे बताती, न जाने बेचारी, ने क्या-क्या झेला होगा ? सोते हुए करुणा की आंखें नम हो आईं।
वह तुम्हें बात कर परेशान नहीं करना चाहती होगी। हो सकता है ,उस समय परिस्थितियों ऐसी रही हों ,उसे किसी बात का होश ही नहीं रहा होगा। इस तरह परेशान होने से क्या लाभ ? अब तो फोन पर बात कर सकती हो। कार्ड को पढ़ते हुए बोले -इसमें नंबर लिखा हुआ है , जब भी समय मिले बात कर लेना।
करुणा के मन को थोड़ी राहत मिली बोली -विवाह में अभी एक सप्ताह बाकी है , मैं कल ही ,उससे बात करूंगी।
अब तो तुम मुझे उसके विषय में कुछ बता सकती हो , तुम कुछ कह रही थीं -कि अच्छे परिवार से थी।
हां ,उसके पिता दिल्ली में एक बहुत बड़े व्यापारी थे। यदि आप लोग भी जानना चाहते हैं ,प्रभा की कहानी क्या थी ?अगले भाग में मिलते हैं - काँच का रिश्ता !
