Rasiya [part 49]

परिणाम बिल्कुल स्पष्ट था ,तब सरपंच जी, एक कुर्सी के ऊपर खड़े हो गए , और सभी को अपने हाथों के द्वारा शांत रहने के लिए कहने लगे -भाइयों !शांत हो जाइये ! शांत हो जाइये !वरना मैं अपनी बात नहीं कह पाउँगा। नीचे खड़े लोग भी एकदूसरे को शांत रहने के लिए कहने लगे।  जब भीड़ में थोड़ी शांति हुई तब सरपंच जी बोले -कोई अगली पट्टी का हो या पीछली पट्टी का ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये सभी बच्चे हमारे अपने हैं। इस गांव के बच्चे हैं।  इसमें किसी को भी, कोई दुश्मनी का भाव नहीं होना चाहिए। हर बार बच्चे अपनी सुविधा के अनुसार, खेलते रहते हैं किंतु कभी उन्होंने यह जानना नहीं चाहा। कि हम कितना सही और या गलत खेल रहे हैं। गांव के बच्चे हैं ,मनोरंजन के लिए खेल लेते हैं। किंतु आज इस प्रतिस्पर्धा से, यह बात साबित हो गई कि हमारे गाँव के बच्चे होनहार होने के साथ -साथ ,बच्चे सही दिशा में जा रहे हैं।


 हार -जीत तो लगी ही रहती है। आज ये तो कल वह भी जीत सकते हैं। इसमें हमें, किसी भी प्रकार की आपस में दुश्मनी नहीं होनी चाहिए बल्कि मेरा तो यह मानना है कि हमारे बच्चे इतने योग्य हैं कि हमें अन्य गांव वालों के बच्चों से भी ,प्रतिस्पर्धा रखनी चाहिए ताकि वह आगे बढ़ते रहें और अपने गांव का नाम रोशन करते रहें। हमारे लिए सभी बच्चे समान है। कई बार, वक़्त की बात भी हो जाती है आज इनका समय था तो कल उनका भी हो सकता है जो बच्चे जीत नहीं सके। उनमें भी कौशल की कमी नहीं है ,वे भी किसी से कम नहीं हैं। वह हताश न हों , मैंने अपने अन्य साथियों से मिलकर, और बातचीत करके यह निर्णय लिया है। अब से हर छठे महीने गांव में , इसी तरह की प्रतिस्पर्धा हुआ करेगी और जीतने वाली टीम को इनाम भी दिया जाएगा। योजना आज से ही आरंभ होगी। हां ,इसके कुछ नियम और इनाम वगैरहा  होंगे वह समय के अनुसार बढ़ाये भी जा सकते हैं। कुछ परिवर्तन करना होगा तो परिवर्तन भी किया जा सकता है। हम सभी को इस बात पर हर्ष होना चाहिए , कि हमारे ही गांव के होनहार विद्यार्थी 'चतुर भार्गव 'की टीम ने अच्छा प्रदर्शन किया। कहते हुए उन्होंने धनराशि देने के लिए चतुर  का नाम पुकारा - सभी दोस्तों ने चतुर को  आगे धकेला , ताकि वह इनाम की राशि शीघ्र से शीघ्र लाये और वे  उस पैसे से मौज -मस्ती कर सकें। 

चतुर आगे आया और उसने, सरपंच जी के हाथों से इनाम की धनराशि ली उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया सभी लोगों ने ताली बजाई। सरपंच जी से चतुर ने , दो शब्द कहने के लिए इजाजत मांगी। सरपंच जी कुर्सी से उतर गए और बोले -तुम इस कुर्सी पर खड़े होकर कुछ भी कह सकते हो।

 चतुर बोला -यह आपके लिए है ,मैं ऐसे ही , अपनी बात कहना चाहूंगा। अब चतुर थोड़ा भावुक हो गया था -मेरे प्यारे साथियों ! मैं नहीं जानता था आज का दिन मेरे लिए इतना सुखदायक और महत्वपूर्ण होगा।  यह दिन  मेरी जिंदगी में एक नया बदलाव लेकर आया है। मुझे इस बात की प्रसन्नता है ,कि हम लोग, जीत गए , किंतु यह जीत हमारी ही नहीं, हमारे गांव की जीत है। हमारे परस्पर भाईचारे की ,और प्रेम की जीत है। जो टीम हारी है, उन्होंने बहुत अच्छा खेला है, यह बात हम सब स्वीकार करते हैं ,वह भी अच्छे खिलाड़ी हैं। हमारे ही भाई -बंधु हैं, कुछ लोगों को,मैंने यह भी, कहते सुना है -कि कलवे के कारण, ही हमारी टीम जीती है , यह बात सही है, मैं उसका तहेदिल से शुक्रिया करता हूं और आज मैंने माना, कि वह एक अच्छा खिलाड़ी है। हम अधिकतर अपनी शिक्षा पर ध्यान देते हैं किंतु उसका  मन  शिक्षा में नहीं लगता है किंतु वह हमसे बेहतर खिलाड़ी है। हर व्यक्ति में एक न एक विशेष योग्यता अवश्य होती है और यह कलवे में है, कि वह अच्छा खिलाड़ी बन सकता है। इसीलिए मैं चाहूंगा, यदि मेरी टीम को किसी भी प्रकार की आपत्ति न हो, तो हम सभी, उसके साथी, अपनी इनाम की धनराशि में से , 25 -25 रुपया उसको देते हैं। 

यह बात सुनते ही ,चतुर के दोस्तों का चेहरे  उतर गये  ,ये देखो !कैसा दानवीर कर्ण बन रहा है ?यदि इसे पैसे देने ही थे तो अपने हिस्से में से दे देता क्रोधित होते हुए सुशील अपने दोस्तों बोला। 

दूसरी तरफ उसके इस निर्णय से बहुत से लोग प्रसन्न हो तालियां बजा रहे थे। सभी के चेहरों पर प्रसन्नता छाई थी। आज गांव में ऐसा कुछ हुआ था जो सभी को रोमांचित कर गया था। कोई योजना नहीं थी, कि यहां पर इस तरह से मैच भी होगा। धीरे -धीरे भीड़ कम होने लगी। सभी मन में एक उल्लास लिए अपने -अपने घरों की तरफ प्रस्थान कर गए। चतुर के पिता ,जो अपने बेटे के कारण ,प्रसन्नता से भावुक हो ,उठे थे लोग ,उनके बेटे के कारण ,उन्हें बधाई दे रहे थे। अब श्रीधर जी , चतुर के भीड़ से अलग होने की प्रतीक्षा में थे। वहीँ उसके दोस्त भी ,भीड़ के छंट जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इससे पहले की वो लोग चतुर के करीब आते उसके पापा बोले - बेटा !आज तूने मेरा सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। 

पापा !इसमें मैंने कुछ नहीं किया ,जो हुआ है ,अपने आप ही होता चला गया ,अपने दोस्तों को वहीं नजदीक ही खड़े देखकर बोला -ये सब इन सभी के सहयोग से हुआ है ,ये लोग साथ नहीं देते तो मैं क्या कर लेता ?आज चतुर को महसूस हो रहा था कि किसी भी कार्य का श्रेय अपने ऊपर लेने से ज्यादा ,अपने साथियों के सहयोग को ही ,इसका कारण बताने पर ,मन को एक अजीब सा सुकून मिलता है। इसी कारण जब भी कोई उसे बधाई देता तो....... चतुर, अपनी टीम , दोस्तों के सहयोग की सराहना करता। इसी के चलते उसने अपने पिता से भी यही कहा। 

श्रीधर जी ने ,जब चतुर के दोस्तों को करीब ही खड़े देखा तो बोले -मुझे लगता है ,तुम्हारे दोस्त तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रहे हैं ,तुम अपने दोस्तों से मिल लो !मैं अभी चलता हूँ ,घर पर बातें करेंगे। 

चतुर ने अपने दोस्तों की तरफ देखा उसे कुछ अच्छा नहीं लगा और श्रीधर जी से बोला -मैं भी, आपके संग ही चलता हूँ ,अब सारा दिन इन्हीं के संग ही तो था। 

दोस्तों के थोड़ा करीब जाकर बोला -पापा ,प्रतीक्षा कर रहे हैं ,कल मिलते हैं कहकर अपने पिता के साथ हो लिया। 

आखिर चतुर अपने  दोस्तों से क्यों नहीं मिलना चाहता था ?उसे क्या अच्छा नहीं लगा ?मिलते हैं ,अगले भाग में -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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