Rasiya [part 48]

आज गांव में पहली बार ऐसा हो रहा था ,हालात कैसे भी रहे हों ?किन्तु चतुर के कारण ही ,गांव के लड़कों में बाहर जाकर पढ़ने का उत्साह जागा और अब ''क्रिकेट मैच ''जैसे -जैसे लोगों  को इस बात की जानकारी हुई ,वैसे ही ,अपने -अपने कार्य निपटाकर मैदान में आ डटे। हालाँकि  मैदान काफी बड़ा था किन्तु लोगों की भीड़ देखकर ,छोटा ही लग रहा था। तब कुछ लोग तो, आँखों देखा हाल जानने के लिए ,पेड़ों की मजबूत टहनियों पर ही जगह बनाकर बैठ गए। जिनके घरों की छतों से दिखलाई दे सकता था, वे भी धीरे -धीरे अपने सभी कार्य पूर्ण करके छतों पर आकर बैठ गए। चतुर ने एक बार उस भीड़ को देखा और उसे आश्चर्य हुआ ,हमारे गांव में इतने लोग एक साथ रहते हैं। चतुर की टीम पहले ही टॉस जीत चुकी थी और चिराग को सबसे पहले बल्लेबाज़ के रूप में भेजा गया। चिराग़ ने भी कमाल किया ,जाते ही,' छक्का 'मार दिया। प्रसन्नता से सभी उछल पड़े तब दूसरी टीम के बच्चों ने आपस में सलाह की और गेंद फेंकी किन्तु अबकि बार चिराग कमाल न दिखा सका। चिराग इतना खेलता ही कहां था ? कभी -कभार समय मिल जाए तो अपना शौक पूरा कर लेता था। 10 रन से ज्यादा न बना सका और आउट हो गया। 



उत्साहित होते हुए, सुदेश की टीम में से एक ने व्यंग्य किया -यह टीम तो बहुत कमजोर है ,इसे तो हम सरलता से यूं ही छका  देंगे। 

अभी मैच की शुरुआत है, मैच पूरा नहीं हुआ है , पूरा होने पर बात करना चतुर ने उस लड़के की तरफ देखते हुए कहा और अपनी टीम की तरफ देख कर कहा- ''हिम्मत हारने की जरूरत नहीं है , पूरी लगन और मेहनत से खेलना है , हार- जीत तो लगी ही रहती है, किंतु खेल को खेल की तरह ही खेलना है ,हमें किसी से दुश्मनी नहीं निभानी है, जब हम अकेले खेलते थे और अब प्रतिद्वंद्वी के साथ खेल रहे हैं तो प्रयास यही रहेगा , कि हर संभव जीतने का ही प्रयास करें ! कहते हुए उसने अगले खिलाड़ी तन्मय को भेज दिया।

 धीरे-धीरे उसके सभी खिलाड़ी, आउट होते चले गए सबसे अंत में उसने कलुवा को भेजा , कलवे  का मन पढ़ाई में तो था ही नहीं ,या तो घर खेती के कार्य करता या फिर अक्सर अकेले भी ,गेंद और बल्ले से जूझता रहता था। अब वही उस टीम का सहारा था और उस टीम का आखिरी खिलाड़ी भी.......  इतनी देर से कलवा उस मैच को बड़े ध्यान से देख रहा था और जो दूसरी टीम का, गेंदबाज था उसकी हरकतों को भी समझ रहा था , बड़े आत्मविश्वास के साथ, और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ कलुआ मैदान में आया। कलवे  ने हाथ में बल्ला लिया और दूसरी टीम के खिलाड़ियों को देखा ,जो उसे देखकर हंस रहे थे। 

''कलुवा देखने में काला होने के साथ -साथ अपने दोस्तों के हिसाब से थोड़ा लम्बाई में भी कम रह गया था किन्तु अपनी कमी हो या फिर लोगों के व्यंग्य का कारण बनने पर भी ,वह कभी इस ओर ध्यान ही नहीं देता था या अब उसे इस सब की आदत हो गयी ,ये भी कह सकते हैं।'' 

दोस्तों !पूरी टीम हार चुकी है ,अब ये महाशय आये हैं ,कहते हुए विरोधी टीम का एक लड़का हंसा। 

तभी दूसरा बोला - यह क्या रन बनाएगा ? जब ओर ही कुछ न कर सके। ताली बजाकर हंसने लगे। 

किन्तु जब पहली गेंद पर ही कलवे ने छक्का लगा दिया, मैदान तालियों  की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। तब विरोधी टीम की सोच जड़ हो गयी। अब तो कुछ अन्य लोगों को, उम्मीद भी बन गई थी, कि शायद यह कुछ कर जाएगा और हुआ भी ऐसा ही, अकेले कलवे ने 50 रन बना दिए।

बहुत -बहुत अच्छे आज तुमने हमारी टीम की लाज रख ली ,कहते हुए चतुर ने कल्वे को गले लगाया और उसकी पीठ थपथपाई। तब चतुर अपनी टीम से बोला -अब हमें उनके इतने रन बनने नहीं देना है। बस एकजुट हो जाओ !और पूरे जोश से अब इनको हराना है। 

''देखन में छोटे लगें ,घाव करें गंभीर ''अपने नयन मटकाते हुए ,अगली पट्टी का एक व्यक्ति जो बहुत देर से उनकी बातें सुन रहा था। कहते हुए खड़ा होकर नाचने लगा। डेढ़ सौ रन बनाकर, चतुर की टीम का कार्य पूर्ण हुआ। 

अब दूसरी टीम की बारी थी यानी कि ''सुदेश ''की टीम की, वे सभी अच्छा खेल रहे थे, उनकी कुशलता योग्यता देखकर ,चतुर की टीम ने भी, मन ही मन यह बात स्वीकार कर ली थी -कि वे लोग उनसे ज्यादा अच्छा खेल रहे हैं, किंतु यहां पर बात उस टीम को हराने की थी। न की उनकी प्रशंसा करने की। उन्होंने अब कलवे से भी सलाह ली क्योंकि उनमें से कुछ को कलवा अच्छे से जानता था कि कौन ,किस चीज में अच्छा है ?सभी एक जगह एकत्र से हो गए और आपस में सलाह की। उनका प्रयास यही रहता, कि उन लोगों के रन न बनने पायें। जिन्होंने आरम्भ में ही छक्के चौके लगाए तो आउट भी शीघ्र ही हो गए। 

अब तक सौ रन बनने के पश्चात सुदेश की टीम के सिर्फ दो खिलाडी बचे हैं।  कोई इतना अच्छा हो भी सकता है, कि जिस तरह से अकेले कलवे ने 50 रन बना दिए। तब तो वह जीत ही जाएंगे। अब सिर्फ उधर की टीम के, दो खिलाड़ी ही खेल रहे थे। सब की भूख -प्यास गायब थी, कुछ अपना खाना लेकर वहीं आ गए थे और वहीं  मैच देखते हुए भोजन का आनंद ले रहे थे।

कुछ ने तो नारे लगाने आरंभ कर दिए थे -जीतेगा तो......  हमारा 'चतुर भार्गव 'ही , दूसरी तरफ से स्वर गूंज रहा था। सुदेश !सुदेश ! सुदेश !

सबको पूर्ण विश्वास था, कि 'सुदेश 'की टीम ही जीतेगी अभी उसके दो खिलाड़ी, बचे हैं। आज का मैच बहुत ही रोमांचक रहा है , बड़ा मजा आ रहा है अपने गांव के बच्चों को इस तरह खेलते हुए देखकर, उत्साहित होते हुए सरपंच जी , खड़े होकर कुछ कहना चाहते थे किन्तु भीड़ में से तरह-तरह की आवाज़ें आ रही थीं , कोई किसी को समझा रहा था ,कोई किसी का समर्थन कर रहा था। प्रमोद ने मैदान में जाते ही ,छक्के -चौके जड़ दिए जिसके कारण ,चहुँ ओर प्रमोद के नारे लग रहे थे। अभी उनके पैंतीस रन ही हुए थे।सबको पूर्ण विश्वास था -इक्यावन रन तो यूँ ही बन जायेंगे।

  किन्तु अचानक ही ,जैसे सभी की ''उम्मीदों पर पानी पड़ गया '' इस बार रन लेते हुए ,उनका एक खिलाड़ी 'रन आउट 'हो गया। मैदान में एकदम से पलभर के लिए ही सही जैसे शांति छाई और तभी जोर -जोर से तालियों की गड़गड़ाहट गूँज उठी। 

परिणाम बिल्कुल स्पष्ट था , चतुर की टीम ने डेढ़ सौ रन बनाए थे, और सुदेश की टीम 135 पर ही आउट हो गई थी। 

यह देखकर , भीड़ में से कुछ लोगों में पिछली पट्टी और आगे की पट्टी के लोगों में आपस में झगड़ा भी होने लगा था क्योकि भीड़ में से एक व्यक्ति कह रहा था -यदि इनकी टीम में कलवा न होता तो ये टीम पिछली पट्टी वालों से कभी भी न जीत पाते। 

कलवा भी तो हमारी ही पट्टी का है ,कैसे भी जीते ,जीती तो आगे की ही पट्टी ,हम तो पहले से ही आगे हैं और आगे ही रहेंगे कहते हुए रामखिलावन का लड़का नाचने लगा उसको नाचते देखकर ,रामकिशन का  लड़का अनिल चिढ गया और उसने ,उसको  धक्का दे दिया जिसके कारण रामखिलावन का लड़का, किसी दूसरे पर जाकर गिरा। इस तरह भीड़ में हो हल्ला हो गया।

अरे !मुझ पर क्यों गिर रहा है ? कहते हुए संतोष ने उसे उठाया। 

मैं गिरा नहीं ,मुझे उसने धक्का दिया है कहते हुए उसने अनिल की तरफ इशारा किया। 

''खिसयानी बिल्ली ,खंभा नोंचे ''कहते हुए संतोष बोला - इनकी पट्टी हार गयी तो हार का गुस्सा तो निकालेंगे ही ,वो देखो !सरपंच जी कुछ कह रहे हैं ,आओ !थोड़ा आगे चलकर उनकी बात सुनते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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