जब चतुर अपने गांव के, बड़े मैदान में अपने दोस्तों के संग, खेलने पहुंचा तो वहां पहले से ही ,कुछ लड़के खेल रहे थे। वे और कोई नहीं ,उसी गांव के ही ''पिछली पट्टी'' के लड़के थे। चतुर ने कहा -हम यहाँ कभी -कभी ही खेलने आते हैं ,आज यहाँ हमें खेलने दो !
तब उनमें से एक लड़का अकड़ते हुए बोला -हम यहाँ प्रतिदिन खेलते हैं ,हम यहाँ से नहीं जायेंगे ,तुम यदि यहाँ खेलना ही चाहते हो तो मैदान के उधर कोने में खेल लो !
इस बात से,चतुर के दोस्तों को भी क्रोध आ गया और बात तू -तू ,मैं -मैं पर आ गयी। क्यों ? ये जगह क्या तेरे बाप ने खरीदी है ? तन्मय झल्लाते हुए बोला।
ओय !बाप पर मत जाइयो ! मेरे बाप ने नहीं खरीदी तो....... क्या तेरे बाप के नाम रजिस्ट्री हुई है ?
ये कोई लड़ने की बात नहीं है ,हम यहाँ खेलने आये हैं ,सुबह -सुबह मुड़ ख़राब मत करो !चतुर बोला।
हम कर रहे हैं ,जा !अपने दोस्तों को लेकर यहाँ से चला जा ! पहले हम यहाँ आये थे ,अब तो हम ही खेलेंगे,उनमें से एक उम्र में तो कम ही होगा किन्तु लंबाई में उन सभी से ज्यादा लम्बा नजर आ रहा था।
ओय जिराफ़ ! ये धौंस जाकर किसी और को दियो !कहते हुए मयंक ,चतुर से बोला -ये सब ,तेरी वजह से ही हो रहा है ,यदि तू जल्दी उठकर आ जाता तो हम ,इनसे पहले आ गए होते।
ये क्या बात हुई ?अब आदमी अपने घर में ,तसल्ली से सो भी नहीं सकता,अभी सात ही बजे हैं। ऐसे क्या यहाँ पांच बजे से ही डेरा जमा लेते या रात्रि में ही ,आकर अपनी जगह निश्चित कर जाते।
मैदान में बच्चों को खेलते न देखकर आने -जाने वालों का ध्यान उस ओर गया। दूर से देखने पर सुनाई तो कुछ दे नहीं रहा था किन्तु उनकी हरकतों से लग रहा था कि वे लड़ रहे हैं। कुछ तो उन्हें देखकर निकल गए किन्तु तभी एक व्यक्ति ने सोचा ,कहीं ये लड़ तो नहीं रहे ,इसीलिए उसने बच्चों के समीप आकर पूछा -बच्चो !क्या बात है ?क्या ?आज खेल नहीं हो रहा है।
क्या बताएं ? चाचा !ये पिछली पट्टी के बालक हमसे पहले आ गए और अब हमें यहाँ खेलने के लिए जगह नहीं दे रहे हैं ,कहते हैं -तुम उधर खेल लो !
वहां भी काफी जमीन है ,तुम वहां खेल लो !तेतर चाचा बात को सहजता से संभालते हुए बोले।
कैसे खेल लें ?सुशील चिढ़ते हुए बोला -उधर गड्ढे हैं ,एक जगह पानी भरा है और नजदीक ही किसी का खेत भी हैं ,उनका नुकसान हो गया तो उनकी भरपाई कौन करेगा ?तेतर की तरफ आँखों को घुमाते हुए बोला।
तब तुम लोग मिलकर खेल लो !
न... न.... हमारा इनका क्या मेल ?हमारी टीम अलग है ,आज तक हमने कभी इनको खेलते हुए भी नहीं देखा।
अपने खेतों की तरफ जाते हुए, रामलाल जी ने भी उधर देखा , अपने ट्रैक्टर से उतरे, और पूछा -यहां क्या हो रहा है ? उन्हें भी अंदेशा हो गया था शायद ,यहां पर बच्चों में झगड़ा हो रहा है। इस गांव के सभी व्यक्ति आपस में एक दूसरे का ख्याल रखते थे , और किसी भी तरह के झगड़े से बचना चाहते थे और किसी के भी झगड़ा को देखकर उसे सुलझाने का प्रयास भी करते थे। अपनी इसी तरह की आदत के चलते हुए तेतर चाचा भी वहां पहुंच गए थे और अब रामलाल जी भी, आ गए। वह नहीं चाहते थे, कि गांव के बच्चों में आपस में किसी भी तरह का झगड़ा या दुश्मनी हो। वह भी वहां खड़े होकर उनकी बात समझने का प्रयास करने लगे और अब इस लड़ाई में कहें या बातचीत में ! बड़े भी शामिल हो गए थे।
अब यह दो गुटों की लड़ाई बड़ों के बीच पहुंच गयी थी । तेतरसिंह जी गांव के समझदार व्यक्तियों में से गिने जाते थे। तब उन्होंने उन सभी को एक सुझाव दिया -क्यों ,न दोनों गुटों के मध्य ही ,'क्रिकेट का मैच' रख दिया जाये ? उनकी यह बात सुनकर, सभी लड़के एक दूसरे का मुंह देखने लगे।
रामलाल जी ने भी ,उनकी बात का समर्थन किया , और बोले -यह बात बिल्कुल सही है , अभी तक तो तुम लोग आपस में ही खेलते थे। जीतो या हारो कोई फर्क नहीं पड़ता था। मौज -मस्ती में खेल लिए किंतु इतने दिनों से खेल रहे हो , कम से कम पता तो लगना चाहिए ''कौन कितने पानी में है। '' क्यों न अगली पट्टी वालों का और पिछली पट्टी वालों का ,एक बढ़िया सा मैच हो जाए उत्साहित होते हुए बोले।
कहो बच्चों !क्या कहते हो ? तेतर सिंह जी ने पूछा।
पिछली पट्टी वालों को अपने पर पूर्ण विश्वास था , उनके गुट के नेता [ सुदेश ] ने आपस में सलाह की और बोला -हमें तो कोई आपत्ति नहीं है ,आप इनसे ही पूछ लो ! कहते हुए उसने, चतुर की टीम की तरफ इशारा किया।
हां हां हमें ही क्या आपत्ति हो सकती है ? हम क्या किसी से कम हैं ? तुम्हारी तरह सारा दिन खेलते तो नहीं है ,लेकिन किसी से कम भी नहीं हैं।
वह तो खेलने पर पता चल ही जाएगा, दूसरी टीम में से एक लड़के ने व्यंग्य से मुस्कुराते हुए कहा।
गांव का ही एक व्यक्ति वहां खड़ा होकर उन सब की बातें सुन रहा था। उसे भी यह योजना बहुत अच्छी लगी और वह उत्साहित होते हुए गांव की तरफ भागा और शोर मचाते हुए जा रहा था-आज क्रिकेट मैच होगा , आज क्रिकेट मैच होगा ! पिछली पट्टी और अगली पट्टी के लड़कों के बीच ! एक दूसरे से यह बात संपूर्ण गांव में फैल गई। अगली पट्टी वाले अपने को बड़ा मानते थे, और पिछली पट्टी वाले अपने को बड़ा मानते थे। फिर सब बराबर ही थे , किंतु उनकी सोच में ही अंतर था। इस बात को सुनकर ,सभी उत्साहित हो उठे। सबके लिए ही यह रोमांचक पल था।
सबकी सलाह से,इन दो गुटों के मध्य, क्रिकेट का मैच तय किया जाता है , बात इतनी बढ़ गई, उसमें सरपंच जी को भी, शामिल होना पड़ा। लोगों का उत्साह देखकर, सरपंच जी ने , जीतने वाली टीम को ₹1100 इनाम देने का निर्णय लिया और घोषणा भी की। जिसके कारण खिलाडियों में ही नहीं ,बल्कि गांव के लोगों में भी उत्साह बढ़ गया। जो भी जिसके समर्थन में था ,वही उत्साह के साथ मैदान में आ डटा। अब उन लोगों के सामने प्रतिद्व्न्दी टीम खड़ी थी ,जो एक गुट' चतुर 'का था और दूसरा 'सुदेश 'का। देखते ही देखते मैदान में ,खूब भीड़ हो गयी।
बात छोटी सी थी और तू -तू ,मैं -मैं पर आते -आते प्रतियोगिता का रूप ले लिया ,यह सब गांव में पहली बार हो रहा था ,आइये !आगे क्या होता है ?आगे बढ़ते हैं -''रसिया ''के साथ.......