Kanch ka rishta [part 35]

प्रभा ,किशोर से कोर्ट मैरिज करना चाहती थी, हालांकि इसके लिए किशोर अभी तैयार नहीं था किंतु फिर प्रभा ने उसे मना ही  लिया था और वह मान भी गया था। कोर्ट के बाहर प्रभा, दुल्हन 'के रूप में, किशोर की प्रतीक्षा कर रही थी किन्तु  किशोर नहीं आया। वह निराश होकर वापस आ गई। प्रभा जिंदगी की मुश्किलों से इतनी जल्दी हार मानना नहीं चाहती थी इसलिए उसने एक नौकरी की तलाश आरंभ कर दी ताकि वह इस घर से और घरवालों से दूर जा सके और किसी को उसके विषय में पता भी न चले। वह नहीं जानती थी जिंदगी इतनी आसन नहीं है, यदि जिंदगी इतनी आसान होती तो.......  हर किसी को इससे लड़ने के लिए इतनी मेहनत न करनी पड़ती। वह नौकरी की तलाश में जगह-जगह भटकती रही, किंतु उसे नौकरी नहीं मिली। जब उसके गर्भ को 5 महीने हो गए, तब उसकी मां ने, महसूस किया कि प्रभा का पेट पहले से अधिक बड़ा हो गया है। 


मां ने बेटी को टोकते हुए, कहा -प्रभा ! कम खाया करो ! देखो तुम्हारा पेट कैसे बढ़ता जा रहा है ? कल को तुम्हारे लिए लड़का देखने चलेंगे , तो लड़के वाले देखते ही मना कर देंगे,' कि लड़की मोटी है।' 

भाभी का भी उस ओर ध्यान गया और बोली -मुझे तो मम्मी जी कुछ और ही लगता है।

अपनी बेटी के विषय में, वे ऐसा कुछ सोच भी नहीं सकती थीं , इसीलिए बहू को ड़पटते हुए बोलीं  -तुम्हें क्या लगता है ? खाते -पीते घर की लड़की है , थोड़ी चर्बी बढ़ गई है , योग करेगी तो, ठीक हो जाएगी। 

बुरा मत मानिए ,मम्मी जी ! आपके इतने बच्चे हुए आपको, इतना भी अंदाजा नहीं हुआ कि दीदी का सिर्फ पेट ही बढ़ रहा है बाकी सब तो ऐसे ही है , क्या यह चर्बी सिर्फ पेट पर ही बढ़ रही है ?

बहू की बात से उसकी मम्मी को थोड़ा सा आभास  हुआ, उन्होंने शक की नजरों से प्रभा की तरफ देखा।उसे ऊपर से नीचे तक आंक रहीं थीं।  प्रभा भी, उनकी नजरों का सामना नहीं कर पाई असहज हो गयी और नजरें  झुका लीं। तब उसकी मम्मी उसे लेकर कमरे के अंदर आई, और बोली-क्या तेरी भाभी ,सही कह रही है ? तुझे तनिक भी अंदाजा है। 

भाभी ,तो ऐसे ही कहती रहती हैं  , मैं नौकरी की तलाश में हूं, जब नौकरी लग जाएगी तब मैं यहां से चली जाऊंगी। न ही ,भाभी कुछ कहेगी और न ही ,आपको कुछ जवाब देना होगा। 

यह मेरे सवाल का जवाब नहीं हुआ , क्या तू किसी लड़के से मिलती है ? सच-सच बताना ! क्रोधित होते हुए बोलीं -यदि तूने मुझसे  कुछ भी छुपाया और मुझे बाद में मालूम पड़ा, तो मैं तुझे छोडूंगी नहीं। प्रभा  के मन में आया, मां से सब कुछ सच-सच बता दे ! किंतु डर भी लगा फिर न जाने क्या होगा ?

तब उसकी मम्मी ,ने अपने स्वर में कोमलता लाते  हुए उससे प्यार से पूछा -अच्छा, बता !तुझसे  कोई गलती हुई है या तू किसी के चक्कर में फंस गई है ,तो मुझे सबकुछ सही से  बतला दे !तुम मेरी बेटियां हो किंतु मैंने बेटों और बेटी में कभी फर्क नहीं किया। कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी। 

मां की नम्रता से प्रभा पिघल गई, और उसने किशोर और अपने विषय में संपूर्ण बातें बतला दीं। प्रभा की बातें सुनकर उसकी मम्मी वही की वहीं बैठी रह गईं , क्षोभ से बोलीं -तूने ,यह क्या कर दिया ? गहरी सांस लेते हुए अपने को संयत करने का प्रयास कर रही थीं। खड़की से बाहर क्षितिज में देख रही थीं , जहां दूर-दूर तक, कोई सहारा नजर नहीं आ रहा था। तब बोलीं  -तूने अपनी बहन से भी नहीं सीखा। 30 से ऊपर के हो गई थी किंतु कभी उसने अपने माता-पिता का सर नहीं झुकने दिया। उसके साथ भी भाभी, ऐसा ही व्यवहार करती थी जैसा तेरे साथ करती हैं किंतु उसने कभी गलत कदम नहीं उठाया। तूने क्या सोचा था ?

मैंने तो अच्छा ही सोचा था, किंतु क्या करूं ?किस्मत धोखा  दे गई। पापा को दीदी के लिए लड़का ढूंढने में बहुत अत्यंत परेशानी हो रही थी इस परेशानी को देखते हुए मैंने सोचा -मैं स्वयं ही कोई लड़का देख लेती हूं। पापा को भी परेशानी नहीं होगी किंतु मुझे यह नहीं मालूम था कि वह 'धोखेबाज' निकलेगा। 

आजकल अपने सगे रिश्तेदार ,अपना साथ नहीं देते तब तूने, किसी गैर पर कैसे विश्वास कर लिया ? मां का दिल तो कह रहा था , कि इसकी गलतियों की इसे सजा दे ! किंतु तुरंत ही , अपने मन को समझाया इसने तो अपने आप को खुद ही सजा दे दी । ''बिन ब्याही '' मां बनकर बैठ गई है किंतु भाभी के सामने क्या जवाब देंगे इसकी भाभियाँ  तो ताना मार- मारकर वैसे ही, जीने नहीं देंगीं। जो बात वे माँ  होकर भी, ना देख सकीं ,इसकी  भाभी ने क्षण भर में पकड़ लिया। कुछ देर हताश होकर वह बैठी रही, किंतु तुरंत ही , उनका दिमाग तीव्रगति से दौड़ने लगा। ताकि ''सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे '' तब वे प्रभा से बोलीं - यह बात किसी को भी मत बताना किसी को भी ,मतलब किसी को भी नहीं बताना है। कहते हुए अपनी बेटी को की तरफ देखा , और आंसू पोँछते हुए बाहर आ गईं । 

 पहले तो उन्हें इस बात की चिंता थी, कि  बेटी ने, कहीं कोई गलत कदम तो नहीं उठाया। तुरंत ही उन्हें  इस बात की भी चिंता हो गई ,कि किसी भी बाहर वाले को इस बात की भनक भी न पड़े और तुरंत ही उनका, दिमाग उस परेशानी से, कैसे निपटा जाए ?सोचने लगा। कैसे वह इस स्थिति से अपनी अपने आप को और अपनी बेटी को निकालेंगीं ? मिलते हैं ,अगले भाग में - काँच का रिश्ता !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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