Rasiya [part 46]

चतुर !ओ चतुर ! घर के बाहर खड़े होकर उसके सभी गांव के दोस्त ,चतुर को आवाज लगा रहे थे। एक दूसरे से उसकी शिकायत भी कर रहे थे - स्वयं तो सो रहा है,हमसे सुबह ही उठने के लिए कह दिया था।

 तभी सुशील बोला -  कल शाम को ही खेलने के लिए तैयार हो रहा था और अब हम सभी यहाँ खड़े हैं और वो खर्राटे भर रहा होगा।

 रामप्यारी ने घर के बाहर लड़कों की भीड़ देखी और चतुर के दोस्तों को देखा तो, चतुर को उठाने उसके कमरे में पहुंच गयी और चतुर के सर के बालों को सहलाते हुए बोली -चतुर, बेटा ! सो रहा है ,तेरे दोस्त बाहर खड़े ,तुझे पुकार रहे हैं ,मुझे लगता है ,तुझे बुलाने आये हैं। क्या तुझे  कहीं जाना था ?

मां की बात नींद में ठीक से नहीं सुन पाया ,चतुर नींद में कुलबुलाया और बोला -मम्मी सोने दो !बहुत अच्छी नींद आ रही है। 


मैं नहीं उठा रही ,मैं तो यही पूछ रही हूँ ,कि क्या आज के दिन तूने अपने दोस्तों को बुलाया था ?सभी बाहर गली में खड़े होकर तेरे नाम की माला जप रहे हैं। तभी एकदम से चतुर को जैसे कुछ स्मरण हुआ और झटके से उठा। 

अरे, यार !आज मुझे अपने दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने जाना था, मैं तो भूल ही गया , तेजी से बिस्तर से भी उठा और बाहर की तरफ दौड़ लगा दी। 

अरे सुन तो सही, थोड़ा चाय -पानी पीकर आराम से, जाना , रामप्यारी ने पीछे से पुकारा किंतु चतुर ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया, और दोस्तों के समीप पहुंच गया। 

उसे देखते ही सभी एक स्वर में बोले -हमसे कह रहा था , कल प्रातः काल ही  उठ जाना किंतु स्वयं से उठा नहीं जाता , कितनी देर से तेरी चौखट पर खड़े होकर शोर मचा रहे हैं ?और यह ''घोड़े बेचकर सो रहा है'। 

चतुर को अपनी गलती का एहसास हो रहा था इसलिए बोला -हां गलती हो गई नींद ही नहीं खुली, तो मैं क्या करता ? अब चलो जल्दी चलते हैं। क्या अन्य सभी लोग भी आ गए ?

 एक दो रह गए थे, उन्हें भी कुछ बच्चे बुलाने गए हैं ,जल्दी ही मैदान में पहुंचो। उस बड़े मैदान में पहले से ही कुछ बच्चे खेल रहे थे , दूसरी पट्टी [गली ]के बच्चे थे। चतुर के सभी मित्रों ने उन्हें रोकते हुए कहा -आज हमारा यहां मैच है ,हम खेलेंगे !

हम तुमसे पहले आए हैं , इसीलिए हम ही यहाँ खेलेंगे। उनमें से एक अकड़ते हुए बोला -मैदान तो बहुत बड़ा है, दूसरी तरफ जाकर खेल लो ! 

नहीं ,यहां खेलेगी तो एक ही टीम खेलेगी , तुम लोग तो आते ही रहते हो, हम बहुत दिनों बाद आए हैं आज हम ही खेलेंगे चतुर ने अपनी बात रखी। 

तुम आज आए हो या कल , या नहीं भी आये हो ,हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, हम पहले आए हैं तो हम ही पहले खेलेंगे। तब तक गांव के अन्य लोग भी आ गए थे। जो दर्शक बनकर आ रहे थे। उन्होंने देखा मैच तो आरंभ भी नहीं हुआ और झगड़ा हो रहा है। आज तो गांव के सरपंच भी आए थे , अपने गांव के बालकों को प्रोत्साहित करने के लिए .... 

जब उन्हें पता चला ,कि यह मैच क्यों नहीं हो रहा है ?तब उन्होंने दोनों टीमों  के कप्तानों को बुलाया , और पूछा -परेशानी क्या है ? 

देखिए सरपंच जी ! हम लोग यहां पहले से ही खेल रहे थे, और अब यह लोग आकर यहां पर दादागिरी दिखला रहे हैं , दूसरी पट्टी के कप्तान सुदेश ने जवाब दिया। 

आज हमारा प्रोग्राम बना है, और बहुत दिनों बाद हम यहां खेलने के लिए आए हैं, आज तो हम ही खेलेंगे चतुर ने अपनी बात पर दबाव दिया। सरपंच जी बैठकर सोच रहे थे और अन्य लोग भी साथ ही बैठे थे। 

तभी एक व्यक्ति बोला -आज तो जोरदार मैच होगा। 

तुम यहां मैच होने की बात कर रहे हो, यहां तो झगड़े हो रहे हैं। 

नहीं ,मैच ही होगा, सभी बच्चे अपने ही गांव के हैं , और यह पहले पट्टी के हैं और यह दूसरी पट्टी के हैं इससे क्या फर्क पड़ता है ?क्यों न दो टीम बना दी जाएं और इनाम भी घोषित कर दिया जाए , जिस भी पट्टी के खिलाड़ी जीतेंगे उन्हें ही वह इनाम दिया जाएगा। सभी मिलकर खेल भी लेंगे और हम मैच का आनंद भी उठा लेंगे। यह विचार सभी को बहुत पसंद आया। 

तब सरपंच जी ने खड़े होते हुए कहा -हमारे गांव में एक से एक होनहार खिलाड़ी है , जितने भी मैदान में खिलाड़ी खड़े हैं ,वह सभी अपने गांव के ही हैं। दोनों टीम में सिर्फ इतना अंतर है, कि दोनों की टीमें अलग-अलग हैं और अब  हम सब ने मिलकर यह निर्णय लिया है कि सभी  खिलाड़ी एक साथ खेलेंगे और जो भी टीम जीतेगी। उसके प्रत्येक खिलाड़ी को ₹100 के हिसाब से ,उस टीम को ₹1100 का इनाम दिया जाएगा। अब दोनों टीम अपनी-अपनी जगह ,अलग-अलग खड़े हो जाएं और अपने-अपने होनहार खिलाड़ियों को चुन लें जो तुम्हारी टीम में सबसे अच्छा खेलता है ,उसे अपने साथ रख लें ,बाद में यह मत कहना -कि गलती हो गई या हारने पर किसी तरह का पछतावा रह जाए। 

₹1100 का इनाम सुनकर सभी खिलाड़ी प्रसन्न हो गए और पूरे मैदान में तालियां बजने लगीं। अब तो दोनों टीमों का भी समर्थन था। एक टीम चतुर की बनी थी और दूसरी टीम सुदेश की थी। यह बात धीरे-धीरे संपूर्ण गांव में फैल गई, कि अगली पट्टी और पिछली पट्टी के खिलाड़ियों के मध्य, मैच हो रहा है और जो टीम जीतेगी उसको इनाम भी मिलेगा। यह सुनते ही ,धीरे-धीरे सभी लोग उस बड़े मैदान की तरफ चल दिए। किसी के हाथ में बोरी थी ,किसी के हाथ में कुर्सी थी ,किसी के हाथ में मुड्ढी थी। जिसको बैठने का जो भी साधन मिला ,वह अपना साधन साथ में लेकर ,उस मैदान में पहुंच गया। अभी तक तो चतुर अपने को इतना बड़ा खिलाड़ी नहीं समझता था वह तो, सिर्फ मनोरंजन के लिए, कभी-कभी खेल लेता था किंतु जब उसने मैदान में इतनी बड़ी भीड़ को देखा तो उसका दिल घबरा गया। अब तो बात, अपनी आन -बान पर आ गई है। अपने सभी खिलाड़ियों से यानि दोस्तों से कहा -जो तुम्हें जितना ज्यादा अच्छा लगता है कि मैं कर पाऊंगा वह पहले से ही खेलने आगे आए। आज उन्हेंअपना कौशल दिखलाना होगा पूरी मेहनत के साथ, हमें अपनी टीम को जिताना है। 

कलवा सारे दिन खेलता रहता है, इसलिए कलवे को सबसे आगे रखा गया। सभी एक अच्छा बल्लेबाज उसे समझते थे , इस तरह से चतुर ने अपनी टीम का संचालन किया। पिछली पट्टी के खिलाड़ी  ज्यादातर खेलते ही रहते थे। अधिकतर समय खेलने में व्यतीत करते थे या फिर खेती के कार्यों में व्यस्त रहते थे। चतुर के साथी भी अच्छा खेल लेते थे , किंतु जब तक प्रतिद्वंद्वी से सामना ना हो ,तब तक अपनी क्षमता का एहसास नहीं होता। 

तालियों की गड़गड़ाहट के साथ खेल आरम्भ हुआ ,एक पत्थर उछालकर ,टॉस चतुर की टीम ने जीता और बल्लेबाज़ी पहले चतुर की टीम की तरफ से आरम्भ हुई। जिसमें सबसे पहले चिराग गया,चिराग ने जाते ही छक्का लगाया ,और सभी लोग प्रसन्नता के कारण उछल पड़े किन्तु दूसरी टीम भी कम नहीं थी ,चिराग के छक्का लगाते ही ,वे लोग सतर्क हो गए और चिराग को घेर लिया।

आगे क्या हुआ ?सुदेश की टीम जीती या चतुर की जानने के लिए पढ़ते रहिये -रसिया ! 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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