Rasiya [part 41]

कस्तूरी के मन में प्यार की उमंगे उमड़ रही थीं। जब से चतुर उससे मिलकर गया है, वह बेचैन हो उठी है। हालत तो दोनों तरफ ही, एक जैसी हैं। उधर चतुर का मन भी, पढ़ाई में नहीं लग रहा है , किंतु चतुर ने अपना एक उद्देश्य बना रखा है इसीलिए वह अपने संकल्प पर दृढ़ है। वह कस्तूरी से, प्रेम करने के साथ-साथ वह उसे अपनी जिंदगी में भी जगह देना चाहता है इसीलिए वह समय के प्रतीक्षा में है। किंतु अभी यह बातें कस्तूरी नहीं समझ पा रही है और कस्तूरी की बेचैनी इतनी बढ़ी  कि वह, उससे मिलने के लिए, उसके कॉलेज के समीप ही पहुंच गई। 

कस्तूरी को उनकी पड़ोसन, ने देख लिया और उसकी मां से भी बता दिया। जिस प्रकार मां ने उसे समझाया। वह शायद ,वास्तविकता में आ गई। मन उदास हो गया और घबराने लगा। अभी हमें मिले हुए दिन ही कितने हुए हैं ?मां की बातें सुनकर वह समझ नहीं पा रही थी, कि वह क्या करें ? इस तरह तो उसे अपने रिश्ते पर भी, घबराहट होने लगी थी। वह डर गई थी, कहीं मां हमारे रिश्ते को, आगे बढ़ने से इंकार न कर दें। वह चतुर से मिलने के लिए ,जितनी उत्साहित थी ,उतनी ही माँ की बातें सुनकर घबरा भी गई थी उसका व्यथित मन और सागर की तरह उथल-पुथल होते विचारों के कारण ,वह कॉपी और पेन लेकर लिखने पर मजबूर कर देता और वह अपने दिल के हाथों मजबूर होकर लिखने भी बैठ गई। 


तुम्हें प्यारे !कहूं , प्रियतम !कहूं , प्राणनाथ !कहूं ? मैं नहीं जानती ,मुझे क्या लिखना चाहिए ? किंतु मैं इतना जानती हूं , कि मैं जब तक तुमसे बात नहीं करूंगी और तुम्हें पत्र नहीं लिखूंगी तभी तक  मेरी समस्या का समाधान नहीं होगा। मन में बहुत ही घबराहट सी है , न जाने हमारे रिश्ते का क्या अंजाम होगा ? तुम भी नहीं चाहते, कि मैं वहां ,तुमसे मिलने आऊं और जहां तक मैं समझती हूं मेरे परिवार वाले भी नहीं चाहेंगे ,कि मैं उधर आऊं किंतु यह जो नन्हा सा दिल है, यह मानने के लिए तैयार ही नहीं है, यह तुम्हें बार-बार देखना चाहता है ,तुमसे बात करना चाहता है। तुम्हारे विचारों में खोया रहता है ,दिन -रात ,उठते -बैठते तुम्हारे ही सपने देखता है। अब तुम ही बताओ ! मैं क्या करूं ? कुछ समझ नहीं आता। मन में अजीब सी बेचैनी रहती है, ऐसा लगता है -कि उड़कर तुम्हारे करीब पहुंच जाऊं। मेरा मन इतना व्याकुल था  , वह अपने को तुमसे मिलने के लिए रोक नहीं पाया और लड़कियों से बहाना बनाया , तब मैं वहां पहुंची थी। किंतु आज ही मेरी पड़ोसन ने मुझे देख लिया और घर आकर माता श्री से शिकायत लगा दी। वह तो अच्छा हुआ तुमसे मिलते हुए नहीं देखा, वरना न जाने क्या हो जाता ? अब  मुझे एहसास हो रहा है, कि'' दो प्रेमी दिलों की '', दुनिया किस तरह दुश्मन बन जाती है ? 

तुम कब अपनी ये पढ़ाई पूर्ण करोगे और कब मुझे अपने संग घोड़े पर बिठाकर ले जाओगे ?तुम्हारी कस्तूरी तुम्हें पुकार रही है, अब तुम्हारे बिना जिया नहीं जाता। मैं ,कैसे इतने दिनों तक तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी ? मुझे नहीं पढ़ना मुझे तो सिर्फ तुम्हारे संग रहना है। ऐसा कोई यतन करो ! जब तक, हम एक दूजे के न हो जाएं। तब तक ,एक दूसरे से मिलते रहे, और अपने भाव इसी में तरह व्यक्त करते रहें। अभी भी लग रहा है ,मुझे तुम ये पत्र लिखते देख रहे हो और अभी आकर मुझे अपनी बॉहों में भर लोगे लिखते समय मुस्कुरा दी और आँखें बंद कर एक गहरी स्वांस ली और फिर से लिखना आरम्भ करते हुए -तुम्हें शायद डर होगा किंतु मैं अपने माता-पिता के सिवा किसी से नहीं डरती इसलिए मैं अपना नाम लिख सकती हूं। तुम्हारे -प्यार में खोई, तुम्हारी यादों के संग सोई , तुम्हारी सिर्फ तुम्हारी -कस्तूरी !

''यह दिल तुम्हें दे दिया है, अब तो जान भी तुम्हीं पर देंगे'' अंत में यह लाइन लिखकर उसने वह कागज फाड़ कर उस कॉपी से अलग कर दिया। 

उस पत्र को एक बार नहीं ,दो बार नहीं ,कई बार पढा , अब मन में परेशानी यह थी, कि यह पत्र किसके माध्यम से, चतुर तक पहुंचे। उसे लग रहा था ,अपने दिल की बहुत सारी बातें उसने इस पत्र में लिख दी हैं शायद इससे ही उसकी समस्याओं का समाधान हो जाएगा। बड़े ही अच्छे तरीके से उस कागज को मोड़कर कॉपी के मध्य में रखा किंतु तुरंत ही निकाल लिया। यदि अध्यापिका को जाँचने के लिए कॉपी दी और उनके सामने यह पत्र आ गया तो क्या होगा ? तब अपने बस्ते  के सबसे अंत में एक छोटी सी जेब में उस पत्र को सुरक्षित रख दिया। 

मन में बड़ी ही बेचैनी हो रही थी, क्या यह पत्र लिखकर मैंने अच्छा किया ? अब लिख ही दिया है तो किसके माध्यम से मैं इस पत्र को चतुर तक पहुंच पाऊंगी। क्या मोहित से कहूं ? वह इतना छोटा बच्चा भी नहीं है कि  समझ ना सके। पूछेगा ,तो क्या जवाब दूंगी ? यदि मम्मी -पापा से कह दिया तो...... सवालों के घेरे में खड़ी कस्तूरी ,अपने आप ही से सवाल कर रही थी और उनके जवाब भी स्वयं ही दे रही थी। वह चाहती थी कि वह पत्र भी पुस्तक पहुंच जाए और किसी को कानों कान खबर भी ना हो किंतु क्या कभी ऐसा हुआ है ?  फूल खिला है, और उसमें से खुशबू ना आई हो। भंवरा फूल पर बैठा है, और उसे पता ही ना चला हो।  आग जली है और उसमें से धुआं ही न निकला हो। कुछ जुगाड़ तो लगाना ही होगा। यह आवश्यक भी नहीं की हर बार पड़ोसन उस कॉलेज के करीब से ही निकले , या पापा का कोई जानने वाला ही, मुझे भी जानता हो। मन में उठते सवालों को, मन ही नकार देना चाहता था। प्रेम किया है तो, रास्ता तो निकालना ही होगा। मंजिल तक पहुंचना है तो कदम आगे बढ़ाना ही होगा, घबराने से कुछ नहीं होगा। मेरा प्रयास तो यही रहेगा, ''काम भी हो जाए और लाठी भी न टूटे।'' 

आज मैं कॉलेज के नजदीक नहीं, कॉलेज से कुछ दूरी के रास्ते पर खड़ी हो जाऊंगी , राह में आता तो दिखलाइ देगा। बहुत देर तक प्रतीक्षा करने पर भी वह नहीं आया ,न ही कहीं दिखलाई दिया। थके कदमों से , अपने स्कूल जाती है और निराशा से बैठ जाती है। यहां भी आने में उसे देरी हो गई, अध्यापिका उसे देरी से आने के कारण डांट रही हैं , किंतु वह तो अपने ही ख्यालों में खोई है। मुझे लगता है इसीलिए, लोग इश्क को बुरा बोलते हैं -कहीं भी मन नहीं लगता , बेचैनियां बढ़ जाती हैं। दुनिया से रुसवाई का डर अलग सताता है। खैर ! अब जो भी होना होगा देखा जाएगा, जो भी झेलना होगा झेलेंगे। अब इश्क किया है ,तो अब हम पीछे नहीं हटेंगे।  यह सोचकर स्वतः  ही मुस्कुरा दी। यह पत्र तो उस तक पहुंचकर ही रहेगा ,मन ही मन कस्तूरी ने दृढ़ निश्चय किया। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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