उसकी जिंदगी में यह क्या हो रहा है ? जितना अपने को संयत करने का प्रयास करता है, उतना ही कुछ ना कुछ बवाल हो जाता है। किसी तरह से यह 2 वर्ष बीत जाएं, वह सोच रहा था। किन्तु अब तो , पढ़ाई में भी ,मन नहीं लग रहा। वह जानता है , सुशील उसका कितना अच्छा दोस्त है ?किन्तु जिद पर आ जाए तो दुश्मन भी उतना ही बड़ा बन सकता है। आज उसने जो कुछ भी उस पर्ची में लिखा ,क्या वो समझा पायेगी ?मन ही मन सोचकर परेशान हो रहा था।
चतुर वह पर्ची फेंककर भाग गया, उसे घबराहट थी ,कहीं, स्कूल का दरवाजा बंद न हो जाए या कोई देख न ले। कस्तूरी उसे पर्ची फेंकते हुए देख लेती है, अपनी सहेलियों से कहती है -तुम चलो मैं अभी आती हूं।
कहां जा रही है ?
अरे !कहा न आ रही हूं ,दौड़कर उसी स्थान पर आती है, जहां चतुर वह पर्ची फेंककर गया था। सोच रही थी उठाऊँ या नहीं , कहीं ऐसा न हो ,उसने वैसे ही ,उस पर्ची को फेंका हो। तुरंत ही विचारों ने पलटा खाया ,वैसे तो नहीं फेंका होगा, वरना मुझे, पत्थर फेंक कर जतलाने का प्रयास न करता। सोचते हुए ,उसने पर्ची को उठाया और अपने दुपट्टे की तह में छुपा लिया।
उसकी सहेलियां वहीं रुक गई थीं और कस्तूरी की हरकतों को देख रही थीं , उसके करीब आने पर उससे पूछा -क्या तूने कचरा उठाने का भी काम ले लिया है , दिखा !क्या उठा रही थी?
अरे कुछ नहीं, मुझे कुछ चमकीला सा दिख रहा था , सोचा-देख लेती हूं , कहीं कोई सोने -चांदी की चीज तो नहीं।
फिर तुझे सोना मिला या चांदी कहते हुए वह हंसने लगीं।
कुछ नहीं था , एक चमकीला सा कागज था।
उसे ही उठा लाती, उसके गहने बनवाकर पहन लेती, कहते हुए वह हंसने लगीं , इसीलिए तो हम सबको यहां छोड़कर अकेले में उस सोने को लेने गई थी, कहीं हमें हिस्सा न देना पड़ जाए।
उनकी हंसी पर कस्तूरी भी मुस्कुरा दी और बोली -हम इतने क़िस्मतवाले कहाँ ?जो सड़क पर पड़ा सोना मिल जाये ,पड़ा भी होगा तो क्या ?मेरे लिए कोई छोड़कर थोड़े ही जायेगा। वह मन ही मन सोच रही थी -जो कीमती चीज मुझे लेनी थी ,वह तो मैं ले चुकी हूं। बस, अब घर जाने की देरी है , देखती हूं मेरे उन्होंने मेरे लिए क्या लिखा है ? अपनी सोच पर मंद मंद मुस्कुरा दी।
घर पहुंचते ही, सीधे सीढ़ियों की ओर रुख किया और ऊपर के कमरे में चली गई क्योंकि उस कमरे में ,मम्मी कम ही आती हैं। वह ज्यादातर नीचे ही रहती हैं इसीलिए वह ऊपर गई और अपने बस्ते से वह पर्ची निकाली , देखूं तो सही, मेरे' प्रिय 'ने इस पर्ची में क्या लिखा है ? उनके द्वारा लिखा गया ,यह मेरा पहला ''प्रेम पत्र ''है।मन में सोचते हुए ,घूम -घूमकर नाचने लगी। जाने कितनी प्रेम की बातें लिखी होगी ? उसे खोलने से पहले कस्तूरी के ह्रदय ने एहसास दिलाया ,मैं भी तुम्हारे संग हूँ। वह पर्ची कोई ज्यादा बड़ी नहीं थी 4-5 लाइनों की पर्ची थी जिसको कॉपी के पन्ने से फाड़कर लिया गया था और जिस पर लिखा था -''तुम यहां क्यों आईं ? मैं तुमसे मिलने तुम्हारे घर ही आ जाता, हालांकि थोड़ा समय लगता, किंतु तुम्हें इस तरह परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारा सिर्फ तुम्हारा !
बस यही लिखा है, न हीं प्रेम -मोहब्बत भरी बातें ! न मिलने का वादा ! डर इतना ,कि अपना नाम भी नहीं लिखा। इसका अब मैं क्या करूं ? ऐसे कोई पत्र लिखता है। मुझे लगता है, उसने कभी किसी को पत्र लिखा ही नहीं , अपने आपके लिए सोचने लगी -'मैं ही कौन सा पत्र लिखना जानती हूं ? किंतु इतना दावे के साथ कह सकती हूं ,कि इससे बेहतर लिखकर दिखा सकती हूँ। एक बार सोचा इसे फाड़ कर फेंक दूँ ! किंतु दिल में बसे प्यार ने इस बात का समर्थन नहीं किया। चाहे दो लाइनें ही क्यों ना हो ? किंतु उसने मुझे कुछ लिख कर दिया तो है। सोच कर उस पर्ची को छुपाने का प्रयास करने लगी कभी, पुस्तक के मध्य में रखती तो कभी कॉपी के कवर में छुपाती। अंत में अलमारी के अखबार के नीचे, वह पर्ची छुपा कर रख दी और अपने आप को विश्वास दिलाया। यहां कोई नहीं आएगा और न ही इसे देखने का प्रयास करेगा।
कस्तूरी ओ कस्तूरी !क्या हुआ ?इस तरह ऊपर क्यों भाग गयी ? भोजन नहीं करना है,आ जल्दी !थाली लगा दी।
आ रही हूँ ,मम्मी ! कहकर कस्तूरी नीचे आ गई,लाओ !खाना कहाँ है ?बड़े जोरों की भूख लगी है।
अब भूख लगी है ,आते ही ,ऊपर काहें भाग गयी थी ?पहले तो आते ही, खाना खाती ,क्यों ?आज कुछ हुआ है ?क्या ?
नहीं ,कुछ भी तो नहीं ,बस थोड़ा सर में दर्द सा हो रहा था इसीलिए आराम करने लगी थी।
अच्छा !ये बता, तू कहीं गयी थी ,क्या ?
कस्तूरी घबराकर बोली -क्यों ?क्या हुआ ? किसी ने कुछ कहा क्या ?
हाँ ,
पड़ोसन कह रही थी -उसने तुझे लड़कों के विद्यालय के समीप खड़े देखा ,तू वहां क्या लेने गयी थी ?आज तो पड़ोसन ने ही देखा है ,कल को तेरे पिता के किसी जाननेवाले ने देख लिया तो...... वो क्या सोचेंगे ?कितनी बदनामी होगी ?समझाते हुए बोली। तुरंत ही अपना लहज़ा बदला और कड़क शब्दों में बोलीं -वैसे तू वहां गयी ही क्यों थी ?ऐसा क्या कार्य आन पड़ा ?
मन ही मन कस्तूरी पड़ोसन को कोस रही थी, न जाने कैसी पड़ोसन है ? आज ही गयी थी,आज ही मेरी चुगली भी लगा दी, प्रत्यक्ष बोली- मैं कोई अपने काम से नहीं गई थी , मेरी सहेली का भाई वहां पढ़ता है उसे अपने भाई से कुछ कार्य था इसलिए मैं भी उसके संग चली गई। आपने तो न जाने ,क्या-क्या सोच लिया ? कहते हुए मुंह बनाने लगी।
मां को उसकी बात पर विश्वास हुआ, और प्यार से बोली-माना कि यह शहर है किंतु इतना बड़ा भी नहीं है कि लोग एक दूसरे को जानते ही ना हों। हम लोग इतने, अमीर नहीं हैं। इज्जत की दो रोटी खा लेते हैं, हमारे लिए वही बहुत है किंतु किसी ने तेरे पिता से शिकायत कर दी, तो हम किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे। मुझे तुझ पर विश्वास है तू कोई ऐसा गलत कदम नहीं उठाएगी ,किंतु कोई भी कार्य करने से पहले, अपने मां-बाप के मान सम्मान के विषय में सोच लेना। इज्जत की दो रोटी खाते हैं ,सम्मान से जीते हैं यदि वही नहीं रही, तो हम जीकर क्या करेंगे ?
मां का इतना बड़ा प्रवचन सुनकर, कस्तूरी मन ही मन घबरा गई और सोचने लगी -मम्मी ,सही तो कह रहीं हैं ,आज ही गयी थी और आज ही पड़ोसन द्वारा देख ली गयी। यदि प्रतिदिन जाती तो अवश्य ही ,पापा तक बात पहुंच ही जाएगी। यदि इन लोगों को मेरे और चतुर के विषय में पता चल गया तो न जाने क्या करेंगे ? चुपचाप भोजन करने लगी। और चुपचाप ऊपर आ गई और पलंग पर लेट गई। अचानक मन उदास हो गया,मन ही मन सोच रही थी -क्या मेरा और चतुर का विवाह हो पाएगा ? चतुर को अच्छा लड़का है, पढ़ा -लिखा भी है, भला इन्हें उससे क्या आपत्ति हो सकती है ? एकाएक यत्रवत उठी अपनी कॉपी खोल कर कुछ लिखने बैठ गई।
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