चतुर जब से कस्तूरी से मिलकर आया है ,उसकी खुशबू ,वो महक !उसकी सांसों में समा गई है ,पढ़ने बैठता है ,लेकिन पढ़ने में मन नहीं लगता। उसका वह रोकर सीने से लिपट जाना ,उसके चेहरे पर चुंबन करना ,अभी भी एहसास हो रहा है ,जैसे अभी भी वो, उसके चेहरे को चूम रही है। वो उस अनुभूति का आनंद लेने के लिए ,अपनी ऑंखें मूँद लेता है। सब कुछ उसके लिए स्वप्न सा लग रहा था। मन में, गुदगुदी सी होने लगती है। सुशील ने तो मुझे व्यर्थ में ही डरा दिया ,वो तो मेरी प्रतीक्षा में ही बैठी थी किन्तु ये भी अच्छा हुआ ,जो मैं चला गया। बेचारी !मेरी प्रतीक्षा में कितनी गुलाबी हो गयी ? सोचकर मुस्कुराया।
किताबें खोल कर बैठता किंतु कस्तूरी की तस्वीर ,उसकी वो हरक़तें किसी चलचित्र की तरह नजरों के सामने घूमने लगतीं।
क्या पढ़ रहे हो ?
''विज्ञान !
अच्छा !कहकर वो हंस दी और लम्बे -लम्बे कदम बढ़ाते हुए ,चली भी गयी ,सुनो ! रुको ! क्या मैं खुली आँखों से स्वप्न देखने लगा हूँ ,अपने ही सिर में हाथ मारकर ,हंस दिया। काश !कि वो यहाँ होती ,इस आंगन में घूमती ,उसके पायल की छनछन !उफ्फ़ !उसके कदमों में अपना दिल बिछा देता। तब भी पढ़ाई में मन नहीं लगता , और अब भी कहाँ लग रहा है ?
बेटा !ये क्या कर रहा है ?अपने आप से ही बातें कर रहा है ,इतनी देर से देख रही हूँ ,जैसे अपने में खोया है ,क्या कुछ हुआ है ?
नहीं ,नहीं तो...... घबराते हुए चतुर ने जबाब दिया।
आज रविवार है ,चतुर के दोस्तों को अंदाजा हो गया था कि वह कल कॉलेज छोड़कर कहीं गया था किंतु चतुर ने उन्हें कुछ भी नहीं बताया और वह जानना चाहते थे, कि आखिर वह उनसे क्या छुपा रहा है ?अपना ही दोस्त होकर, दोस्तों से बातें छुपाने लगा है। आज तड़के ही ,उन्होंने चतुर को सवालों के कटघरे में ,खड़ा कर दिया।
तू क्या ,हमें मूर्ख या बुद्धू समझता है ,हम वो हैं ,जो ''उड़ती चिड़िया के पंख गिन लेते हैं '',मयंक ने अपनी समझदारी की ''डींगें मारनी ''आरम्भ ही की थी।
तभी उसे टोकते हुए ,सुरेश बोला -हम तुम्हारे यार हैं और यारों से ही होशियारी ! चतुर सोच रहा था -कि मैंने तो इन्हें कुछ भी नहीं बताया ,इन्हें कैसे अंदाजा लगा ?या ऐसे ही'' हवा में तीर चला ''रहे हैं।
तब मयंक ने चतुर को बताया -कि हम लोग, तुझे ढूंढने के लिए, तेरी कक्षा में गए थे और तब हमें पता चला कि भाई साहब !तो प्रातःकाल से ही गायब थे। अब तू हमें सच -सच बताता है या कोई और रास्ता अपनाना पड़ेगा।
कहीं ऐसा तो नहीं ,ये हम सबसे छुपकर ,अपनी उस कस्तूरी से मिलने गया हो !अचानक से चिराग़ बोल उठा।
अब तूने सही नब्ज़ को पकड़ा ,ये मेरे विचार से ''सोलह आने ''सही हो सकता है। यार !उस कस्तूरी में अवश्य ही कोई बात तो होगी ,जो इसने आज तक उसे हमसे नहीं मिलवाया। अब उससे मिलना और देखना तो बनता है।
कुछ मेरी भी सुन लोगे ,या ''अपनी ही हांकते रहोगे !''नहीं ,ऐसा कुछ नहीं है। मैं जहां काम करता था अचानक ही ,वे लोग मुझे मिल गए और मैं उनसे मिलने चला गया। बस !तुम लोगों ने ''बात का बतंगड़ ''बना दिया।
काम करता था ,यानी अपने ससुर चायवाले से मिलने गया है ,कहते हुए सभी हंसने लगे।
इतनी देर से ,सुशील न जाने क्या सोच रहा था ?तभी सुशील बोला -मैं न कहता था, कि यह हमें कस्तूरी से इसीलिए नहीं मिलवाना चाहता , इसे ड़र है ,कहीं कस्तूरी इसे छोड़कर ,हममें से ही किसी को पसंद कर लेगी। ये कहकर सभी दोस्त ताली बजाकर हंसने लगे
ऐसा कुछ भी नहीं है , चतुर बोला - तुम लोग इस गलतफ़हमी में मत रहना ,मैं भी तुममें से किसी से कम नहीं हूं। रही बात उसकी ,वो तो सात जन्मों के लिए मेरी हो चुकी है। तुम लोग जाकर ,जो तुम्हारी किस्मत में लिखी है ,उसे ढूंढ़ लो !
कम नहीं है ,तो छुपाता क्यों है ?
उसकी वजह से नहीं , तुम्हारी वजह से , तुम्हारी दृष्टि में मुझे खोट नजर आता है,फिर इतने सारे मुस्टंडों को देखकर वो घबरा नहीं जाएगी।
देखा !हम लोग इससे, दोस्ती निभा रहे हैं और ये हमारे विषय में कैसे भाव लिए बैठा है ?
चतुर परेशान हो गया और बोला अरे, यार !कुछ और बात करो ! क्या बेफिजूल की बात लेकर बैठ गए ?
तभी सुशील ने अपना अंतिम निर्णय सुनाया और बोला -मैं आगे की पढ़ाई छोड़ दूंगा अगले वर्ष नहीं आऊंगा।
चलो !इस वर्ष तो हमारे साथ है ,बाक़ी तेरी जैसी इच्छा !चतुर का उद्देश्य अपने यह दो वर्ष पूर्ण करके सफल होना था और उसके पश्चात अपने माता-पिता से बात करनी थी। अगले दिन जब वह अपने कॉलेज के करीब पहुंचा तो उसने उधर कई लड़कियों के झुण्ड को वहां खड़े पाया और उनमें से कस्तूरी भी थी वह समझ गया कि वह उसे ही मिलने आई है ,मन ही मन खुश हुआ तभी एक दोस्त की दृष्टि उस तरफ गयी और बोला -''बिल्ली के भागों छींका टूटा।'' अरे यार ! कमाल हो गया ,यार !देख अप्सराएं खड़ी हैं। रेगिस्तान में जल !
क्या बात कर रहा है ? चतुर बोला अब हमें अपने कॉलेज में जाना चाहिए।
क्यों ,तुझे यह सब अच्छा नहीं लगा ?
अपने दोस्तों से, छुपकर चतुर ने कस्तूरी की तरफ जाने का इशारा किया किंतु कस्तूरी तो उससे ही ,मिलने आई थी। वह जाना नहीं चाहती थी और न ही उसके इशारों को समझ पा रही थी। आज न जाने ये लड़कियां इधर कहाँ से आ गयीं ?हो सकता है ,इन्हें कस्तूरी ही लेकर आई हो ,हो नहीं सकता ,अवश्य ही ये ही लेकर आई है। तभी तो ,मेरी प्रतीक्षा में ही ,यहाँ खड़ी होगीं । बात उन लड़कियों से कर रही है किन्तु नजरें मुझ पर ही टिकीं हैं। वह कैसे उससे कहे !कि वह यहाँ क्यों आई ?उसे चले जाना चाहिए। मुझे उसे देखकर प्रसन्न होना चाहिए ,आज तो दिन बन गया किन्तु मेरे इन कमीने दोस्तों !की दृष्टि भी तो इन्हीं लड़कियों पर है।
अब चतुर को अपनी गलती का एहसास हो रहा है ,उसने अपने कॉलेज का नाम उसे बता कर बहुत बड़ी गलती कर दी। दोस्तों के कारण कस्तूरी के समीप भी नहीं जा पा रहा था और उसके साथ में उसकी सहेलियां भी खड़ी थीं।
तभी सुशील बोल उठा -देख !ये जो पीले सूट में है ,वह लड़की मेरी तरफ ही देख रही है ,चतुर को उसकी बातों पर हंसी आई और सोचा कि उसे नहीं मुझे देख रही है किंतु यह गलत गलतफहमी में जी रहा है किंतु उससे कुछ भी नहीं कह सका ,तभी वह बोला -मुझे यह लड़की बहुत पसंद आई ,जरा इसका पता तो लगाना ,कौन है और कहां रहती है ?बस बच्चे इतनी सी बात पर परेशान हो गया इसीलिए तेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता है। चल ! पहले कॉलेज चलते हैं और लगभग उसे धकेलते हुए अंदर ले गया।
कुछ देर पश्चात ,चतुर बाहर आया और उसने देखा ,वे लड़कियाँ भी जा रही हैं ,तभी उसने सड़क से एक कंकड़ उठाई और उधर फेंकी किन्तु कस्तूरी नहीं देख पाई ,दुबारा प्रयास किया यदि अब भी नहीं देख पाई तो पुनः प्रयास नहीं करेगा। यही सोचकर ,फिर से कंकड़ फेंका अबकि बार उसका ध्यान उस ओर गया जिधर पत्थर गिरा था उसने इधर -उधर देखा ,तब उसे चतुर दिखलाई दिया। चतुर ने तुरंत ही मौके का लाभ उठाया और एक पर्ची फेंककर वापस भाग गया।
क्या कस्तूरी ने वो पर्ची उठाई या नहीं ? वह नहीं जानता किन्तु उसकी धड़कनें उसकी पसलियां तोड़कर बाहर आ जाना चाहती हैं। एक स्थान पर बैठकर ,अपनी स्वांसों को नियंत्रित करता है ,वह सोच रहा था -कोई भी कार्य पहली बार करते हैं ,जबकि मन ये मानता है ,वह गलत है ,तब ये धड़कनें भी साथ देने की बजाय साथ छोड़कर भागना पसंद करती हैं फिर चाहे किसी की जान पर ही क्यों न बन आये ?
