सभी दोस्तों की टोली, स्कूल से बाहर आ ,निकल चली है ,अपने गांव की ओर ! एक दूसरे को समझाते ,उपहास और व्यंग्य करते आगे बढ़ रहे थे। सभी आज सुशील को समझाने का प्रयास कर रहे थे। बातों से बात निकली ,न जाने कहाँ तक जाएगी ?
चतुर मुस्कुराते हुए सुशील से बोला -तुम्हारे जैसे ,इस तरह के अनेक विचार हमारे मन में भी आते हैं ,जब हमें पढ़ना नहीं होता है ,हम अपने भविष्य को देख ,सोचकर नहीं चलते हैं। जो हमारे बड़ो ने नहीं किया तो आवश्यक नहीं कि हम भी न करें ,बल्कि नई पीढ़ी से ज्यादा अपेक्षा रखी जाती है , कि आने वाली पीढ़ी हमसे बेहतर करे।
तू तो बातें ही बनायेगा, तू तो पढ़ना चाहता है, उस कस्तूरी के लिए, उसको अपने व्यवहार से प्रभावित जो करना चाहता है ,सुशील उससे चिढ़ते हुए बोला।
ना...... ना !तू ,यहां पर गलत है , शिक्षा मैं अपने लिए ग्रहण कर रहा हूं , मैंने तो कस्तूरी से भी पढ़ने के लिए कहा है ,वह भी तेरी ही बहन है, उसका भी पढ़ाई में मन नहीं लगता है।
मेरी बहन क्यों होने लगी ? सुशील चिढ़ते हुए बोला।
मेरी पत्नी तेरी क्या लगेगी ? भाभी ! और तेरे जैसी नेचर की है , तो बहन हुई।
अभी भाभी बनी नहीं है , हो सकता है ,उसे कोई और ही पसंद आ जाए।
तू, इस बात की फिक्र मत कर....... वह सब मुझ पर छोड़ दे ! इसीलिए तो तुम लोगों को उसे दिखाया नहीं, हो सकता है ,तुम में से ही, किसी की नजर उसे लग जाती। साले ! सारे कमीने हो।
अच्छा !तो इतने महीनों से हमारा बेवकूफ बना रहा था, मिलवाऊंगा ,मिलवाता हूं, बहाने बना रहा था। ये जानता है ,इससे ज्यादा तो हम ही अच्छे लगते हैं। इसीलिए अपनी उस '' लैला 'को हमसे छुपा कर रख रहा है। कहीं ऐसा न हो ,हमसे छुपाने के चक्कर में कोई और ही चिड़िया को ले उड़े !
किसी में इतनी हिम्मत है , जो हमारी 'सोन चिरैया 'को ले उड़े , फिर उसके देवर किस काम आएंगे ? अभी तो तुमने उसे देखा नहीं है। जब तुम्हारी नजर उस पर अटकी हुई है। कमीनों ! पढ़ाई में तो तुम्हारा ध्यान रहता नहीं है। तुम्हें कोई मिली नहीं ,तो कस्तूरी पर नजर डाल रहे हो। मन ही मन बुदबुदाया ,शक़्ल ही ऐसी है ,इन्हें कौन मिलेगी ?
क्या बोला ?उसकी बुदबुदाहट को सुनकर सतीश बोला -हमें क्या तू उसका 'बॉडीगार्ड 'बना कर लाया है ?या अपना ! हमारा आज तक कहीं भी ,जुगाड़ नहीं करवाया।
अब तुम्हारी शक्ल ही ऐसी है तो मैं क्या कर सकता हूं ? कहकर चतुर हंसने लगा।
आज हम तेरी शक्ल भी बिगाड़ेंगे कहते हुए ,सारे दोस्त ,उसके पीछे भागे और चतुर आगे -आगे साइकिल पर बातें और पीछा करते हुए कब गांव पहुंच गए? पता ही नहीं चला। दोस्तों की यह मौज मस्ती फिर कहां मिलने वाली है ? चतुर बोला।
बात तो तुम सही कह रहे हो , फिर सब अपने बाप -दादा की तरह अपनी -अपनी गृहस्थी में लग जाएंगे किसको समय मिलने वाला है ? तुझे बड़ा घर -गृहस्थी सम्भालने का शौक चढ़ा है ,इसीलिए तेरा मन पढ़ाई में नहीं लगता तन्मय सुशील से बोला -''बिल्ली को ख़्वाब में भी ,छीछड़े ही नजर आते हैं। ''
यह बात सुशील को समझाओ ! अपने घर में साइकिल खड़ी करके, चतुर घर की तरफ निकल गया।
उसे ही समझा रहा हूँ।
किंतु मन ही मन सोच रहा था -बहुत दिन हो गए कस्तूरी से मिला नहीं हूं , एक बार पता तो लगाना चाहिए। आखिर वह किस स्कूल में पढ़ रही है और कहां जाती है ? कम से कम, मेरी बारहवीं तो पूरी हो जाए। अभी तक यह भी नहीं पता ,वह 'चाय वाला 'मेरा ससुर , मुझे पसंद करेगा भी या नहीं , सोचकर ही मुस्कुराया और वह क्या चाहती है ? यह सब प्रश्न अब चतुर को परेशान कर गए।
अगले दिन सभी दोस्त ,घर से तो साथ निकले थे किन्तु न जाने ,अचानक चतुर कहाँ चला गया ?
अचानक चतुर को अपने द्वार पर खड़े देखकर ,कस्तूरी की माँ हतप्रभ रह गयी ,चतुर ने उनके चरण स्पर्श किये और बोला -आजकल मैं यहीं पढ़ रहा हूँ ,कस्तूरी का नाम तो नहीं लिया ,बोला -मैंने सोचा एक बार अपने छात्रों को भी देख लूँ ,बहुत दिन हो गए ,कुछ पढ़ भी रहे हैं या नहीं।
तूने ठीक किया कहते हुए वो दरवाजे के सामने से हट गयी और बोली -तुम कितना बदल गए हो ?एक बार को तो मैं पहचान ही नहीं पाई थी।
अंदर आते हुए ,चतुर ने पूछा -क्या घर में ,और कोई नहीं है।
हाँ ,है न दोनों ऊपर के कमरे में बैठे अपना गृहकार्य कर रहे हैं। मैं उन्हें अभी बुलाती हूँ ,या तुम ही चुपचाप जाकर देख लो !दोनों क्या कर रहे हैं ?
हाँ यही सही रहेगा ,कहते हुए चतुर सीढ़ियों पर चढ़ने लगा किन्तु न जाने क्यूँ अचानक ही उसकी धड़कने तीव्र गति से बढ़ चलीं ,आज बहुत दिनों के पश्चात कस्तूरी को देखेगा ,इतने दिनों से जिसके सपने देख रहा है। अपने दोस्तों से उसकी बातें करता है ,उसे अपनी जीवन संगिनी बनाना चाहता है। न जाने इतने दिनों पश्चात उससे ,कैसा व्यवहार करेगी ?जैसे -जैसे वो सीढियाँ चढ़ता जा रहा था ,वैसे -वैसे उसके दिल की धड़कनें बढ़ती जा रहीं थीं। जैसे ही वह ऊपर वाली सीढ़ी पर पहुंचा, उसे लग रहा था ,जैसे -उसका दिल उसके सीने से बाहर आ जाएगा। कुछ देर के लिए वह वहीं खड़े होकर ,वह उन धड़कनों पर नियंत्रण करने का प्रयास करने लगा। गहरी सांस लेते हुए उसने वह दरवाजा खोला , दरवाजा खोलते ही , वह आश्चर्यचकित रह गया।
कस्तूरी का भाई सोया हुआ था और कस्तूरी रो रही थी।
क्यों तुम्हें क्या हुआ ?कस्तूरी से चतुर ने प्रश्न किया।
उसने उसे देखा और आगे बढ़ी,और झट से उसके सीने से लिपट गयी। रोते हुए बोली -इतने दिनों से तुम कहाँ थे ?मुझे उम्मीद जगाकर एक बार भी नहीं आये। रात -दिन तुम्हारा ही ख़्याल और इंतज़ार रहता है। कहते हुए उसके मुख को चूमने लगी।
अचानक कस्तूरी से , इस व्यवहार की उम्मीद तो स्वयं चतुर को भी नहीं थी। वह खड़ा सोच रहा था -इसे क्या हुआ? इस बात का भी डर था ,कहीं इसके भाई की आंखें ना खुल जाएं। तब उसने कस्तूरी से प्रश्न किया -क्या तुम जानती थीं , कि मैं आ रहा हूं। कस्तूरी ने क्या जवाब दिया ? आईये ! आगे के भाग में पढ़ते हैं -रसिया !
