हम सोच रहे होते हैं ,कि यह कार्य हम कर रहे हैं, किंतु ऊपर वाला तो सबका भविष्य और निर्माण कार्य पहले से ही तय करके भेजता है। चतुर के सभी दोस्तों का उद्देश्य आगे पढ़ने और बढ़ने का है। कोई एक दूसरे की होड़ से पढ़ने जा रहा है, किसी के माता-पिता ने उसे जबरदस्ती पढ़ने के लिए भेजा है। कोई लड़की के चक्कर में, पढ़ने के बहाने से बाहर निकाला है, किंतु प्रत्यक्ष में सबको यही नजर आ रहा है, कि सभी बच्चे पढ़ने जा रहे हैं।
किंतु सुशील का मन इस पढ़ाई में नहीं लग रहा है। सुशील को पढ़ाई समझ में नहीं आ रही और न ही ,उसका मन लग रहा है। वह दोस्तों के कहने पर ,पढ़ने के लिए चला तो आया किंतु जब पढ़ाई करने के लिए उसे पढ़ना पड़ा ,तब उसे, परेशानी उत्पन्न हुई। पढ़ाई नहीं ,बल्कि उसे वह परेशानी लग रही थी। अभी 6 महीने ही हुए हैं , और सुशील ने निर्णय ले लिया कि अब वह आगे पढ़ाई नहीं करेगा किंतु दोस्तों के कहने पर कुछ दिन और रुक जाता है। उसके माता-पिता भी चाहते हैं ,कि वह भी पढ़े ! किंतु उसका मन पढ़ने में नहीं है। अब कोई जबरदस्ती तो उसके साथ कर नहीं सकता ,पढ़ना तो उसे स्वयं ही पड़ेगा। अब पढ़ने के लिए उसके मन में ,अब वो उत्साह नहीं है या उसे कुछ समझ नहीं आता, यह तो वही जाने !
स्कूल की छुट्टी हुई तो सभी दोस्तों ने ,अपनी -अपनी संभाल ली ,जो साथ बैठकर जाते थे ,उनकी प्रतीक्षा में थोड़ा समय व्यतीत हुआ और सीधे घर की ओर रवाना हो गए। तभी उनमें से एक बोला -सुशील ! अब आगे नहीं पढ़ना चाहता ,वह अपनी पढ़ाई छोड़ रहा है।
यह तू क्या कह रहा है ? अभी हमें दाखिला लिए हुए ,कितने दिन हुए हैं ? यदि कोई चीज तुझे समझ नहीं आ रही तो मैं तुझे समझा सकता हूं ,बता सकता हूं किंतु सोच तो सही, तेरे परिवार वाले, तुझसे कितनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं ? जब उन्हें इस बात का पता चलेगा, कि उनका बेटा पढ़ना ही नहीं चाहता या पढ़ाई में बुद्धू है ,कहते हुए हंसा तो उन्हें कितना दुख होगा ? चतुर ने सुशील को समझाना चाहा।
सुशील को चतुर की मुस्कुराहट में ,अपने लिए व्यंग्य नजर आया और उसे बुरा भी लगा ,इसमें हंसने की बात नहीं है। क्या करूं ? यार !मुझे कुछ समझ ही नहीं आता, पढ़ने बैठता हूं ,तो अन्य विचार आने लगते हैं , मन भागता है ,ये पढ़ाई मुझे बेकार नजर आती है। मैं तुम लोगों की तरह, जल्दी से स्मरण भी नहीं कर पाता हूँ। स्मरण किया भी ,तो भूल जाता हूं। मैं प्रयास कर रहा हूं ,किंतु कुछ भी समझ नहीं आता। अबकि बार नंबर देखकर तो मुझमें जो थोड़ा ,बहुत उत्साह था ,वह भी गया। अभी तक मैंने अपनी अंकतालिका अपने घरवालों को नहीं बताई।
तू नंबर लाने के विषय में सोचता ही क्यों है ? ज्ञान के लिए पढ़......
ज्ञान के लिए ही पढ़ना है या देश -दुनिया में क्या हो रहा है ?यह जानने के लिए ही पढ़ना है तो..... मुझे बहुत जानकारी है किन्तु ये सभी विषय मेरी समझ से बाहर हैं।
किन्तु कहीं काम ढूंढने जायेगा तो वहाँ तेरे सर्टिफिकेट ही देखेंगे ,कहाँ से पढ़ा है ?कितने प्रतिशत अंक लाया है ?तन्मय बोला।
वही तो..... हमारी बुद्धिमानी और ज्ञान को इसी आधार पर परखा जाता है।
यार ! यह बात तूने बहुत सही कही, यह हमारी अंक तालिका, ही हमारी शिक्षा का 'प्रमाण पत्र 'हैं। यदि यह हमारे पास नहीं हैं , तो संपूर्ण शिक्षा व्यर्थ ! है। इस विषय में मुझे कुछ सोचना होगा ,चिराग ने गंभीरता से जवाब दिया।
तू क्या सोचेगा ?
अरे'' शिक्षा मंत्री ''बन जाऊंगा या कुछ शिक्षा से संबंधित संशोधन का कोई,तो विभाग होगा। उसमें, यदि मैं कोई बड़ा ऑफिसर बना तो, इस विषय में अवश्य सोचूंगा। क्योंकि हो सकता है, कोई बच्चा विज्ञान में अच्छा होता है ,कोई कला में अच्छा होता है, कोई किसी अन्य चीज में अच्छा होता है और यह सभी विषय, इस तरीके से होने चाहिए, ताकि हम जिस विषय में बहुत अच्छे हैं उसमें ही आगे उन्नति कर सकें। ऐसा नहीं की हर विषय को लेकर, हमारे मन में दुविधा बनी रहे।
यह सभी विषय छोटी कक्षा में आते हैं, हर बच्चे को ,हर विषय के बारे में पता चल सके और तब वह अपने अनुसार, बड़ी कक्षा में आने तक उस एक विषय का चयन करके, उसमें आगे बढ़ सके चतुर ने समझाया। क्योंकि किसी भी एक विषय को लेकर, यदि हम आगे बढ़ते हैं ,तो उसके विषय में फिर गहन अध्ययन करना होगा। जो कि बड़ी कक्षा में आने पर होता है। अन्य विषयों के विषय में भी तो जानकारी होनी चाहिए तभी तो ,हम एक विषय स्वतंत्रता पूर्वक चुन सकते हैं।
तू बड़ा ज्ञान बघार रहा है, तुझे कैसे पता चला ?
जब मैं, एक महीना अपने घर से बाहर था, तो तब अपन आजाद पंछी था ,कहीं भी उड़ता था ,किसी भी डाल पर जा बैठता था। ऐसे ही उड़ते हुए ,एक दुकान पर गया ,वहां एक भाई को देखा ,वो कारोबार संभालने के साथ -साथ ,पढ़ाई भी करता था ,तब मैंने उससे पूछा था ,कि बड़ी कक्षा में क्या होता है? छोटी कक्षा में,क्या हमें संपूर्ण ज्ञान नहीं मिलता ? तब उन्होंने ही बताया था-' कि बड़ी कक्षा में आने तक हमारे विषय कम हो जाते हैं, और उनके विषय में फिर हमें गहन अध्ययन की आवश्यकता होती है। परीक्षा द्वारा तो, थोड़ा बच्चों को शिक्षा के विषय में गंभीर बनाने का प्रयास मात्र है , ताकि वह उन विषयों पर गंभीरता से अध्ययन कर सकें।
तुम्हारी यह बात तो सही है, किंतु मुझसे इतने सारे विषय नहीं पढ़े जाते , अभी से एक विषय चुनकर पढ़ सकता हूं।
अब तेरे लिए क्या शिक्षक अलग से किताब छपवाएंगे ? और अलग से 'शिक्षा नीति 'को बदलेंगे।
''सोे बातों की एक बात !''क्यों ना तू दूसरा विषय ले ले ? मयंक ने उसे समझाया, हो सकता है, विज्ञान में तेरी रुचि ना हो और तुझे समझ नहीं आ रहा कुछ और विषय भी तो चुन सकता है , साइकिल पर पीछे बैठे मयंक ने सुझाव दिया।
तुम्हारी बात भी सही है, किंतु यार मुझे लगता है, इस पढ़ाई का क्या फायदा होगा ?
हर चीज हम लाभ के लिए नहीं करते हैं ,फिर यह तो शिक्षा है ? अपना ही ज्ञान बढ़ता है ,अर्जित होता है इसमें लाभ और हानि क्या देखना ?
मेरे विचार से तो शिक्षा का उद्देश्य यही था -''कि हम पढ़ते -लिखते ही इसलिए हैं ताकि कोई अच्छी सी नौकरी मिल सके और उससे अच्छा जीवन यापन कर सकें।'' हमारे बड़े-बूढ़े कितने पढ़े हैं ? कोई दसवीं जमात पास है ,कोई आठवीं जमात पास है। जीवन यापन तो उन्होंने भी किया , फिर हम ही क्यों इतनी परेशानियां झेल रहे हैं?
क्या सुशील का निर्णय सही है ? क्या उसके दोस्त उसे समझा पाएंगे ?चलिए !आगे बढ़ते हैं -रसिया के अगले भाग में।
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