बापू ! मुझे शहर जाकर पढ़ना है, मयंक के पिता ने जब उसके यह शब्द सुने। वे अपनी ही परेशानियों में उलझे हुए थे। मयंक को अपनी माँ से इस तरह की ज़िद करते देख ,उनका क्रोध बढ़ गया और उन्होंने दूर से ही जूती फेंककर मयंक पर दे मारी ,जो सीधी उसके सिर पर लगकर पीछे जा गिरी।
पीछे से पिता के स्वर सुनाई दिया - बड़ा आया ,बाहर जाकर पढ़ने वाला ,यहां काम कौन करेगा ? मैं अकेला क्या-क्या संभाल लूंगा ? बाहर के भी दस काम रहते हैं। जब से उम्मीद लगाए बैठा था ,जब ये बड़ा हो जायेगा ,मेरा सहारा बन जायेगा। अब ये 'लाटसाहब 'बाहर जाकर पढ़ना चाहते हैं। तुम तो ,पढ़ने के लिए बाहर चले जाओ ! खेती-बाड़ी कौन संभालेगा ? बच्चे बाहर जाकर बिगड़ जाते हैं, मां -बाप का भी ख्याल नहीं रहता, उनसे ममता ही नहीं रहती। अपने परिवार में यहीं रहना है और यहीं रहकर ,अपनी जमीन को संभालना ,यही हमारी रोज़ी -रोटी है कहकर उन्होंने अपना अंतिम निर्णय सुना दिया।
जब मुझे खेती ही करनी थी तब मुझे, पढ़ाने की आवश्यकता ही क्या थी ? मयंक भड़कते हुए बोला।
पढ़ने - लिखने से, ज्ञान बढ़ता है , खेती-बाड़ी की अच्छी समझ आ जाएगी। आजकल खेती में भी नई-नई चीजें चल रही हैं। खाद -पानी ,हिसाब -किताब सब लगाना आ जाएगा इसीलिए पढ़ाया था। ताकि साहूकार ठगे न....... मां ने प्यार से समझने का प्रयास किया।
हमसे जबान लड़ाता है ,कहते हुए ,उसके पिता उसको मारने के लिए उसके पीछे दौड़े। पिता के क्रोध को देखकर मयंक वहां से भाग खड़ा हुआ।
बहुत ही दुखी और परेशान हो गए था। सबके माता -पिता कितने अच्छे होते हैं ?और एक मेरे हैं ,सोचकर सुबकने लगा। उसे लग रहा था अब उसका दाखिला अपने दोस्तों के साथ शहर में नहीं हो पाएगा। उदास होकर, बाहर निकल गया।
हालाँकि सभी में यह साहस चतुर को देखकर ही आया था ,चतुर ने उन्हें शहर के विषय में बताया ही इस तरह से बढ़-चढ़कर था। सभी का मन बाहर जाने के लिये लालायित हो उठा ,ऊपर से ,जब उसने अपना र कस्तूरी का किस्सा सुनाया तो उन्हें भी लग रहा था कि शहर में जाकर मौजमस्ती करने को मिलेगी। जिसमें अब तो चतुर उनको समझाने वाला था चतुर ने शहर में ,अपने आरंभ के दिन सबसे छुपाकर रखे थे।
सुरेश ने तो अपने घर वालों को समझा लिया था , उसका एक छोटा भाई भी था। अपने पिता के सामने अपने भाई को डांट रहा था -अभी मेरी पढ़ाई इतनी अधिक नहीं है, जो मैं तुझे ठीक से समझा सकूं लेकिन जब मैं और ज्यादा पढ़ -लिखकर बड़ा आदमी बन जाऊंगा। अपने गांव का ही नहीं ,अपने देश का नाम रौशन करूंगा और सब कहेंगे -देखो ! महेश !!का भाई जा रहा है ,तब तुझे मुझ पर गर्व होगा और तब मैं तेरा इम्तिहान लिया करूंगा। बड़े भाई होते ही किसलिए हैं ?
सुरेश की बातें सुनकर ,उसके पिता अत्यंत प्रसन्न हुए और बोले -क्या तू ऐसा सोचता है ?
हाँ बाबूजी !अपने भाई को और घर -परिवार को संभालने के लिए....... पहले तो मैं सोच रहा था ,यहीं पर रहकर खेती -बाड़ी संभाल लूं। फिर सोचा ,इसी खेती -बाड़ी में सभी लगे रहेंगे तो घर की तरक्की कैसे होगी ? अभी तो चाचा भी साथ में हैं ,छोटा भाई भी है ,यह सब संभाल लेंगे। चतुर तो अपने घर में अकेला है, तब भी उसके माता-पिता उसकी तरक्की में बाधा नहीं डालना चाहते , उन्होंने तो उसे बाहर जाने के लिए, इजाजत दे दी।
क्या बात कर रहा है ? क्या चतुर बाहर पढ़ने जा रहा है
हां ,हां वही तो कह रहा हूं , मैंने सोचा जब वह जा सकता है तो, हममें क्या कमी है ? हम भी जा सकते हैं। हमारा खानदान क्या चतुर के खानदान से किसी बात में कम है ?
ये बात तो तूने ''लाख टके ''सही कही अपनी मूछों पर ताव देते हुए हरकिशन जी बोले।
हां हां तू क्यों नहीं जाएगा ?तू अवश्य जाएगा, सुरेश की मां अकड़ते हुए बोली।
देखो जी ,हमारा लड़का इकलौता नहीं है, उसका छोटा भाई भी है , उसके चाचा भी हैं अभी ,हम सभी मिलकर सभी कार्य संभाल लेंगे। बच्चा आगे पढेगा तो ज्यादा उन्नति होंगे और अपने छोटे भाई को भी पढ़ा दिया करेगा। उसके लिए भी आगे की राह खुल जाएगी। इस तरह सुरेश को तो, बिना किसी बाधा के, बाहर दाखिले की इजाजत मिल गई ,सुरेश ने अपने माता -पिता को मना तो लिया था किन्तु अपने परिवार के विश्वास को भी बनाये रखना चाहता था,ऐसा ही कुछ करना भी चाहता था। ये बात अलग है ,चतुर ने उन्हें जो सब्ज़बाग दिखाए ,उनको भी देखने का लोभ वह मिटा न सका।
चिराग और तन्मय ने भी प्रयास किया, थोड़ी सी ना नुकुर के पश्चात, जब उन्होंने बताया कि वह वहीं रहकर पढ़ने वाले नहीं है बल्कि अपने घर वापस आया करेंगे और स्कूल भी पढ़ने जाया करेंगे। फिर तो बात ही खत्म हो गई।
शाम को ,सभी मित्र चौपाल पर आकर मिले, मयंक का उतरा हुआ चेहरा देखकर समझ गए ,इसे अवश्य ही घर में डांट पड़ी है और जाने की इजाजत नहीं मिली है।
क्यों ,क्या हुआ ?तेरा चेहरा क्यों उतरा हुआ है ?उसके करीब पहुंचकर चिराग ने पूछा।
बापू ने तो सीधे, जूती फेंक कर मारी और बोले -'खेती कौन संभालेगा ?क्रोध में घूरते हुए उसने जबाब दिया ,ये उम्र ही ऐसी है ,जो चीज चाहिए तो चाहिए ,नहीं मिली तो माता -पिता दुश्मन नजर आने लगते हैं।दिमाग़ पर दिल हावी रहता है। दिल जो चाहता है ,वो चाहिए ,दिमाग सोचना ही नहीं चाहता क्योंकि दिल को अनेक काल्पनिक, रोचक अनुभूतियाँ हो रहीं हैं ,जिन्हें चतुर ने जाग्रत किया है।
तू भी पागल है ? मौका देखकर बात करता ,उस समय उन्हें गुस्सा आ रहा होगा जो तेरे पर उतर गया कहते हुए सभी हंसने लगे।
यार !तुम लोग ही देख लो !कोई जुगाड़ कर सकते हो तो........ मयंक स्वर में विवशता थी ,उसने सारी बात अपने दोस्तों पर ही डाल दी।
अब नहीं भेज रहे तो रहने दो !तुम यहीं अपने पिता के साथ रहकर उनका हाथ बंटाना !
अच्छा ,तुम लोग ,बाहर जाकर मौज -मस्ती करो !और मैं यहाँ....... उसको रोना आ गया। ये बात ठीक नहीं है ,मेरा भी कुछ जुगाड़ करो ! तुम किस बात के दोस्त हो ?वरना.......
मयंक अपने दोस्तों को किस बात की धमकी दे रहा है ? उनसे सहायता करने के लिए कह रहा है , सहायता मांगने के लिए आदमी विनती करता है , किंतु मैं तो अपने दोस्तों को धमकी दे रहा है, क्या उसके दोस्त उसकी सहायता करेंगे ? क्या मयंक भी पढ़ने के लिए बाहर जा पाएगा ? जानने के लिए पढ़ते रहिए -रसिया !