चतुर ने अपने सभी दोस्तों को ,'सब्ज बाग' दिखाया . उसके कुछ दोस्त तो चाहते थे, कि वह बाहर जाकर, पढें और उन्नति करें, कुछ मौज -मस्ती के लिए जाना चाहते थे। वह लोग गांव से निकले ही कम थे , कभी- कभार अपने माता-पिता के साथ गए होंगे। वह कोई इतना बड़ा शहर भी नहीं था, एक कस्बा ही था , किंतु गांव से बेहतर था। उनके लिए तो वह कस्बा ही शहर था। जहां पर जाकर, चतुर ने अपनी जिंदगी का एक अनुभव लिया था किंतु उसने उस अनुभव को ,उन्हें बढ़ा -चढ़ाकर दिखलाया। यह उम्र ही ऐसी होती है, बच्चे अपने घोंसले से बाहर आना चाहते हैं और नई दुनिया के अनुभव लेना चाहते हैं। किंतु माता-पिता के लिए तो बच्चे ,बच्चे ही होते हैं। इसीलिए अपनी छत्रछाया में ही रखना चाहते हैं। उन्हें भय सताता है ,कहीं बच्चों पर, बाहरी हवा न लग जाए। कहीं बच्चा बाहर, किसी गलत संगत में न पड़ जाए। माता-पिता के लिए, अपने बच्चों को भविष्य को लेकर, अनेक सवाल उठते हैं ,और वे सचेत भी रहना चाहते हैं किंतु अब बच्चा ! चाहता है, कि माता-पिता की छत्रछाया से बाहर निकलकर एक नई दुनिया देखे।
चतुर एक बार घर से बाहर क्या निकल गया ? उसने अपने दोस्तों पर, और गांव वालों पर अपना प्रभाव छोड़ा ! वह चाहता है -कि कस्तूरी के लिए, वह फिर से उस कस्बे में जाए। इसके लिए उसने अपने दोस्तों को भी तैयार कर लिया है किंतु मयंक के पिता अभी भी तैयार नहीं हुए हैं। तब मयंक उनसे कहता है -कि वह मेरे माता-पिता को समझाएं! वरना मैं भी उन्हें नहीं जाने दूंगा ,अभी वह अपना वाक्य पूरा कर ही नहीं पाया था ,उससे पहले ही, उसके दोस्त एकसाथ बोल उठे -वरना क्या ?
सभी एकसाथ बोले - ठीक है ,हम देखते हैं -हम क्या कर सकते हैं ? किन्तु कभी अपने यारों को धमकी देने का प्रयास मत करना। वे लोग मयंक को साथ लेकर उसके घेर में पहुंच गए ,वहां मयंक के पिता को देखा तो, उसे बाहर ही छुपा दिया। मयंक !!!और मयंक उसके पिता को देखकर बोले -चाचा मयंक है, क्या ? उन्होंने उसके पिता से पूछा।
नहीं ,यहाँ नहीं है ,घूम रहा होगा ,यहीं कहीं ,सारा दिन आवारागर्दी करवा लो !और अब उसके ये आवारा दोस्त ! मन ही मन बुदबुदाए।
क्या चचा !आपने उसे सुबह से देखा ही नहीं ,सुरेश ने पूछा।
सुबह तो घर पर ही था ,उसके पश्चात मैंने नहीं देखा।
ओहो........ कहीं कुछ वह ऐसा वैसा ना कर ले सतीश परेशान होते हुए बोला।
क्या हुआ ?मयंक के पिता ने, उनकी बातों को सुनकर पूछा।
ताऊजी मैंने उसे उदास देखा था, न जाने किस बात पर उदास था ? नहर की तरफ जा रहा था। सतीश ने जबाब दिया।
तू ,यह क्या कह रहा है ?वे परेशान होते हुए बोले।
आज क्या घर में कुछ बात हुई थी? सुरेश ने पूछा।
तब मयंक के पिता को अपनी बात स्मरण हो आई , कि उन्होंने उसके शहर में दाखिले के लिए, उसकी पिटाई कर दी थी। हां ,कुछ कह तो रहा था कि मुझे बाहर जाकर पढ़ना है।
अच्छा !!! सभी एक साथ बोले।
उसमें तनिक भी बुद्धि नहीं है, किसी की होड़ नहीं की जाती। उसने यह नहीं देखा कि उसके अकेले पिता कैसे सारा घर -परिवार संभालेंगे ?उसे तो अपने पिता का सहारा बनना चाहिए ?
चिराग बोला - हां यह बात अलग है , माता-पिता अपने बच्चों के लिए तो जीते हैं, उनके लिए ही ,इतनी मेहनत करते हैं। उन्हें भी तो फिर बड़े होकर अपने माता-पिता का साथ देना चाहिए।
वैसे वह अभी इतना बड़ा भी तो नहीं हुआ तन्मय बोला।
यह बात बड़े होने की नहीं है ,समझदारी की है ,बहुत से बच्चे तो उम्र से पहले ही समझदार हो जाते हैं और समय से ही ,अपने उत्तरदायित्वों को निभाने लगते हैं। चतुर के पिता तो अकेले हैं, वह एक महीने पहले बाहर रहकर आया किन्तु उसे कुछ नहीं कहा। मेरे पिता होते, तो संटियों से सूत देते, और तब भी उसे कुछ नहीं कहा और अब पढ़ने के लिए भी बाहर भेज रहे हैं ,ताकि उनके बच्चे की उन्नति हो तरक्की हो।
यह बात तो तूने सही कही सतीश बोला।
इसमें बुराई ही क्या है ? अपना बच्चा अपने पास रहेगा और शहर में भी पढ़ लेगा सुरेश बोला।
मयंक के पिता इतनी देर से उनकी बातें सुन रहे थे, तुम लोग यह क्या बातें कर रहे हो , शहर में भी पढ़ना है और अपने परिवार के साथ भी रहना है।
हां चाचा ! हमारे मम्मी -पापा ने भी अपनी सहमति दे दी है। हम सभी मिलकर, साइकिल से पढ़ने जाया करेंगे और अपने घर भी आ जाया करेंगे छुट्टियों में खेती बाड़ी भी संभाल लेंगे। है न...... पते की बात !''आम के आम ,गुठलियों के दाम ,''
कह तो तुम सही रहे हो, यहां बातें बना रहे हो,तुम उसके दोस्त हो तो....... पहले मयंक को ढूंढ कर लाओ !
मयंक को तुम ढूंढ लायेंगे , किंतु उससे कहेंगे क्या ? हमें लग रहा है ,वह आपकी बातों से निराश होकर चला गया है।
ठीक है, मैं भी कुछ सोचता हूं,उससे कहना -उसके पिता ने बुलाया है।
मयंक तो वही छुपा खड़ा था, उसके सभी दोस्त प्रसन्न हो गए किंतु उन्होंने मयंक को ढूंढ कर लाने का अभिनय किया क्योंकि यदि उसके पिता को तनिक भी आभास हो जाता कि यह सब उन लोगों की चाल थी। अपनी बात मनवाने के लिए, तो शायद, फिर से नाराज हो जाते।
ठीक है ,हम ढूंढ कर लाते हैं, कहकर सभी भाग गए।