तुषार को, कल्पना अपनी मम्मी से मिलवाने के लिए लाती है। वह नीलिमा से उसे पहली बार मिलवा रही थी किंतु नीलिमा ने एक आश्चर्यजनक बात ही कर दी। पहली बार उससे मिली थी, और मिलते ही तुषार से कल्पना के विवाह की बातें करने लगीं। ऐसी बातों को सुनकर कल्पना थोड़ी असहज हो गई , उसे लग रहा था कि कहीं तुषार बुरा न मान जाए। इसलिए अपनी मम्मी को इशारों से ऐसी बातें करने के लिए मना कर रही थी।
तभी नीलिमा ,तुषार की तरफ देखकर बोली-तुम देख रहे हो, अभी तो रिश्ता भी नहीं हुआ, और तुम्हारी तरफ से मुझे डांट रही है ,मुझे इशारों से डपट रही है कि मैं तुमसे ऐसी बातें क्यों कर रही हूं ?अब तुम ही बताओ !एक जवान बेटी की मां, ऐसी बातें नहीं करेगी तो और कैसी करेगी ?अब तुम ही सोचो ! जो बेटी ,अपनी मां से, अपने दोस्त को मिलवाने लाती है तो इसका अर्थ यही है कि वह उसके साथ जीवन -बसर करना चाहती है ,वह उसे अच्छा लगता है ,उससे प्यार करती है वरना इस ज़िंदगी के सफ़र में इतने दोस्त बनते हैं , हर किसी को तो नहीं मिलवाने लाई।
नीलिमा की इस तरह स्पष्ट बातों से ,थोड़ा तुषार भी घबरा गया था , फिर मन ही मन सोचा -जो हो रहा है होने दीजिए। यह तो एक न एक दिन होना ही था , ठीक ही तो कह रही हैं ? तुषार ने कल्पना की तरफ देखते हुए कहा।
हमें इस रिश्ते को एक नाम दे देना चाहिए। तुम क्या कहती हो ?कल्पना से पूछा।
मैं क्या कहूँगी ?कहते हुए कल्पना शर्मा कर मुंह फेर कर खड़ी हो गई।
उसकी इस हरकत का मजा लेने के लिए नीलिमा बोली -मुझे लगता है ,बेटा !कल्पना को यह रिश्ता पसंद नहीं आया है। मैं ही शायद, गलत थी ,मैंने ही अपनी बेटी को पहचानने में भूल कर दी। जो मैंने तुम्हें इसका विशेष मित्र समझ लिया। वह सिर्फ तुम्हें अपना दोस्त ही मानती है ,विवाह नहीं करना चाहती इसीलिए तो इस तरह की बातों को सुनकर ,वह मुंह फेर कर खड़ी हो गई है।
तभी कल्पना ने, घूमकर बोली -मैंने ऐसा कब कहा था ? मेरी तो पहले से ही हाँ थी।
उसकी बात पर तुषार और नीलिमा दोनों ही हंस दिए ,तुषार उसके करीब आया और उसने कल्पना से पूछा -कितने पहले से हाँ थी ?और मुझे बताया भी नहीं।
तुम भी ,मम्मा के रंग में मत रंगो ! उसके ऊपर कुशन फेंकती है किन्तु तुषार तुरंत ही लपक लेता है और नीलिमा से कहता है -अच्छा ,आंटीजी अब मैं चलता हूँ।
मम्मा !मैं अभी आती हूँ ,कहते हुए , तुषार के पीछे जाती है और तुषार से कहती है -मेरी मम्मा की बातों का बुरा मत मानना।
कौन सी बात ?क्यों उन्होंने ऐसा क्या कहा है ? तुषार ने पूछा।
वह जो तुम्हारे आते ही ,शादी के विषय में........
तो क्या उन्होंने गलत किया ? उसकी आंखों में झांकते हुए तुषार ने पूछा। तभी तुषार पूछता है, तुम्हारी मम्मी क्या ?? कहते हुए अपनी कनपटी पर उंगली घूमाता है। जिसका अर्थ लोग' पागलपन 'समझते हैं, या फिर दिमाग से खिसका हुआ।
तुषार को इस तरह इशारे करते हुए देखकर, कल्पना उसे घूरती है, और कहती है -तुम मेरी मां के विषय में ऐसा क्यों कह रहे हो ? वह मेरी मम्मा है।
मुझे मालूम है वह तुम्हारी मम्मा हैं किंतु पहली बार किसी के घर कोई मिलने आता है , तो क्या कोई भी बिना जाने -पहचाने ऐसे ही बातें करने लगता है।
वह तो मैं भी सोच रही हूं , किंतु मम्मा ने दुनिया देखी है, यदि वह ऐसा कुछ कह रही है या कर रही हैं तो इसके पीछे जरूर कोई बात होगी कल्पना विश्वास से बोली।
तो क्या तुम तैयार हो ?
किस बात के लिए ? कल्पना ने पूछा।
इतनी देर से अंदर बातें हो रही थीं , तुमने सुनी नहीं थीं इसीलिए तो मैं कह रहा था-कि तुम्हारी मां एडी हैं क्या ?
मतलब !
मतलब यही कि, हम इतने महीनों से एक साथ रह रहे हैं ,किंतु इस तरह की बात करने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे, या यह भी कह सकते हैं -ऐसा सोचने का प्रयास भी नहीं किया और उन्होंने, ऐसा सोचने में तनिक भी समय नहीं लगाया। जो कार्य हमें पहले सोचना और करना चाहिए था वह तुम्हारी मां ने, जाते ही कर दिया , कहते हुए तुषार मुस्कुराने लगा।
अब उसकी बातों का आशय समझ कर, कल्पना भी मुस्कुराने लगी।
तब क्या मैं ,अपने पापा से बात करूं ?
उसकी बात सुनकर कल्पना थोड़ा, गंभीर हो गई।
क्यों ,क्या हुआ ? अब तुम्हें विवाह नहीं करना है, इस रिश्ते में आगे नहीं बढ़ाना है।
बढ़ाना तो चाहती हूं, किंतु तुम भी किराए के मकान पर रहते हो, परेशानियों से जूझ रहे हो और मेरी नौकरी भी अभी लगी है। मैं सोच रही थी -विवाह से पहले, हम एक फ्लैट ले लेते।
बस इतनी सी बात है, वह सब तुम मुझ पर छोड़ दो ! मैं इतने वर्षों से कमा रहा हूं , कुछ तो पैसा जोड़ा ही है तो शायद....... तुषार ने उसे आश्वस्त किया।
अब तुषार ने अपने जीवन के विषय में क्या सोचा है ? और आगे क्या करने वाला है ? उनका विवाह करने के लिए नीलिमा इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रही है ? मिलते हैं -साज़िशें के अगले भाग में