Pyari dayan

तिरछी चितवन ,

नैनो के बाण चलाएं, 

उसके लहराते केश !

सीने पर लोट -लोट जाएँ। 

जो देखे ,''मधुशाला ''बन जाये। 

उसकी नागिन सी लटाएं, बलखाएं।

अनजान नहीं ,उसकी बातों से मैं.........

फिर भी ,मन क्यूँ ? बहक -बहक जाये ?


अब जीवन में ,बिन उसके कुछ भी न सुहाए। 

ऐसा क्या है ?उसमें ,मन प्यार से भर -भर जाये।

हिरणी सी उसकी चाल, दिल पर कटार चलाएं। 

मिश्री सी वाणी, जीवन में घुल मधुर रस बरसाएं। 

उसके मायाजाल से भृमित मैं ,तभी वो 'प्यारी डायन ''कहलाए। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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