तिरछी चितवन ,
नैनो के बाण चलाएं,
उसके लहराते केश !
सीने पर लोट -लोट जाएँ।
जो देखे ,''मधुशाला ''बन जाये।
उसकी नागिन सी लटाएं, बलखाएं।
अनजान नहीं ,उसकी बातों से मैं.........
फिर भी ,मन क्यूँ ? बहक -बहक जाये ?
अब जीवन में ,बिन उसके कुछ भी न सुहाए।
ऐसा क्या है ?उसमें ,मन प्यार से भर -भर जाये।
हिरणी सी उसकी चाल, दिल पर कटार चलाएं।
मिश्री सी वाणी, जीवन में घुल मधुर रस बरसाएं।
उसके मायाजाल से भृमित मैं ,तभी वो 'प्यारी डायन ''कहलाए।