Kanch ka rishta [part 19]

आज अचानक करुणा को यही  किस्सा क्यों स्मरण हुआ ? क्योंकि आज वह भी कुछ इसी तरह की स्थिति से गुजर रही है। इतना सब तो नहीं हुआ ,अब समय बदल चुका है। करुणा समझती है -''मानव एक ''सामाजिक प्राणी ''है। समाज में रहकर ,हर इंसान को किसी न किसी से, सहायता की आवश्यकता पड़ती ही है। चाहे वो पड़ोसी ,रिश्तेदार अथवा कोई अनजान भी हो सकता है। जब अपने ही हैं ,तो बाहर वाले से सहायता की उम्मीद क्यों रखना ?रिश्ते होते ही किसलिए हैं ?एक -दूसरे की सहायता के लिए ,समय पर उसके साथ खड़े दिखलाई दें। किन्तु लगता है -समाज बदला ,लोग बदले ,सोच में भी परिवर्तन आया किन्तु बदला नहीं तो स्वार्थ ,लोभ !छल !कपट ! ये आज भी सरेआम नंगे घूम रहे हैं। कम से कम पहले ,रिश्तों का, उम्र का ,लिहाज़ तो रहता था किन्तु अब वो भी नहीं रहा।


 ,मैं ,मैं और सिर्फ मैं रिश्ता बना भी तो पत्नी और उसके परिवार के संग ,ये रिश्ता भी टिक जाये तो गंगा नहा लो !कहीं पत्नी तो कहीं पति तालमेल नहीं बैठा पाते और इन दोनों  में बन गयी ,या यूँ कहें शर्तों पर ज़िंदगी जीते हैं। तुम्हारे घरवाले आएंगे तो मेरे भी आएंगे। हारकर लड़का अपने परिवार से ही दूर होता चला जाता है। जिस परिवार में उसकी बहनें हैं ,माता -पिता हैं। यदि माता -पिता अपने में सक्षम हैं ,तो जी रहे हैं वरना वृद्ध आश्रम में ,जीने  को भी तरस रहे हैं। घूम फिरकर जिन्दगी जहाँ से चलती है ,वहीं आ जाती है। यानि एक बेटी ,बहन भी बनती है , और दूसरे घर जाकर बहु ,पत्नी माँ बनती है किन्तु माँ का दर्द क्या होता है ?उसे न ही समझती है , न ही समझना चाहती है ,बहन का मान क्या होता है ?वो ससुराल में आकर भूल जाती है। वहीं रिश्ते घूमते और उलझते रहते हैं। 

करुणा अपने पिता की परी तो थी ही किन्तु उसे बेटा बनने का शौक चढ़ आया था। जब उसे पता चला ,पिता की नौकरी नहीं रही।ऐसे में कोई भी खुद्दार लड़की होती तो ऐसा ही करती ,अपने परिवार के साथ खड़ी दिखलाई देती। सामान्य दृष्टि से देखा जाये तो सही भी है ,ऐसी बहुत सी बेटियां है जो अपने परिवार के मान -सम्म्मान के लिए आगे आई हैं। अपने जीवन का बलिदान भी दिया है ,अपने राज्य की सुरक्षा के लिए भी बेटियों का हमेशा से ही सौदा भी हुआ है। अपने से प्रबल राज्य से संधि के तौर पर,बेटी का रिश्ता उस घर से जोड़ देते थे। उस समय उन बेटियों के त्याग को समझा भी जाता था ,उसकी कद्र भी की जाती थी। आज भी बेटियां तो वही हैं ,परिवार के साथ खड़ी दिखलाई दे जाती हैं किन्तु बाद में ,परिवार की दृष्टि बदल जाती है। 

 करुणा ,अपने परिवार के लिए ,खड़ी हो गयी थी। उसने नौकरी की और अपने बहन -भाइयों पर इस बात का असर न हो इसीलिए अपनी इच्छाओं को दफ़्न कर ,उनकी पढ़ाई ,उनकी सुविधा के लिए परिश्रम करने लगी। भाइयों को पढ़ाना ,घर में साथ निभाना ,यह सब करते -करते करुणा ने तीस सावन इसी उम्मीद में बिता दिए ,कभी तो हमारे दिन भी अच्छे होंगे। 

क्या सोच रही हो ? यवन की आवाज से करुणा का ध्यान भंग हुआ। 

कुछ..... भी तो नहीं हड़बड़ाते हुए ,करुणा बोली -आप ऐसा क्यों कह रहे हैं ?

क्योंकि घर आ चुका है और तुम अभी भी ,न जाने क्या सोच रही हो ?अब गाड़ी से बाहर आओगी भी या नहीं। 

करुणा झेंप गयी ,हाँ उतरती हूँ ,कहकर गाड़ी का दरवाजा खोले तो एवं पहले से ही खड़ा था ,गाड़ी से बाहर आई ,खुले में गहरी ,श्वांस ली। उसे लग रहा था ,जैसे अब वर्तमान में आ गयी है ,अभी तक  न जाने यादों की कितनी गहराई में खो गयी थी ? जहाँ उसका दम घुट रहा था। 

मैने तुमसे कितनी बार कहा है ?अपने को यूँ जलाना ,परेशान करना छोड़ दो ! तुम उन लोगों के लिए पहले भी परेशान रहती थीं ,भाई अभी लगे नहीं हैं ,अभी उन्हें सम्भलने में समय लगेगा ,उनके साथ हम नहीं होंगे तो और कौन होगा ?अब वो लोग सम्भल गए ,अपनी गृहस्थी में व्यस्त हैं ,तो भी परेशान....... अरे !उन्हें उनके हाल पर जीने दो !और तुम अपनी ज़िंदगी जियो !

ये मेरे मन का दर्द नहीं समझ पाएंगे ,सोचते हुए ,करुणा ने गाड़ी में से अपना सामान उठाया और आगे बढ़ चली। मुख्य दरवाजा खोलने ही वाली थी ,तभी उसकी दृष्टि दरवाजे में फंसे एक लिफाफे पर अटक गयी। जो आधा बाहर झांक रहा था। किन्तु उसे निकाल नहीं सकती थी। अंदर जाकर ही पता चलेगा कैसा लिफ़ाफा है ?किसने भेजा है ?तब तक बच्चे भी बाहर आ गए थे और उन्होंने दरवाजा खोला। 

आप लोग अब आ रहे हैं ,कितना समय कर दिया ? करुणा की बेटी रुचि ने पूछा। 

हां बेटा विवाह का, घर था , मेहमानों को विदा करने में समय लग ही जाता है। तुम लोग तो ठीक हो, समय से अपने घर पहुंच गए। 

हां ,मम्मी हम ठीक हैं, करुणा के हाथ से थैले लेते हुए , रूचि बोली -दादी ,ने दरवाजा खोल दिया था। 

चलो अच्छा है अब तुम इतने समझदार तो हो गए हो, कि हमारे बिना सहायता के ही सही- सलामत घर पर पहुंच गए। 

ऐसा क्या हुआ था ?जो करुणा का अच्छा घर -परिवार है ,बच्चे हैं ,तब भी मन में एक क़सक सी है ,ये कैसा दर्द है ?जानने के लिए पढ़ते रहिये -काँच का रिश्ता !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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