Sazishen [part 91]

 तुषार , नीलिमा से मिलने ,कल्पना के साथ पहली बार उनके घर आया था। नीलिमा भी , तुषार के आते ही , पहली बार जब उसे देखा और उससे विवाह की बातें करने लगी। तब कल्पना को बड़ा अजीब लगा ,यह बात तो कल्पना ने भी नहीं सोची थी -कि मम्मा ऐसा कुछ व्यवहार करेंगी ,किंतु वह यह नहीं समझ पा रही थी ,कि मम्मा , ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हैं ? पहले तो तुषार को कल्पना की मां के व्यवहार से लगा कि वह मानसिक रूप से ठीक नहीं हैं किंतु जब अन्य बातें हुईं  तो उसे लगा -शायद ,उन्हें अपनी बेटी की फिक्र है इसीलिए वह ऐसा व्यवहार कर रही हैं। तुषार को लगा- वैसे वह सही ही तो कह रही हैं ,अब हमें आगे बढ़ने के लिए कुछ सोचना चाहिए और यही सोचकर, वह कल्पना से भी पूछता है -कि क्या तुम विवाह करने के लिए तैयार हो ? जब वह  कल्पना से यह प्रश्न पूछता है ,तब कल्पना कुछ सोच में पड़ जाती है। 

वह कहती है- कि मैं सोच रही थी ,पहले एक घर की व्यवस्था हो जाए ,तब हम विवाह करें, किंतु वह तो तुषार के विषय में जानती ही नहीं थी, कि  तुषार कौन है ?


 तब तुषार कहता है -कि मैं अपने आप सब संभाल लूंगा, तुम्हें परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। मैंने  भी कुछ पैसे जमा किए हुए हैं, उसने कल्पना को ऐसे दर्शाया जैसे ,वह अपने आने वाले भविष्य के लिए ,एक-एक पैसा जोड़ रहा है। नीलिमा ने , तुषार से उसके पिता से मिलने की बात भी कही थी। तुषार मन ही मन सोच रहा था -क्या मुझे ,इन्हें अपने पिता से मिलवाना चाहिए ? और जब मैं उनसे अपने पिता को मिलवाऊंगा तो इन्हें हमारी सच्चाई का पता चल जाएगा किंतु यह रिश्ते जिंदगी भर के हैं ,उसमें छुपाना कैसा ?एक न एक दिन तो उन्हें पता लगना ही है। यही सोचकर, एक निर्णय ले लेता है। 

आईये, आंटी जी !आईये ! एक दफ्तर में बैठे हुए, अधेड़ उम्र व्यक्ति के केबिन में, तुषार नीलिमा को लेकर जाता है। नीलिमा देखती  है, यह मुझे जहां पर लेकर आया है, वहाँ मेरी बेटी का ही दफ्तर है। नीलिमा मुस्कुराते हुए पूछती है - क्या तुम्हारे पिता भी यहीं कार्य करते हैं ?

पहले तो तुषार सोच रहा था कि मैं इन्हें संपूर्ण सच्चाई बतला दूंगा लेकिन, नीलिमा की बात सुनकर एक नया विचार उसके मन में आया और बोला जी....... जी आपने सही समझा। मेरे पिता भी यहीं  कार्य करते हैं। कहते हुए एक केबिन की तरफ मुड़ता है। नीलिमा ने उस केबिन के अंदर जाकर देखा, वह काफी बड़ा था। उस केबिन में, एक अधेड़ उम्र व्यक्ति, बड़ी सी कुर्सी पर बैठे थे। चेहरे से, अच्छे खानदानी ,बड़े परिवार के लग रहे थे। इस उम्र में भी ,उनके चेहरे पर, रौनक थी। तब तुषार ने,उनसे नीलिमा का परिचय कराया- पापा !आप मेरी दोस्त कल्पना की  मम्मी हैं और आप अपने पिता की तरफ देखते हुए , मेरे पिता 'जावेरी प्रसाद जी हैं, जो इस कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। 

नीलिमा सोच रही थी -''जावेरी प्रसाद जी ''तो बहुत पहुंचे बहुत बड़े व्यापारी हैं, और यह किसी और से परिचय करा रहा है। '' उसके पिता'' जावेरी प्रसाद ''तो इस कंपनी में नौकरी करते हैं। नीलिमा सोचने पर मजबूर हो गई, शायद मेरी कोई गलतफहमी होगी। हो सकता है 'जावेरी प्रसाद 'कोई और होंगे, एक ही नाम के दो व्यक्ति भी तो, हो सकते हैं। वह अभी अपने मन को समझा ही रही थी, तभी उसे स्मरण हुआ, नीलिमा ने उनकी तस्वीर चंपा यानी चांदनी के घर में देखी थी। 

न जाने क्यों ? ये लोग अपनी वास्तविकता छुपा रहे हैं ? तब जानबूझकर नीलिमा ने कहा -मैं अभी कुछ महीना पहले ही मुंबई आई हूं और मेरी बेटी यहीं पर कार्यरत है ,इससे पहले में हरिद्वार में रहती थी। एक समाज सेविका के रूप में कार्यरत थी। यह जानकारी देकर वह ''जावेरी प्रसाद जी ''के चेहरे के भाव पढ़ना चाहती थी। 

''जावेरी प्रसाद जी ''ने, नीलिमा की बातें  शांतिपूर्वक सुनी और बोले -आपकी बेटी बहुत ही होनहार है, मैंने उसका कार्य देखा है। हरिद्वार में हमारा भी एक घर है, उन्होंने जानकारी दी। हमारे पिता वहीं पर रहते थे, उन्होंने ही वह घर बनवाया था ,किसी कार्य की सिलसिले में, मैं मुंबई में शिफ्ट हो गया और तब से यही रह रहा हूं। 

तब तो आप मुझे जानते होंगे , नीलिमा ने पूछा। 

नहीं, मैंने आपको इससे पहले कभी नहीं देखा, न ही ,आपके विषय में कुछ सुना है।'' जावेरी प्रसाद जी ''उन सब घटनाओं से अपरिचित थे, जो नीलिमा के साथ हुई थीं। नीलिमा उनसे मिकार यही जानना चाहती थी कि'' जावेरी प्रसाद जी ''ने आखिर मेरे साथ ऐसा क्यों किया ?उन्हें मुझसे आख़िर क्या दुश्मनी हो सकती है ?किन्तु उनसे मिलकर पता चला ,वो तो उसे जानते ही नहीं। 

वैसे आप और क्या करती हैं ?उनके प्रश्न से नीलिमा का ध्यान भंग हुआ और बोली -पति के जाने के पश्चात ,मैंने शिक्षण आरम्भ किया ,उसके पश्चात समाज सेवी संस्था से जुड़ गयी। वहां के समाचार पत्रों में अक्सर मेरे लेख और तस्वीरें छपती रहती थीं इसीलिए सोचा ,शायद आप मुझे जानते हों क्योंकि आपके नाम से एक दो लाख का चैक हमारी संस्था को मिला था। 

अच्छा !सपाट से शब्दों में बोले। 

क्या आपको इस बात की जानकारी नहीं है ?नीलिमा ने उन्हें कुरेदना चाहा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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