Kanch ka rishta [part 27]

निधि , आज अचानक अपने घर आई किंतु वहां का वातावरण उसे कष्ट दे रहा था। वह तो सोच रही थी ,कि वह ही अचानक घर में आई है किंतु आज प्रिया के घर वाले भी शायद अचानक आ गए ,यह तो वह नहीं जानती। हो सकता है ,प्रिया और पुनीत जानते हों , किंतु उन्होंने आते ही, कितना अपनापन दिखाया ?अपनी बहन के लिए कुछ उपहार भी लाये , जो उसके अपने सगे भाई ने, शीघ्र ही संभाल कर रख दिए ताकि निधि को पता ना चले। जब उसके भाइयों और भाभी ने प्रिया से , जिस अधिकार से अपनी बातें कहीं उनके मुख से यह सुनकर कितना अच्छा लग रहा था ? यह लोग इसके साथ खड़े हैं, काम नहीं भी ,कर रहे किंतु शब्दों  से लग रहा है ,ये उसके कितने अपने हैं और एक मेरे ये........ अकेला भाई होकर भी ,रिश्ते  निभाना नहीं चाहता। 


अब देखो !कैसे अपने सालों के साथ बैठकर बतिया रहा है ,मुस्कुरा रहा है। क्या मुझे इससे जलन हो रही है ? नहीं, मुझे इसके व्यवहार पर दुख हो रहा है। निधि का मन किया -उसके सालों के सामने ही इसे, एहसास कराये ! ताकि इन्हें भी तो एहसास हो कि ये लोग ,मेरे साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं ? अगले ही पल मन में विचार आया। यह हमारी आपस की बातें हैं, किसी अन्य के सामने, नहीं कहनी है। यदि इसे एहसास करा  भी दिया तो क्या हो जाएगा ? रहा -सहा मान -सम्मान भी समाप्त हो जाएगा। हम लोगों की यही तो समस्या है, आपस के मान -सम्मान और इज्जत की खातिर हम गलत को गलत भी नहीं कह सकते ,जब एक व्यक्ति नहीं मान रहा है तो दूसरे के सामने भी नहीं कह सकते। 

प्रिया के भाई -भाभी तो अपनी बहन के साथ खड़े हैं ,वे अपनी पत्नियों को लेकर आए हैं ,उन्होंने किस तरह मेरे पैर छुए और एक मेरी सगी भाभी है ,उसने पैर छूना तो दूर' नमस्ते 'भी नहीं किया। तब यह गलती कहां हुई है ? हमारे व्यवहार में है, या इनकी सोच में है। यह लोग भी तो रिश्ते निभा रहे हैं, यह लोग भी तो आए हैं, तो क्या इन्हें नहीं आना चाहिए था ? किंतु गलतियां किसी की भी नहीं है। माता-पिता ने इस परिवार से अपनी छत हटा दी है। सबके लिए खुला आसमान छोड़ दिया है। जिस कारण से न वह स्वयं सुरक्षित महसूस कर रहे हैं, और न ही रिश्ते ! इधर-उधर भाग रहे हैं। 

प्रिया के भाभी -भैया बहुत कुछ लाए थे, कई सारे थैले लाए थे। जब वे सामान अंदर उतार रहे थे, तभी पुनीत ने वह सारा सामान समेटकर, जल्दी से जल्दी अंदर रख दिया। निधि के नजरों में सब था, वह देख रही थी-कि किस तरह भाई अपनी ही बहन से, सब छुपा कर ले जा रहा है। पहले भाभी के मायके से ,या घर में किसी भी बहु का कोई सामान आता था तो गांव की महिलाएं भी देखने आती थीं। परिवार के सभी लोग देखते  थे। किंतु अब तो इतने बड़े परिवार भी नहीं रहे , यदि मैं न होती तो शायद इन्हें यह सामान छुपाने की आवश्यकता भी न पड़ती , मुझसे ही तो वह सामान छुपा रहा है और यहां पर बाहर का कौन है ? मैं ही तो बाहर की हूं। ऐसे न जाने कितने विचार उसके मन में आए ? उसका दम घुटने लगा, वह बाहर आ गई। 

प्रिया ने अपनी भाभी -भैया को, चाय के साथ समोसे, मिठाई, नमकीन, कई तरह की चीजें रखीं। कितनी देर से निधि ने अपने को संभाल रखा था ? किंतु उनका यह व्यवहार देखकर उसकी रुलाई फूट गई और वह मकान के पीछे चली गई, जहां उसे रोती को , कोई देखने वाला न हो। मन ही मन सोच रही थी -मैं यहां क्यों आई हूं? क्या अपना अपमान कराने आई हूं। मैं तो रिश्तो को फिर से जोड़ने आई थी , प्रयास तो यही था किंतु इस तरह के व्यवहार से, क्या यह रिश्ते बन पाएंगे ? इस रिश्ते के मध्य  उसे एक बड़ी सी गांठ नजर आ रही थी जो कभी नहीं खुल पाएगी। यह भी हो सकता है मायके में मेरा यह आखिरी बार आना हो !

 मन बार-बार कहता-जब इसने ही मेरे मान -सम्मान की रक्षा नहीं की, मेरी बेटी के विवाह में नहीं आया मुझे अपने रिश्तेदारों के सामने अपमानित होना पड़ा तो मैं ही क्यों ?इसकी परवाह कर रही हूं ?अपना मुँह धोकर व्यथित मन से उसने घर में प्रवेश किया। वे लोग हंस रहे थे ,बतिया रहे थे। निधि उस घर को देख रही थी और सोच रही थी -क्या ये घर कभी मेरा था ?मेरा बचपन यहाँ बीता था। मन किया ,यहाँ से भाग जाऊँ। उसका व्यथित मन उस अजनबी घर में ,एक दिवान पर जाकर लेट गया।

 कुछ देर पश्चात ,प्रिया उसके समीप आकर बोली -दीदी !आप यहाँ क्यों लेटी हैं ?आइये !आपकी चाय ठंडी हो रही है ,चाय नाश्ता लीजिये। मेरे भाभी -भैया पूछ रहे हैं -'तुम्हारी दीदी कहाँ गयीं ?हमारे पास तो बैठी ही नहीं। 

ओह !तो ये इसीलिए मेरे पास आई है ,उनके कहने पर ,उन्हें दिखाने के लिए ,निधि ने उसके चेहरे को पढ़ने का प्रयास किया ,शायद कहीं तो सच्चाई नजर आये। 

निधि अब आगे क्या कदम उठाएगी ?क्या वह अपने भाई  ससुराल वालों के सामने ,अपने भाभी -भैया को अपमानित करेगी ? उन्हें एहसास दिलाएगी कि  देखो ! रिश्ते कैसे निभाए जाते हैं ?क्या पुनित और प्रिया उसके दर्द को समझ सकेंगे ?क्या उन्हें अपनी गलती का  एहसास होगा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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