Chupi tanhai

छुपा लेती ,अपने आप को 'छुपी तन्हाइयों 'में ,

भीड़ में भी,सिमट जाती तन्हाइयों के दायरे में।


अजब सा ये ''ख़ालीपन ''क्यों है ?

हर कोई तन्हा और वीरान क्यों है ?  



अपने दुख दर्द समेट, तन्हाइयों से बांटती। 

कभी-कभी उन तन्हाइयों में मुस्कुरा लेती। 


क्यों ,यह बेचैनी ! क्या और कौन मैं ?

हृदय की उद्गार मंथन कर झटक,खोजती !


तन्हा जिंदगी! पूछती, क्या यही है ?जिंदगी !

जीनी है जिंदगी !तब तनहा क्यों यह जिंदगी !


बदलते भाव ,नवचेतना सी भरी तन में ,

फिर से उन तन्हाइयों से निकल आगे बढ़,

सतत प्रयासरत ,भटकती जिंदगी की तलाश में। 


 आज भी तनहाइयां समेट लेती हैं मुझे,अपने आप में। 

अकेली नहीं, भरोसा दिलातीं ,' हूँ ,'हमेशा मैं तेरे साथ में।

 

छुपकर ही सही ,चली जाती हूँ ,मैं उसके आग़ोश में ,

थकी ,वीरान जिंदगी !में कोई नजर अपना आता नहीं ,

 तन्हाईयाँ ही ले चल मिलवाती हैं ,मुझे अपने आप में। 


प्यारी तन्हाईयाँ -


छुपी यह तन्हाइयां चुप -चुप सी क्यों है ?

तेरे -मेरे दरमियां , ये तन्हाईयां क्यों है ?

छुपी तन्हाईयाँ !हैं ,जो मिलवाती दिलों को ,

अब दिलों से , दिलों की इतनी दूरियां क्यों है ?


मोहब्बत में ,''छुपी तन्हाईयाँ ''ही मिलवाती हमें,

एक दूजे के क़रीब पहुंचने का रस्ता दिखलाती हमें। 

आओ !एक -दूजे में खो जाएँ ,तन्हाइयों का लाभ उठायें।

मिलकर न जुदा हों ,इन तन्हाइयों में ऐसा कुछ कर जाएँ।  


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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