Kanch ka rishta [part 26]

यवन जी ,अपने व्यापार के सिलसिले में, बाहर गए हुए थे। निधि को, और यवन जी को उसके परिवार पर, नाराजगी थी इसीलिए निधि ने सोच लिया था ,कि वह कभी अपने घर नहीं जाएगी। किंतु मन है ,कि मानता ही नहीं ,अपना मायका कैसे भुला दे ?यवन जी बाहर गए ,तो निधि अपने मायके पहुंच गई उन लोगों से मिलकर सब बातें तय कर लेना चाहती थी। किसी के मन में कोई गलतफहमी थी। उसे दूर करना चाहती थी। हालांकि रिश्ते औपचारिक से रह गए हैं किंतु किसकी तरफ से ,यह समझ नहीं आ रहा ? उसने जब अपनी मां से बात की तो उसकी मां ने उसे बतलाया -कि उसके भाई को, उसके घर जाकर अपना अपमान लगा था किंतु निधि के मन में तो ऐसी कोई दुर्भावना थी, ही नहीं, जो वह ऐसा सोच रहा है ,किंतु वह ऐसा क्यों सोच रहा है ? और अगर उसके मन में ऐसा कोई विचार आया था या परेशानी थी या क्रोध था तो मुझसे आकर कह सकता था। मैं उसकी बड़ी बहन हूं क्या मैंने, आज तक कभी उसका साथ नहीं दिया ? यदि वह मुझे कुछ कहता - तो क्या मैं ,उसकी गलतफ़हमी दूर नहीं कर देती ?


तो फिर परेशानी किस बात की है ? परेशानी व्यवहारों की है , जब तक उसकी नौकरी नहीं लगी थी ,वह परेशानी से गुजर रहा था तो उसे किसी से कोई परेशानी नहीं थी, अचानक ही उसकी नौकरी लगते ही, अपने में सक्षम होते ही, वह रिश्ते तोड़ने पर तुल गया। अब वह रिश्ते निभाना ही नहीं चाहता क्योंकि उसकी आवश्यकतायें  तो पूर्ण हो चुकी हैं। अब उसे किसी की जरूरत नहीं तो क्या वह मतलब परस्त नहीं है ? दूसरे में कमी निकालने से पहले, अपनी तरफ क्यों नहीं देखा ? क्या इस तरह से  रिश्ते तोड़ दिए जाते हैं ? या इसमें अपना स्वार्थ है, हम मेलजोल  रखेंगे ,तो बहन आएगी ,हमारी नाजुक सी पत्नी का काम बढ़ जायेगा और अब तो बहन को देना पड़ेगा क्योंकि पहले की तरह अब बहाना नहीं बना सकता ,मैं कमा नहीं रहा। 

अब ऐसी परिस्थति आये तो क्यों न इससे पहले ही,उससे रिश्ता तोड़ लिया जाए ? अभी उन दोनों मां -बेटी में कुछ तर्क -वितर्क चल ही रहे थे  किंतु मां ने अपने को विवश महसूस कराया, जैसे अब उनका अपना कोई अस्तित्व ही नहीं रह गया है। उनकी बात का कोई मान ही नहीं रह गया है। जब बच्चे छोटे होते हैं तो माँ समझा देती है ,क्या सही है और क्या गलत है ? किंतु जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो माँ को समझाने लगते हैं, तुम कुछ भी नहीं जानती हो , तुमने जीवन में देखा ही क्या है ? किया ही क्या है ?ऐसे प्रश्न अक्सर माता-पिता को सुनने को मिल जाते हैं। 

माता-पिता एक परिवार की कड़ी होते हैं जो उसको जोड़कर रखते हैं , किंतु वह कड़ियां अब खुलकर इधर-उधर होने लगती हैं। माता-पिता को लगता है -जैसे उनका अस्तित्व, ही सवालों के दायरे में सिमट कर रह गया है। तभी दो आदमी, और दो महिलाएं घर के अंदर प्रवेश करती हैं। वे लोग,निधि को जाने -पहचाने से लग रहे है लेकिन बहुत दिन हो गए ,ध्यान नहीं आ रहा, कौन हो सकते हैं ? पहले कहीं देखा तो है ,तभी उन्होंने अपना, परिचय देने से पहले, उन्होंने निधि से ही प्रश्न किया -क्या आपने हमें पहचाना नहीं ?

देखा हुआ सा तो लग रहा है लेकिन कब कहां ? स्मरण नहीं हो रहा ,बहुत दिन हो जाते हैं, कभी मिलना हुआ होगा तो इसीलिए याद नहीं आ रहा। अब वह उनसे कैसे कहे ?अपने मन में ,अनेक परेशानियों का बोझ लिए हुए वह घूम रही है ,तो वह कैसे किसी को स्मरण कर सकती है ?

अधिक देरी न करते हुए बोले -हम दोनों प्रिया के भाभी और भैया हैं। 

ओह , अच्छा ! तभी मैं सोचूं कि चेहरे जाने -पहचाने से लग रहे हैं किंतु याद नहीं आ रहा ,कई वर्ष हो गए थोड़ा बदलाव तो आ ही जाता है। प्रिया की भाभियों को तो मैंने पहली बार ही देखा है। 

हां दीदी ! हम विवाह में ही मिले थे, तभी प्रिया अपने भाभी -भैया के लिए पानी लेकर आ गई। 

निधि, प्रिया से बोली -क्या ,तुम्हें अपने भाभी -भैया के आने का पता चल गया था ?वह उसे यह जतलाना चाहती थी ,कि जब मैं आई थी तो वह बाहर निकलकर नहीं आई और न ही पानी के लिए पूछा और जब मायके से, उसके घरवाले आए हैं तो किस तरह पानी लेकर आ खड़ी हुई ? मायके वालों को भी लगता होगा कि ससुराल वालों की कितनी सेवा करती है ? लोग कैसे दौहरे  चरित्र के साथ जीते हैं ?मन ही मन निधि सोच रही थी किंतु इससे क्या गिला शिकवा करना ? मेरा अपना भाई ही जब ऐसा है , तो यह तो दूसरे घर की है तो इससे क्या उम्मीद कर सकती हूं ? 

कुछ देर पश्चात ही, पुनीत भी आ खड़ा हुआ उसके हाथ में दो-तीन थैलियाँ  थीं जिनसे अच्छी खुशबू आ रही थी। निधि  समझ गयी , यह अपने ससुराल वालों के लिए ,नाश्ते में खाने के लिए ,कुछ न कुछ लेकर आया है। इसकी बहन इतनी देर से यहां आई बैठी है। मेरे लिए कुछ लेकर नहीं आया, मां ने एक कप चाय हाथ में ऐसे ही पकड़ा दी। निधि के चेहरे पर मुस्कुराहट थी, क्योंकि वह उसके मायके वालों को दिखला देना चाहती थी ,कि वह मुस्कुरा रही है किंतु उसकी आंखें नम हो आईं और मन ही मन सोच रही थी -यदि इस समय यवन जी यहां होते तो......  अवश्य ही ,यहां झगड़ा हो जाता। मैंने कब इसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया है, कि कभी इसे खाने को नहीं दिया, कभी इसके पास बैठी नहीं थी। तो फिर यह क्यों मेरे साथ ऐसा व्यवहार कर रहा है ?क्या यह सच में ही रिश्ता ही ,तोड़ देना चाहता है ? अब तो इसके ससुराल वालों से  ही प्रगाढ़ रिश्ते हो गए हैं। तभी प्रिया का भाई अपनी बहन के पास रसोई घर में पहुंच गया -लाइए ,दीदी !हमें कोई कार्य बता दीजिए। 

निधि ने पुनित की तरफ देखा ,वह उसे इस तरह देख कर ,ये जतलाना चाहती थी कि वो कब अपनी बहन की सहायता के लिए ,उसके समीप आकरखड़ा हुआ ,कब उसने मुझसे आकर पूछा ?''दीदी !आपको कोई परेशानी तो नहीं ,मैं भले ही आर्थिक दृष्टि से सक्षम नहीं किन्तु किसी कार्य में मेरी सहायता की आवश्यकता हो तो बताना ,आपका भाई आपके साथ है।''ऐसे अपनत्व भरे शब्द कब इसने मुझसे आकर कहे ?

अपनी समीक्षाओं द्वारा इस भाई -बहन की कहानी को आगे बढ़ाने में,अपना महत्वपूर्ण योगदान दीजिये ,कहानी कैसी चल रही है ?अवश्य बताइयेगा ,मिलते हैं ,अगले भाग में -''काँच का रिश्ता '' 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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