Kanch ka rishta [part 25]

करुणा ने प्रभा को फोन तो किया, किंतु जितने उत्साह से उसने फोन किया था, और जैसा वह सोच रही थी -ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। प्रभा के शब्दों को सुनकर, उसकी  बातों को सुनकर, उसका उत्साहित मन वहीं जैसे धम्म से ,बैठ गया। न जाने कितने प्रश्न ,करुणा के मन में उमड़ रहे थे। जब प्रभा को फोन करूंगी तो उसे यह पूछूंगी ,उससे वह पूछूंगी किंतु कुछ भी पूछ न सकी। कभी तो उसे एहसास होता, क्या  यह ''निमंत्रण पत्र ''उसने अपनी इच्छा से ही भेजा है या फिर किसी के कहने पर दिया है। कह तो रही थी -'तुझे आना है 'किंतु उसने तो एक बार भी न ही, मेरे विषय में कुछ जानना चाहा और न ही ,अपने विषय में कुछ बताया। बाहर धीमी -धीमी बरसात हो रही थी, वातावरण में शांति का अनुभव हो रहा था किंतु करुणा के मन में, कुछ उथल-पुथल मची  हुई थी। वर्षों पश्चात, वह मिली, बातें भी हुई किंतु सुकून का एहसास नहीं हुआ ,वह प्रसन्नता नहीं मिली, अजीब सी बेचैनी का एहसास हुआ।  


मन ही मन सोचा-न जाने बेचारी ने कितना झेला होगा ? शायद अब उसके मन में रिश्तों के प्रति ,वह अपनापन, वह प्यार रहा ही नहीं, तभी तो कह रही थी - जी रही हूं। यानी उसके मन में, किसी भी प्रसन्नता का आभास नहीं है , इसी कारण उसके व्यवहार में यह परिवर्तन आया होगा। जब भी मन में परेशानी होती ,तभी करुणा कभी चाय या कॉफी पीती है। अभी भी ,दोनों तरफ से ही उसे चाय पीने की इच्छा हुई ,एक तरफ बरसात का मौसम और दूसरी तरफ मन की बेचैनी ! रसोईघर में चाय बनाने के लिए गयी। तभी सोचा -अपनी सास से भी पूछ लेती हूँ ,चलो !पूछना क्या है ?चाय तो वो पी ही लेंगी। 

अभी चाय में ,दूध डाला ही था ,कुछ देर पश्चात ही, करुणा के फोन की घंटी बजने लगी -अब इस समय किसका फोन आ गया ? यह सोचते हुए वह फोन की तरफ बढ़ती है। फोन पर नंबर देखकर, मुस्कुराती है और मन ही मन, सोचती है -पापा का है। हेलो !

करुणा तुम कैसी हो ?उधर से आवाज आई। 

ठीक हूं, पापा ! पापा ही तो हैं, जो उसे फोन करके ,उसका हाल-चाल पूछते रहते हैं , वरना किसी को तो समय ही नहीं है। यह बात भी मैंने, जब मानव से कही थी ,तब मानव ने कहा था -खाली बैठे रहते हैं, इसलिए फोन कर लेते हैं। चलो !जैसा भी है, फोन तो करते हैं। क्या तुम्हारे पास किसी के विवाह का ''निमंत्रण पत्र ''आया है ?

सोचते हुए करुणा ने कहा -हां ,आया है। क्यों ?आपको कैसे मालूम !और आप ये सब क्यों पूछ रहे हैं ?

जादू से ! उनके शब्दों से लग रहा था वह कहते हुए मुस्कुरा रहे थे। 

ओहो !आजकल आप बहुत जादू करने लगे हैं ,मेरी सहेली की बेटी का विवाह है ,उसका निमंत्रण पत्र आया है। 

उसने तुम्हारे घर का पता हमसे मांगा था , किसी ने फोन करके तुम्हारा नंबर माँगा।

क्या उसे मेरे घर का पता मालूम है ? करुणा  सोच रही थी - चलो !जैसे भी है,'' जहां चाहत वहीं  राहत ''! पापा ! मैं अभी आई। 

क्यों क्या कर रही है ?

 पापा !मैंने गैस पर चाय रखी थी, उसे ही देखने जा रही हूं। 

कोई बात नहीं, मैं बाद में फोन करता हूं ,कहकर  उन्होंने फोन काट दिया। करुणा ने गैस को धीमा कर दिया था ,वरना अब तक चाय बाहर आ जाती। गैस को तेज करके एक उबाल दिया और दो प्याली में चाय को छानने लगी। 

चाय को देखकर सासू मां की'' बांछें खिल गईं '' और बोलीं - तूने यह बहुत अच्छा किया, चाय पीने की इच्छा हो रही थी। उन्हें चाय पकड़ाकर , करुणा अपनी चाय लेकर, खिड़की के समीप आकर बैठ गई। शायद स्कूल की छुट्टी हुई है, बच्चे इस बरसात में, उन बूंदों का अनुभव करते हुए ,कभी हाथ में लेते हुए कभी चेहरे को ऊपर उठाकर उनकी ठंडक का अनुभव करते हुए जा रहे थे। कभी छाते को लगाते और तुरंत ही हटाकर मौसम का मज़ा लेते ,खेलते हुए जा रहे थे। यह बचपन भी कितना भोला ,कितना मोहक़ लगता है, दुनिया की चिंताओं से परे, खुलकर जीना चाहता है। हम बड़े ही, अपनी परेशानियों का बोझ भी ,बच्चों पर लाधने का प्रयास करते हैं। 

करुणा की इच्छा तो हो रही थी कि वह फिर से एक बार प्रभा को फोन करें उससे बातचीत करें उससे पूछे किंतु हिम्मत नहीं हो रही थी। उसके पहले व्यवहार के कारण ही,थोड़ी परेशान थी। ओह !एक प्रश्न का जबाब तो पापा से मिल ही गया। हो सकता है ,आगे के प्रश्नों के जबाब भी इसी तरह मिल जाएँगें । 

शाम को जब किशोर जी अपने काम से आए तो बोले - क्या तुमने अपनी सहेली के यहां जाने की संपूर्ण तैयारी कर ली है। 

मुझे तैयारी क्या करनी है ? करुणा  ने पूछा।

विवाह में पहनने के लिए ,उसकी बेटी को भी तो कुछ उपहार दोगी या नहीं और ये बताओ ! आज तुम्हारी उससे बात हुई। 

हाँ ........ कहते हुए ,करुणा थोड़ी उदास सी हो गयी। 

उसके चेहरे की उदासीनता को देखकर किशोर जी बोले -क्यों ?क्या हुआ है ? उससे बात तो हुई थी या नहीं। 

हाँ ,हमने बातें तो की थीं किन्तु उसकी तरफ से मुझे कोई प्रसन्नता नजर नहीं आई ,उसके एक ही बेटी है ,बस इतना ही पता चल सका ,न ही ,उसने मेरे विषय में जानने का प्रयास किया। न ही ,कोई प्रसन्नता जतलाई। 

किशोर जी अब क्या कहेंगे ?नाराज होंगे या फिर उसे समझायेंगे ,आखिर प्रभा के व्यवहार में यह बदलाव क्यों और कैसे आया ?आगे क्या होता है ?मिलते हैं ,अपने भाग में ,अपनी समीक्षाओं द्वारा उत्साहवर्धन करते रहिये। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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