भ्रमित करता विषय है,
'डिजिटल से प्यार 'है ,
या डिजिटल के माध्यम से प्यार है।
जितने भी, वैले[ खाली]बैठे हैं।
डिजिटल पर ढूंढते प्यार हैं।
आजकल डिजिटल से सबको प्यार है।
ढूंढते ऐसे ,जैसे डिजिटल पर सबका उधार है।
वक्त कट जाता है, उम्मीदें बढ़ जाती हैं।
ऐसा ही कुछ ''डिजिटल का प्यार'' है।
दूर बैठे लोग ,करीब नज़र आते हैं।
करीब बैठे लोग ,दूर चले जाते हैं।
वास्तविकता में प्यार नहीं ,यहाँ !
डिजिटल से कैसे मिलेगा प्यार है ?
बनाता है,इसमें उसे मिटाता भी है।
ढूंढता कहां? इधर-उधर,
डिजिटल उम्मीदों का व्यापार है।
जगह भरती है ,ख़ाली भी करनी पड़ती है।
अति हर वस्तु की बुरी है।
नई उमंगों की खोज है, जज्बातों का व्यापार है।
यही तो.... 'डिजिटल का प्यार'' है।
अथवा ''डिजिटल से प्यार ''का आधार है।
